होश वालों की कहां है कद्र अब मेरे शहर में
खुल गए हर मोड़ पर मयखाने अब मेरे शहर में!
ज़िंदगी छलक रही है बाहर जिन हाथों सेवो कहते हैं कि साग़र से छलकता जाम ही तो है!
शायद अपना अपना देखने का नज़रिया है
सारे ग़मज़दा शराबी तो नहीं,
वो कहते हैं कि पीते हैं ग़म भुलाने को!
शायद अपना अपना देखने का नज़रिया है
ज़िंदगी से बड़ी मसर्रत क्या होगी,
वो कहते हैं उन्हें सुरूर का शौक़ है!
शायद अपना अपना देखने का नज़रिया है
लड़खड़ाते कदमों से चले जाते हैं,
वो कहते हैं उन्हें शराब का ही सहारा है!
शायद अपना अपना देखने का नज़रिया है
नशा समाज की हर बुराई की जड़ है,
वो कहते हैं हुक़ूमत की कमाई का अहम ज़रिया है!
शायद अपना अपना देखने का नज़रिया है
सर झुकाकर निकलते हैं शरीफ़ जहाँ से,
वो कहते हैं नए ज़माने के नौजवानों का चलन है!
शायद अपना अपना देखने का नज़रिया है
निकलो ज़रा संभलकर हर गली कूचे से,
मदहोश है फिज़ा भी अब मेरे शहर में!
होश वालों की कहां है कद्र अब मेरे शहर में
खुल गए हर मोड़ पर मयखाने अब मेरे शहर में!
- सोनल"होशंगाबादी"