Sunday, 30 December 2012


जागो रे ....
हम कई दिनों से 2012में दुनिया क खत्म होने की बाते सुन रहे थे लेकिन ऐसा सबके साथ नही हुआ,सिर्फ 1लडकी के  साथ हुआ जिसका कसूर सिर्फ इतना था कि  वो निर्भीक होकर आने वाले खतरे से अनजान बस में सफ़र क्रर रही थी।उसे भी  ये पता नही था कि  ये उसका आखरी सफ़र है  और उसके साथ ही खत्म हो गया लडकियों की आजादी और हमारी आधुनिकता का सफ़र भी।आज सब लोग कह  रहे है  कि  हम फिर से पाषाण  युग में जा रहे हैं  लेकिन मुझे  ऐसा नही लगता क्योकि उस युग में तो स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।उस कालखंड के किसी भी ग्रन्थ में हमे शायद ही कही  कोई बलात्कार की घटना का विवरण मिले।लेकिन आज के इस आधुनिक युग के  अखबारों की अहम् सुर्खियाँ होती हैं बलात्कार और नारी उत्पीडन की खबरे।हम लोग भी बहुत चाव से पढ़ते हैं  ऐसी खबरे क्योकि हम उस महिला का दर्द नही समझ सकते।आने वाले वर्षो के साहित्य में  हमारे इस आधुनिक युग की  दर्दनाक घटना को हमेशा उल्लेखित किया  जायेगा,ये हम सभी आधुनिक लोगो के लिए निहायती शर्म की बात है ।लेकिन आज शायद हमारी आधुनिकता ने शर्म का भी बलात्कार कर दिया है ।रामायण काल में रावण ने भी भले माँ सीता का बलपूर्वक हरण किया हो लेकिन अशोक वाटिका में उन्हें पूरे सम्मान क साथ रखा,सीता माँ की इच्छा के  विरुद्ध वो उन्हें स्पर्श करने तक का साहस  न जुटा पाया बल्कि वो अंत तक उनके हाँ  की ही प्रतीक्षा करता रहा,क्योकि रावण सीता माँ के  दिव्य  तेज से आकर्षित था लेकिन एक राक्षस होकर भी उसके मन में उनके लिए हवस नही थी।लेकिन आज के कलियुगी राक्षसों ने तो रावण को भी पीछे छोड़  दिया!आज तो हर घर में दुस्शासन है ,लेकिन द्रौपदी  की लाज  बचाने वाले कृष्ण कही  नही हैं ।इस कलियुग में कृष्ण आ भी नही सकते क्योकि वो भी डरते हैं क्या पता उन्हें देखकर हमारी सरकार  उन्हें साम्प्रदायिक दंगे भडकाने वाला समझकर उन पर अनेको धाराएँ लगा दे!उस रात सिर्फ एक लडकी का बलात्कार नही हुआ बल्कि बलात्कार हुआ है  भारतीय  नारी की अस्मिता का,उसके सम्मान का वरन हमारी  भारतीयता की भावना का।जिस देश में नारी को देवी समझा जाता है ,कन्या  रूप में उसके चरण स्पर्श किये जाते हैं  उस देश में ऐसी घटना प्रश्न -चिह्न  खड़ा करती है  हमारे भारतीय होने पर?इस घटना ने पूरी दुनिया के  सामने भारत-वासियों का सर शर्म से झुका दिया है !लेकिन वो कोई साधारण लडकी नही बल्कि एक वीरांगना थी जिसने अकेले छ -छ राक्षसों का सामना  किया और उनके आगे घुटने नही टेके।मै उस वीरांगना को नमन करती हू।
में इस माध्यम से सभी से आह्वान करती हु कि   नया वर्ष सादगी से मनाकर उस वीरांगना को श्रधांजलि दे और सारी महिलाएं संकल्प ले कि ऐसे दुशासनो के  आगे घुटने नही टेकेंगी,न ही अपनी  आज़ादी से समझौता करेंगी और पुरुष वर्ग से भी मेरी यही उम्मीद है कि  वो महिलों का सम्मान करना सीखें जैसा कि  हमे हमारे बड़े -बुजुर्गों ने सिखाया है ।आखिर में यही पंक्तियाँ सभी महिलाओं की तरफ से कहना चाहती हूँ 
"अपनी आजादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नही 
सर कटा सकते हैं  लेकिन सर झुका  सकते नही"

जय हिन्द।
                                                                                                                                                                                                                                                                            सोनल तिवारी 
                                                                                                                                                                                                                                                                                 30/12/12