जब भी सीमा पर तनाव होता है अगले दिन हमें दोनों तरफ़ के सैनिकों के मौत के आंकड़े देखने-सुनने को मिलते हैं। कल ख़बर आई कि चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ में 20भारतीय जवान शहीद हो गए और उसके तुरंत बाद से ही चीनी सैनिकों की मौत के आंकड़े को लेकर आशंकायें जताई जाने लगीं,फ़िर आज अमेरिकी खुफ़िया एजेंसी ने लगभग 40चीनी सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि की है। आज अचानक मन में विचार आया कि क्या होता अगर 40की जगह सिर्फ़ 10चीनी सैनिक ही मरे होते,उससे भी बदतर अगर हमारे जवान शहीद हो जाते और एक भी चीनी सैनिक के मारे जाने की पुष्टि न होती तो हमारी प्रतिक्रिया क्या होती? क्या हमारे देश की सेना के प्रति हमारा सम्मान केवल मृत दुश्मन सैनिकों के आंकड़े पर निर्भर करता है? कल अगर 40चीनी सैनिक न मरे होते तो हमारी सरकार को निकम्मा घोषित कर दिया जाता। आज हमारी मानसिकता केवल और केवल तात्कालिक प्रतिशोध लेने पर आधारित हो गयी है, क्या सेना को अपनी सारी रणनीतियां ख़ून का बदला ख़ून से लेने की लघुकालिक नीति के अनुसार बनाना चाहिए? हमारी सेना दुश्मन को ईंट का जवाब पत्थर से देना जानती है और तत्कालीन नेतृत्व ने भी सेना को अपने हिसाब से काम करने की छूट दे रखी है। पहले की सरकारों की तरह शांति-सद्भाव के नाम पर हमारी सेना के हाथ अब बंधे हुए नहीं हैं। लेकिन हमारे देश में विपक्षी नेता सिर्फ़ सरकार को घेरने के लिए सेना की कार्यवाही का विश्लेषण करने लगते हैं,विरोधी सेना को हुए नुकसान का सबूत मांगने लगते हैं। क्या हमेशा जान हथेली पर रखकर चलने वाले सैनिकों का शौर्य सिर्फ़ इस पैमाने पर मापा जा सकता है कि उन्होंने कितने दुश्मन सैनिकों को मारा? क्या नेता,आप और हम उन विषम परिस्थितियों का आंकलन करने के लायक भी हैं जिनका सामना करके ये बहादुर सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं? लेकिन हाल के कुछ वर्षों में जो ये परंपरा चल पड़ी है कि सैनिकों के शहीद होने पर हम बिना कूटनीतिक स्थितियों को जाने सेना को प्रतिशोध के लिए उकसाने लगते हैं, ज़ाहिर है कि हमें सीमा पर जाकर नहीं लड़ना है इसलिए बोलना हमारे लिए बहुत आसान है कि सेना को बदला लेना चाहिए। सैनिकों की शहादत पर हमारे ख़ून में उबाल आना स्वाभाविक है,लेकिन सिर्फ़ कुछ किताबें पढ़कर या केवल फेसबुकिया ज्ञान के दम पर घर बैठे सेना की गतिविधि का पूर्वानुमान लगाना हास्यास्पद है। दुनिया की कोई भी सेना भावावेश के अतिरेक में नहीं बल्कि एक पूरी रणनीति बनाकर दुश्मन पर हमला करती है और मामला और भी संवेदनशील हो जाता है जब दुश्मन हमसे अधिक मज़बूत हो। युद्ध छिड़ने पर दोनों ही तरफ़ का नुकसान होता है इसीलिए कोई भी देश प्रत्यक्ष रूप से युद्ध नहीं चाहता और हम जानते हैं कि जंग होने पर हमारी सेना किसी भी देश की सेना से लोहा लेने में सक्षम है,लेकिन दुश्मन को सबक सिखाने के नाम पर देश को युद्ध में झोंकने की लोगों की ये मानसिकता देश की सुरक्षा के लिए बहुत ही घातक है।
सोनल"होशंगाबादी"
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