Saturday, 7 March 2020

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

आज 8  मार्च का दिन दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। वैसे नारी जो इस समस्त विश्व की जननी है, नारी जिसके दम पर जीवन का ये चक्र चलायमान है, नारी जिसके कारण  सहानुभूति और सहिष्णुता जैसे शब्दों से मानव समाज परिचित हुआ, नारी जो एक सभ्य समाज की निर्मात्री है, इस नारी को एक दिन समर्पित करना सूरज को दीपक दिखाने की तरह ही है। लेकिन इतनी सशक्त नारी जाति को हमारे पुरुष प्रधान समाज ने शुरुआत से ही नाना प्रकार के सामाजिक बेड़ियों में जकड़कर रखा क्योंकि धूर्त पुरुष ये जानते थे कि नारी इतनी अदम्य क्षमताओं से भरी है कि अगर ये अपने स्वछंद स्वरुप में समाज में रही तो देश-दुनिया की तस्वीर बदलने का माद्दा रखती है।
ज़रा सोचिये, अगर हमारा समाज पुरुष प्रधान की बजाय महिला प्रधान होता तो क्या ये दुनिया ऐसी ही होती जैसी कि आज है ? अगर महाभारत काल में गांधारी ने अपनी आँखों पर पट्टी न बाँधी होती तो क्या सुयोधन दुर्योधन बन पाता ? अगर अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी,रूस और जापान जैसी महाशक्तियों का नेतृत्व महिलाओं के हाथों में होता तो क्या इस ख़ूबसूरत दुनिया को प्रथम और द्वितीय विश्व-युद्ध के दंश से बचाया जा सकता था ? अगर खाड़ी देशों में औरतों के नेतृत्व में कोई इस्लामिक क्रांति हुई होती तो क्या इराक़ और सीरिया जैसे देशों का ये हाल होता जो आज है ? अगर अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों की कमान महिलाओं के हाथों में होती तब क्या ये देश ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरे के प्रति इतने उदासीन होते जितने कि आज हैं ? क्या हिन्दू धर्म में जातिवाद होता अगर प्राचीन धार्मिक मठों की प्रमुख महिलाएं होतीं! क्या इस्लाम का नाम आतंकवाद से जुड़ता अगर मस्जिदों की इमाम महिलाएं होतीं! क्या वेटिकन के चर्च पर बच्चों का यौन शोषण करने के आरोप लगते अगर पोप के पद पर मदर टेरेसा जैसी महिलाएं होतीं!
सदियां लग गयीं महिलाओं को इन ज़ंजीरों से आज़ाद होने में और आज हमारे सामने न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा ओडेर्न और दो समलैंगिक महिलाओं की संतान विश्व की सबसे युवा प्रधानमंत्री फ़िनलैंड की सना मरीन जैसी महिलाएं हैं जिनमें संपूर्ण विश्व में शांति स्थापित करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है, , टाइम पर्सन ऑफ़ द  ईयर ग्रेटा थनबर्ग जैसी  टीनएजर है जिसने तेज़ी से बढ़ते जलवायु परिवर्तन के  ख़तरे की तरफ़ दुनिया भर का ध्यान खींचा है, सबसे कम उम्र की नोबल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई हैं जिन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए तालिबान से मोर्चा लिया, विश्व की पहली बिलिनेयर लेखक बनने वाली जेके रॉलिंग ने मानसिक अवसाद से निकलकर हैरी पॉटर जैसे लोकप्रिय पात्र की रचना की ,  नस्लभेदी टिप्पणियों को झेलते हुए भी सबसे ज़्यादा २३ ग्रैंडस्लैम ख़िताब जीतने वाली सेरेना विलियम्स हैं वहीँ हमारे देश की महिला क्रिकेट टीम आज टी20 विश्व-कप का फाइनल खेल रही है , हमारे देश की 6महिला नेवी ऑफिसर्स ने आईएनएसवी तारिणी से समुद्र के रास्ते पृथ्वी की परिक्रमा अकेले पूरी की, भारत में अब महिलायें लड़ाकू विमान भी उड़ा रही हैं, शायद इन्हीं सब कारणों से सर्वोच्च न्यायालय को भी सरकार को महिलाओं को सेना में स्थायी कमिशन देने का आदेश देना पड़ा।
स्पष्ट है अगर शुरुआत से ही महिलाएं सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर नेतृत्व संभालती तो आज दुनिया की दशा और दिशा कुछ और ही होती। इसीलिए महिलाओं को घर की चार-दीवारी के अंदर धकेल दिया गया ताकि पुरुष इस दुनिया पर मनमाने ढंग से राज कर सकें जिसका नतीजा ये हुआ कि आज हम परमाणु युद्ध की दहलीज़ पर खड़े हैं जिसके बाद समस्त मानव जाति का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।