Monday, 1 June 2020

ओ गंगा

ओ गंगा स्वर्ग की सरिता,
अविरल तेरा पावन जल बहता,
शंकर की जटाओं में तुम समायी,
धरती पर जीवन दायिनी कहलाई
भागीरथ तुम्हे धरा पर ले आये
अपने पूर्वजों का तारण पाए
फिर पृथ्वी पर लगी तुम रहने
धवल शीतल चंचल जल पहने
जैसे तुम थी कोई स्वर्ग की अप्सरा
सबको मोहित करती तेरी जलधारा
तेरे जल से सब पाप अपने धोने लगे
और तेरी शुध्दता हरने लगे
पापमोचिनी नाम बन गया तेरे लिए एक अभिशाप
मानों स्वयं तूने भी पिछले जन्म में किया हो कोई पाप
जिसके फल से कलियुग में प्रारंभ हुई तेरी दारुण कहानी
पापनाशिनी से तू अब बन गयी मैला-वाहिनी,
स्वर्ग की इस नदी की धरती पर हुई दुर्गति,
जाने कब श्वेता से श्यामा हो गयी भागीरथी,
गंगा मैया के चरणों में लोग पुष्प-नारियल चढ़ाने लगे
और गंगा नदी के जल में कूड़ा-करकट डालने लगे
और सरकारें इस जल-स्रोत पर बांध बांधने लगीं
गंगा-जमुना का संगम हमारी संस्कृति की पहचान है
और गंगा में नालों का संगम हमारे शहरीकरण का प्रमाण है
कई छोटी नदियों को जिस गंगा ने जीवनदान दिया,
अपशिष्ट उगलते कारख़ानों ने उस गंगा का जीवन छीन लिया
चिर यौवना गंगा समय से पहले ही बूढ़ी हो गयी
सरकारों का कोई योजना-लेप उसकी झुर्रियों को कम न कर पाया
हम होशंगाबादी तो माँ रेवा की गोद में जन्मे हैं
लेकिन गंगा की दुर्दशा से हमारा मन भी पसीजे है
अपने पुत्र भीष्म की तरह गंगा भी मृत्यु-शय्या पर है
किंतु मृत्यु के लिए नहीं, स्वअस्तित्व के लिए संघर्ष करती
फ़िर किसी भागीरथ के आने की प्रतीक्षा में रत है
किंतु इस बार सगर-पुत्रों के लिए नहीं, अपने उद्धार की बाट जोहती
सतत चलती रहती है गंगा-सागर की ओर
किंतु इस बार वापिस स्वर्ग में जाने को मचलती!
सोनल"होशंगाबादी"की क़लम से
अंत में गंगा दशमी की शुभकामनाएं..













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