D queen of Jhansi Rani Laxmibai is a true inspiration for all the women who fought bravely against British army with a limited no of resources. At d time wn most of the Indian rulers like Gwalior maharaj Scindia were sitting idle in shelter of East India company, Rani Laxmibai a fearless lady ws utterly involved in d Indian rebellion for freedom in 1857 against the British rule. She was a wife,a mother,a widow,a queen and a freedom fighter who fought & died for the nation. She inspires all d ladies to raise ur voice against any kind of injustice whether it's been in ur home, in ur family, in ur office or in d society as well. Don't b afraid of such coward men as it's scientifically proven dt either physically, mentally or emotionally women are far more stronger than men so jst stop keep sitting silent & b fearless like Mardaani Jhansi ki Rani Laxmibai.
Thursday, 23 May 2019
मैं हिन्दू हूँ
मैं ब्राम्हण हूं
जब मै पढता हूँ और पढ़ाता हूँ
मैं क्षत्रिय हूँ
जब मैं अपने परिवार की रक्षा करता हूँ
मैं वैश्य हूँ
जब मैं अपने घर का प्रबंधन करता हूँ
मैं शूद्र हूँ
जब मैं अपना घर साफ रखता हूँ
ये सब मेरे भीतर है इन सबके सयोंजन से मै बना हूँ
क्या मेरे अस्तित्व से किसी एक क्षण भी इन्हे अलग कर सकते है क्या किसी भी जाति के हिन्दू के भीतर से ब्राहमण,क्षत्रिय ,वैश्य या शुद्र को अलग कर सकते है?
वस्त्तुतः सच यह है कि हम सुबह से रात तक इन चारो वर्णो के बीच बदलते रहते हैं।
मुझे गर्व है कि मैं एक हिंदू हूँ
मेरे टुकड़े टुकड़े करने की कोई कोशिश न करे।
बीते शनिवार रविंद्र नाट्यगृह में मुझे लगभग 10महीने बाद आध्यात्मिक गुरु और विश्व भर में हनुमान चालीसा के द्वारा ध्यान का प्रचार-प्रसार करने वाले एवं उज्जयिनी में "शांतम" के संस्थापक परम ज्ञानी पंडित विजयशंकर मेहता जी को पुनः सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पंडितजी के व्याख्यान का विषय था "संबंधों में समरसता के सूत्र", व्याख्यान की शुरुआत में संबंधों या रिश्तों का महत्व बताते हुए पंडितजी कहते हैं कि संबंध बनाना और बिगाड़ना तो बहुत सरल है लेकिन संबंध निभाना सबसे कठिन काम है,ख़ासकर आज के समय में जब हमारे रिश्तों में पारदर्शिता का अभाव है। आज के युग में पारदर्शिता की जगह संदेह ने ले ली है।
पंडितजी ने बताया कि रिश्ते चार तरह से बनाये जाते है- पहला शरीर से,दूसरा मन से,तीसरा हृदय से और चौथा आत्मा से। पंडितजी कहते हैं कि शरीर से बनाये रिश्ते में मस्ती होना चाहिए,मन के रिश्ते में भोलापन, हृदय के रिश्ते में निर्भयता होनी चाहिए लेकिन इन सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता वो है जो आत्मा से जुड़ा होता है और वो आत्मा से इसलिए जुड़ा होता है क्योंकि इस रिश्ते में विश्वास होता है जो किसी भी मज़बूत रिश्ते के लिए नींव की तरह होता है।
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