बीते शनिवार रविंद्र नाट्यगृह में मुझे लगभग 10महीने बाद आध्यात्मिक गुरु और विश्व भर में हनुमान चालीसा के द्वारा ध्यान का प्रचार-प्रसार करने वाले एवं उज्जयिनी में "शांतम" के संस्थापक परम ज्ञानी पंडित विजयशंकर मेहता जी को पुनः सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पंडितजी के व्याख्यान का विषय था "संबंधों में समरसता के सूत्र", व्याख्यान की शुरुआत में संबंधों या रिश्तों का महत्व बताते हुए पंडितजी कहते हैं कि संबंध बनाना और बिगाड़ना तो बहुत सरल है लेकिन संबंध निभाना सबसे कठिन काम है,ख़ासकर आज के समय में जब हमारे रिश्तों में पारदर्शिता का अभाव है। आज के युग में पारदर्शिता की जगह संदेह ने ले ली है।
पंडितजी ने बताया कि रिश्ते चार तरह से बनाये जाते है- पहला शरीर से,दूसरा मन से,तीसरा हृदय से और चौथा आत्मा से। पंडितजी कहते हैं कि शरीर से बनाये रिश्ते में मस्ती होना चाहिए,मन के रिश्ते में भोलापन, हृदय के रिश्ते में निर्भयता होनी चाहिए लेकिन इन सबसे महत्वपूर्ण रिश्ता वो है जो आत्मा से जुड़ा होता है और वो आत्मा से इसलिए जुड़ा होता है क्योंकि इस रिश्ते में विश्वास होता है जो किसी भी मज़बूत रिश्ते के लिए नींव की तरह होता है।
No comments:
Post a Comment