Friday, 30 July 2021

रिटायरमेंट

 नौकरी से रिटायरमेंट हुआ है,ज़िंदगी अभी बाकी है

अभी तो इंटरवल हुआ है,पिक्चर अभी बाकी है।
जाने क्यों लोग इसे जीवन की संध्या कहते हैं
ये तो जीवन की नई शुरुआत होगी
जैसे पिक्चर में हीरो की री-एंट्री होगी, क्योंकि
अभी तो इंटरवल हुआ है,पिक्चर अभी बाकी है।
बहुत सुन ली सबकी,अब करूँगा अपने मन की
घर से ऑफिस, ऑफिस से घर बात हुई अब कल की।
अब तो पार्क में ठहाके ख़ूब लगाऊंगा
गाड़ी से पुरानी गलियों के चक्कर ख़ूब लगाऊंगा
शामें बीतेंगी अब दोस्तों के साथ गपशप में
दुपहरी की फुरसतों का मज़ा ही कुछ और होगा
रातें ट्विटर, इंस्टा और फेसबुक से रंगीन होंगी
नौकरी से रिटायरमेंट हुआ है,ज़िंदगी अभी बाकी है।
बीवी के साथ वर्ल्ड टूर पर जाऊंगा
मैं इतना बूढ़ा नहीं जो तीर्थ-यात्रा पर जाऊंगा
उम्र नहीं मेरी अब किशोर,रफ़ी के नग़मे गाने की
तमन्ना है मेरी डीजे वाले बाबू पर सबको नचाने की,
बच्चों के साथ अब दोस्त बनकर रहना है मुझे
क्योंकि नाती-पोतों के लिए सुपर कूल बनना है मुझे
अब तो मैं अपने मन का मौजी हूँ
रिटायर हूँ पर अपने घर की सीमा का फ़ौजी हूँ।
कॉलोनी में मेरा अलग ही रौब होगा
बिजली बिल ज़्यादा आने पर मेरा ही मशवरा क़ाबिले-ग़ौर होगा
सीनियर सिटीजन का तमगा ट्रेन की लोअर बर्थ के लिए रहने दो
दिल तो बच्चा है जी,इसे अभी बच्चा ही रहने दो
नौकरी से रिटायरमेंट हुआ है,ज़िंदगी अभी बाकी है
अभी तो इंटरवल हुआ है,पिक्चर अभी बाकी है।
सोनल"होशंगाबादी" की कलम से।



Saturday, 24 July 2021

Reverse Casteism

Today d famous cricketer Suresh Raina has been brutally trolled as he called himself a Brahmin bcz he is actually a Brahmin. So is there any issue to be raised like this? Actually I know this kind of people bcz i've been also a victim of such "Reverse Casteism" and bulleying  at my workplace bcz of my so called higher caste🙄  So basically these are the people who feel bad if anybody asks their cast bt d same people don't feel bad to mention their cast in the cast certificate!🤔 These people are against any discrimination done on the basis of cast, good 👍bt d same people are very much comfortable in getting the jobs or seats in govt institutions on d basis of their cast🤐 Some of these people have converted to another religion bcz of Casteism in Hindu religion, agreed 🙏 bt they are still Hindu on paper to enjoy the benefit of reservation! 1of my friend living in Indore only did argument with me dt why didn't d lower cast people ruled the state in history, i think he didn't know the fact that the Holkars, rulers of Malwa didn't belong to any higher caste as Malhar rao Holkar himself was a shepherd prior to become the king of Malwa. Another thing he said to me that all of the land currently owned by my paternal family and other Brahmins was actually forcefully grabbed by us from d other cast people. I don't know where he read this fictional story bt i think he forgot abt d Kashmiri pandits who had to flee away leaving behind their lands, their apple gardens along with their homes and Suresh Raina belongs to the same community. I hv been against Casteism bt i can't support such double standards and Reverse Casteism to counter d Casteism.

Sonal"Hoshangabadi"

