Wednesday, 27 November 2024

रोज़ का है

यूं तो मैं शराबी नहीं मगर मयखाने के सामने से मेरा गुजरना रोज़ का है,
यूं तो मैं परवाना नहीं मगर तेरी यादों में मेरा जलना रोज़ का है
यूं तो मैं आशिक़ नहीं मगर चांद को मेरा निहारना रोज़ का है
यूं तो मैं शायर नहीं मगर तेरी तारीफ़ में मेरा क़शीदे पढ़ना रोज़ का है
यूं तो मैं दिलजला नहीं मगर तेरी गली में मेरा जाना रोज़ का है
यूं तो मैं कहीं ठहरता नहीं मगर तेरे साथ मेरे वक़्त का थम जाना रोज़ का है
यूं तो नेकनीयत हूं मैं मगर तुझे देखकर अरमानों का मेरे मचल जाना रोज़ का है
यूं तो बेनूर हूं मैं मगर तेरे चेहरे के नूर से मेरा रोशन हो जाना रोज़ का है
यूं तो मैं मुल्हिद हूं मगर दुआ में ख़ुदा से तुझी को मेरा मांगना रोज़ का है
यूं तो मैं नसीबों वाला नहीं मगर तेरे आने से घर में मेरे बरकतों का आना रोज़ का है
तू अल्लाह है,रब है या है भगवान, तेरी इबादत में मेरा सर झुकाना रोज़ का है
तेरा इश्क़ है समंदर से भी गहरा और उसमें मेरा डूब जाना रोज़ का है
यूं तो मैं कुछ कहता नहीं फ़िर भी मेरा तुझसे शिकवा करना रोज़ का है
यूं तो कोई उम्मीद नहीं तुझसे फ़िर भी तुझसे मेरा रूठ जाना रोज़ का है
वैसे तो पत्थर दिल हूं मैं फ़िर भी मेरे दिल का टूट जाना रोज़ का है
यूं तो मुझे भी मोहब्बत नहीं तुझसे, मगर तेरे इंतज़ार में मेरा तड़पना रोज़ का है
यूं तो छोड़ना चाहता हूं मैं भी तुझे मगर तेरी जुदाई के खयाल से मेरा डरना रोज़ का है
यूं तो मैं अकेला ही हूं सफ़र में मगर तेरे साथ होने का गुमान होना रोज़ का है।
यूं तो तुझे पाने की ख्वाहिश भी नहीं मुझे,मगर क्या करूं मेरी किस्मत का पलट जाना रोज़ का है!

सोनल "होशंगाबादी"

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