Saturday, 14 September 2013

HINDI MERI JAAN,HINDI MERI SHAAN

जागो रे ....

अंततः आज मैंने काफ़ी दिनों के बाद कुछ लिखने का समय निकाल ही लिया और देखिये न कितने शुभ दिन पर ये शुभ मुहूर्त आया क्योंकि आज हिंदी दिवस जो है।  शायद इसीलिए आज मुझे प्रेरणा मिली हिंदी के अथाह सागर में गोते लगाने की ..क्योंकि मैं  जानती हूँ कि मैं अपनी मातृभाषा के समंदर में चाहे जितनी भी गहराई तक जाऊं ,कभी डूब नही सकती क्योंकि यहीं तो मेरा जन्म हुआ है।ये किसी विदेशी भाषा का समुद्र नहीं जिसके भीतर जाने के लिए मुझे कुछ विशेष आधुनिक उपकरणों की सहायता लेनी पड़े!पिछले कई दिनों से मैं इसी कश्मकश में थी कि अपने विचारों को आप सबके सामने प्रकट करने हेतु मैं किस भाषा को माध्यम के रूप में चुनूं?मेरा मन -  मस्तिष्क तो बार - बार मुझे अपनी मातृभाषा के आँचल से सारा स्नेह समेट लेने को कहता था लेकिन आसपास का हिंदी विरोधी वातावरण मुझे दिन - ब - दिन अपनी जड़ों से दूर करता जा रहा था।हर किसी ने मुझे आंग्ल भाषा में ही लिखने का परामर्श दिया,उन सभी के इसके पीछे अपने - अपने तर्क थे ..किसी ने कहा कि आज के ज़माने के आधुनिक शिक्षित युवा जो अंग्रेजी माध्यम में स्कूल - कॉलेज पढ़कर आते हैं उन्हें अंग्रेजी साहित्य ही पढना पसंद है क्योंकि उसे ही वह उच्च कोटि का साहित्य समझते हैं।शायद उनकी नज़रों में शेक्सपियर के आगे कालिदास की प्रतिभा बौनी है,भारवि और भास  इत्यादि महाकवियों से वे अनभिज्ञ हैं!आज किसी को भी तुलसी - सूर के नीतिपरक दोहों में कोई दिलचस्पी नहीं है।
किसी ने कहा कि हिंदी में लिखे  आपके मौलिक लेख उतने प्रभावोत्पादक नहीं हैं जितने गूगल या अन्य किसी अंग्रेजी किताब से कॉपी - पेस्ट करके फेसबुक पर अंग्रेजी में लिखी चंद पंक्तियाँ जिन्हें कुछ ही मिनटों में ढेरों लाइक्स मिल जाते हैं,किसी ने कहा अपनी मातृभाषा के इतने परिष्कृत मौलिक स्वरुप को देखने की हमारी आदत नहीं है क्योंकि हम तो अंग्रेज़ी के श्रृंगार रस में डूबे हुए हैं।वैसे रस से मुझे याद आया कि हिंदी में नौ रस होते हैं जिनके बारे में हमने कभी बचपन में पढ़ा था लेकिन शायद अब हमें उनके नाम भी ठीक से याद नहीं!कैसी विडम्बना है कि जो रस हमें सुख- दुःख, मिलन- बिछोह और प्रेम -करुणा आदि का अनुभव देते हैं आज हमारे लिए उनका कोई औचित्य नहीं!
कुछ लोगों का ये भी कहना है कि हिंदी एक व्यावसायिक भाषा नहीं है और शायद आने वाले कुछ वर्षों में ये व्यावहारिक भाषा भी न रहे ..इसलिए आपको हिंदी में लेखन करने से कोई लाभ होने वाला नहीं है।आज अधिकतर  युवा बड़े गर्व से कहते हैं कि उन्हें हिंदी नही आती,अपनी इस कमी को वे अपनी श्रेष्ठता समझकर इसका प्रचार -प्रसार करते फिरते हैं।   आज हिंदी को कमतर आंकने वालों के लिए मेरे भी कुछ सवाल हैं:
 जिस भाषा के वर्ण 'म ' से विश्व का लगभग हर बच्चा बोलना आरम्भ करता है क्या अब हमें  दुनिया के सामने उस भाषा में बात करने में शर्मिंदा होना चाहिए?
जिस भाषा से इस हिंदुस्तान की पूरे विश्व में पहचान है क्या उस भाषा के लिए हमारे देश में कोई जगह नहीं है?
जिस भाषा के लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाओं से भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया,क्या उस भाषा के लिए हमारे दिल में कोई सम्मान नहीं है?
कुछ लोग हिंदी दिवस आने से पहले फेसबुक पर अपना नाम हिंदी में डाल देते हैं ऐसा करके क्या ये लोग हिंदी को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं और हिंदी दिवस को हिंदी की पुण्यतिथि में बदलना चाहते हैं जिसमे हम मृत व्यक्ति के लिए कुछ देर का मौन धारण करते हैं?
मैं आज हिंदी दिवस पर संकल्प करती हूँ कि आजीवन अपने समस्त विचारपरक लेखों को हिंदी में ही प्रचारित और प्रसारित करूंगी।

जय हिन्द,जय राष्ट्रभाषा।                                                                                   

                                                                                                                                             सोनल तिवारी 
                                                                                                                                            

1 comment:

  1. Very good article and a tribute to Hindi language. Keep writing like this and my best wishes are always with you that you go a long way in the field of writing.:-)

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