उपेक्षित उत्तर-पूर्व

आज ओलंपिक में मणिपुर के एक छोटे से गांव की रहने वाली मीराबाई चानू ने वेटलिफ्टिंग में रजत पदक जीत लिया है। मीराबाई बचपन में जंगल से लकड़ी का गट्ठा सर पर बांधकर लाया करती थीं और आज अपने उसी संघर्ष के बल पर टोक्यो से चांदी लाने में क़ामयाब रही हैं। यहाँ ग़ौर करने लायक ये भी है कि वो भारत के एक छोटे से उत्तर-पूर्वी राज्य से आती हैं, इन्हीं उत्तर-पूर्वी राज्यों ने हमें मैरीकॉम, बाइचुंग भूटिया और कुंजरानी देवी जैसे कई नामी खिलाड़ी दिए हैं। ग़ौरतलब है कि 2016के रियो ओलंपिक जाने वाले भारतीय दल में लगभग 7% खिलाड़ी उत्तर-पूर्व के राज्यों से थे जबकि भारत की कुल जनसंख्या में इन राज्यों का हिस्सा बहुत कम है। लेकिन खेल यहाँ के लोगों के जीवन का अभिन्न अंग है जैसे अखाड़े में कसरत और कुश्ती हरियाणा के पुरुषों की जीवनचर्या का हिस्सा है, वैसे हरियाणा के लोगों का कसरत और कुश्ती से लगाव काफ़ी हद तक अपना वर्चस्व या दबंगई साबित करने के लिए भी होता है जैसा हमने ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार के प्रकरण में देखा। बहरहाल बात करें उत्तर-पूर्व की तो आज़ादी के बाद शायद देश का सबसे उपेक्षित ये क्षेत्र रहा है क्योंकि वोट बैंक की दृष्टि से ये 7छोटे-छोटे राज्य उत्तर प्रदेश, बंगाल या महाराष्ट्र की तरह महत्वपूर्ण नहीं हैं इसीलिए पूर्ववर्ती सरकारों ने इस इलाक़े के विकास की ओर कोई ध्यान नहीं दिया, ठीक ऐसा ही भेदभाव लेह-लद्दाख़ के साथ भी किया गया। हैरानी की बात है कि आज़ादी के 74साल बाद भी मेघालय और सिक्किम जैसे उत्तर-पूर्वी राज्यों में भारतीय रेल नहीं पहुंच पाई है, यहाँ के लगभग 1000किलोमीटर रेल्वे ट्रैक को हाल ही के वर्षों में ब्रॉडगेज में बदला गया है। सरकारों ने तो उत्तर-पूर्व के साथ भेदभाव किया ही है लेकिन हम और आप जैसे लोगों के लिए भी उत्तर-पूर्व के इन राज्यों की अहमियत शायद भूगोल की परीक्षा में "7बहनों" के नाम से पहचाने जाने वाले इन राज्यों और उनकी राजधानियों के नाम याद करने से ज़्यादा नहीं रही है। हाल के वर्षों में सिक्किम जैसे राज्य "हनीमून डेस्टिनेशन" का दर्जा पाने से हमारे लिए थोड़े अधिक महत्वपूर्ण ज़रूर हो गए हैं। सामरिक दृष्टि से देखें तो ये इलाक़ा भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कश्मीर, लेकिन जिस कश्मीरियत की दुहाई देकर हमारे देश की सरकारों ने कश्मीर को सारे देश से अलग विशेषाधिकार दिए, उन विशेष अधिकारों का कश्मीर के अलगाववादी नेताओं ने हमेशा नाजायज़ फ़ायदा उठाया। धारा 370 के हटने से पहले तक कश्मीर में तिरंगे का अपमान या भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच में भारत की हार का जश्न मनाना आम बात थी। हाल के कुछ वर्षों में कश्मीरी युवाओं का यूपीएससी जैसी अखिल भारतीय परीक्षाओं में चयन का प्रतिशत बढ़ा है जिसे आतंकवाद से इतर कश्मीरी युवा के दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन ये भी सच है कि ऐसे कई यूपीएससी चयनित आईएएस कश्मीरी अफसरों ने नौकरी छोड़कर राजनीति का दामन थाम लिया और आज़ाद कश्मीर की मांग करने लगे। दूसरी ओर उत्तर-पूर्वी राज्यों के युवा जिन्हें अपने क्षेत्र में मूलभूत सुविधायें भी उपलब्ध नहीं हैं, वे अधिकतर विभिन्न भारतीय सशस्त्र बलों में शामिल होकर देश के नाम अपना जीवन क़ुर्बान कर देते हैं। उत्तर-पूर्व के जिन लोगों को हम उनके रंग-रूप और शारीरिक बनावट के आधार पर "चाईनीज़" कहकर चिढ़ाते हैं, उन्होंने कभी भारत के खिलाफ चीन की वक़ालत नहीं की जैसे कश्मीरी पाकिस्तान की करते हैं। वे अच्छी हिंदी बोलते और समझते हैं न कि पश्तो! विकास के मामले में केंद्रीय सरकारों की दशकों तक इतनी उपेक्षा झेलने के बाद भी उत्तर-पूर्व के लोगों की अपने देश के प्रति ईमानदारी कभी कम नहीं हुई। इतिहास गवाह रहा है कि जिस अरुणाचल प्रदेश पर चीन अपना दावा करता है वहाँ के लोगों ने स्थानीय स्तर पर हमेशा भारतीय सेना की मदद की है। हम 1962की हार से इतना भयाक्रांत हुए कि उसके बाद किसी भी सरकार ने चीन से लगे सीमावर्ती गॉंवों में सड़क बनाने की हिम्मत नहीं की जबकि चीन इन्हीं गाँवों तक बिना किसी रुकावट के सड़क मार्ग से अपनी पहुंच बनाता रहा। अब जब हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने इन गांवों में सड़कें बनाना, हवाई पट्टी बनाना और अन्य विकास कार्य आरंभ किये तो चीन की बौखलाहट हम सभी के सामने यदा-कदा सीमा पर तनाव के रूप में सामने आ रही है। ये बहुत सुखद परिवर्तन हुआ है कि देश का एक बहुत खूबसूरत और अहम हिस्सा जिसे अभी तक भगवान भरोसे और चीन के रहमो-करम पर छोड़ दिया गया था, वर्तमान सरकार वोट बैंक की राजनीति से परे जाकर इस क्षेत्र के विकास के लिए भरसक प्रयत्न कर रही है। हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाले देश के सबसे लंबे पुल की नींव रखी गयी जो असम और मेघालय को जोड़ेगा, ऐसे कई पुल वर्तमान सरकार के प्रयासों से उत्तर-पूर्व के राज्यों में बनकर तैयार हो चुके हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी जी ऐसे पहले और अनोखे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने देश के इन छोटे राज्यों को अपनी प्राथमिकता सूची में शामिल किया है।

सोनल"होशंगाबादी"