रंगों से भरी मुट्ठियां जैसे मचल रही हों आज़ाद होने को,
पानी से भरी बाल्टीयां जैसे बेचैन हों बादलों की तरह बरसने को,
पल भर को भी नज़र हटी और दुर्घटना घटी,
आज़ाद हो उड़ा गुलाल मुट्ठी से, बरस पड़ा पानी बाल्टी से,
बरसाने की गलियों तक होली की है धूम,
भांग ठंडाई पीकर लोग रहे हैं झूम,
ब्रज की रज को शीश नवा तू और जा दुनिया को भूल
रंग बदलते लोगों पर किसने ये रंग है डाला
लाल पीला हरा गुलाबी मानो इंद्रधनुष हो छाया
सबके मुख पर राधे राधे, हृदय में बांके बिहारी
अब रंग निकालने की कवायद है सबसे भारी
मलें उबटन,साबुन,शैंपू और ढेर सारा पानी
तन तो उजला हो गया पर मन है अब भी काला रे
मन को साफ करने का तूने कोई जतन न जाना रे
गिले शिकवे और बैर की जब मन में न रहेगी कोई जगह
दुश्मन को भी गले लगाने की मिल जाएगी कोई वजह
तब फिर से आना बिरज की इन गलियों में
मन का सारा बोझ उतारकर आना बिरज की इन गलियों में
और फ़िर मस्ती में कहना "जोगीरा सा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा"
सोनल"होशंगाबादी"