Friday, 24 July 2020

Happiness is the key

Intelligent people share their knowledge & inspire others to get intelligence like them. We people talk about our achievements which is usually measured by our bank-balance in this materialistic world. There are many people to share knowledge or give free advice but very few are there to spread happiness. Happiness is something that can be achieved so easily yet very difficult to achieve. If i am asked to rank these things from lowest to highest position, then my order will be Money, Wisdom & above both of these will be Happiness. Many of the people may not be agreed on this but in my opinion, if you are not happy then all your money & knowledge would be wasted. On the other hand if you are happy then you can easily achieve knowledge & money. I think a person with a happy & cool mind can do anything in this world because he faces each & every obstacle of life with a great ease & a big smile on his face. Some people always share motivational quotes in their social media status, trust me any of these inspirational quotes never inspires me unless i am happy & if i am happy then literally i don't need any kind of such heavy bookish quotes to feel motivated. For me sharing happiness is more important than sharing intellect. Mother nature gives us a millions of reasons to be happy like sunshine, rain, glittering stars, animals, greenery & many more. These are a great source of happiness as well as they inspire us immensely to perform our duties without fail. They keep telling us that this world is so beautiful to live & we all are so privileged that we are born on this earth. We can easily find a profound form of happiness either in the laughs of the children, in togetherness of our family or after getting a warm hug by our loved ones. On the contrary, a successful but sad person can not find happiness despite having a luxurious life with all the comfort. Nothing in this world could ever inspire a person who is not happy by heart. Actually there is no need for some external inspiration to get success in your life as it will not last longer. So first try to be happy no matter what you are going through, this happiness will automatically create inner motivation in yourself that will lead you to achieve anything you want in your life. So Just BE HAPPY☺

Thursday, 23 July 2020

मन के भाव

मन के भाव हैं बूंदों जैसे 
कभी झूमकर बरसने वाले 
तो कभी मन में ही रह जाने वाले,
मन के भाव हैं मेघों जैसे 
कभी नीले मन पर सफ़ेद झाग की तरह
तो कभी वर्षा के काले घन की तरह,
मन के भाव हैं तारों जैसे 
कभी रोशनी से टिमटिमाने वाले 
तो कभी टूटकर बिखरने वाले,
मन के भाव हैं मरुस्थल की रेत जैसे 
बनते-बिगड़ते कल्पनाओं के टीले बनाते 
तो कभी मृग मरीचिका का एहसास कराते,
मन के भाव हैं पर्वतों जैसे 
कभी हिमालय से अचल और अडिग रहने वाले
तो कभी स्खलित हो धरा पर गिरने वाले,
मन के भाव हैं समंदर जैसे 
कभी ज्वार की तरह मचलते 
तो कभी एकदम शांत से दिखते 
मन के भाव हैं रंगों जैसे 
कभी श्वेत वर्ण से उजले, तो कभी श्याम रंग लिए स्याह 
कभी हरे रंग से प्रफुल्लित तो कभी सुनहरी आभा से प्रकाशित
मन के भाव हैं क्षणभंगुर 
कभी बर्फ़ की तरह पिघलते 
तो कभी ज्वालामुखी की तरह धधकते 
मन के भाव हैं संवेदनशील 
कभी एक उम्मीद से खिल उठते 
तो कभी एक चिंगारी से सुलग उठते 
मन के भाव हैं समय की रेत जैसे 
रोक पाना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं लहरों जैसे 
मोड़ पाना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं चंचल हिरण जैसे 
पकड़ पाना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं उफ़नती नदियों जैसे 
बांध पाना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं पंछियों जैसे 
क़ैद रखना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं विशाल महासागर जैसे 
थाह पाना जिसकी नामुमकिन है 
कभी कड़कती बिजलियों सा तो कभी गरजते बादलों सा मन
कभी दमकते जुगनुओं सा तो कभी अनमने जंगलों सा मन
कभी काग़ज़ की कश्ती पर सवार दुस्साहसी मन
कभी मिट्टी के घड़े सा कच्चा मन
कभी पुष्प सा नाज़ुक मन
कभी बुलबुले सा नश्वर मन
मन में छुपी कस्तूरी को कहाँ-कहाँ न ढूंढा मैंने 
दुनिया को समझ लिया पर मन को न समझा मैंने 
जिसने मन को जीत लिया वही विश्व-विजेता है ।
मन की लक्ष्मण रेखा को लांघ पाना सरल नहीं 
मन की गहराई को भाँप पाना सरल नहीं 
जिसने मन को साध लिया वही विश्व-विजेता है ।
मन के खग को कल्पना की उड़ान भरने दो 
मन की लहरों को मीलों तक बहने दो 
मन के चित्रकार को मनचाहे रंग भरने दो 
मन के दर्पण की धूल हटने दो
मन के मैल को धुलने दो
मन की आंखों को खुलने दो
संदेह के बादल छंटने दो
मत बांधो मन को आज़ाद रहने दो
न रहो मन के वश में लेकिन रहो न मन मसोसकर 
जिसने इस भेद को जान लिया वही तो विश्व-विजेता है ।
"होशंगाबादी" का मन तो मलंग है 
कहीं लग जाए तो बावरा और न लगे तो बैरागी है 
समझ जाए तो होशियार और न समझे तो अनाड़ी है । 

सोनल"होशंगाबादी" की क़लम से।







Tuesday, 14 July 2020

नेकी कर और दरिया में डाल

आपने ये कहावत ज़रूर सुनी होगी कि "नेकी कर और दरिया में डाल" जिसका अर्थ होता है किसी भी प्रकार के निजी लाभ की अपेक्षा किए बिना साफ़दिल से दूसरों की सहायता करना । इसका एक अर्थ ये भी है कि नेकी, मदद या दान के बारे में किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए अर्थात ये गुप्त होना चाहिए । ज़ाहिर है कि सोशल मीडिया के इस दौर में जहां प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक दिखावा करने पर आमादा है, ऐसे समय में लोगों के लिए गुप्त दान करना टेढ़ी खीर है । बहरहाल, इसका एक फायदेमंद पहलू ये भी है कि सोशल मीडिया पर फ़ोटो डालने के लिए ही सही लेकिन लोग गरीबों की मदद कर रहे हैं; हालांकि इस बात में संदेह है कि इन लोगों ने कभी अपने परिवार, आस-पड़ोस या दफ़्तर में किसी की मदद की होगी क्योंकि परिचितों की मदद करने के रास्ते में बहुत से दुनियावी आडंबर रोड़ा बनकर खड़े हो जाते हैं जैसे आपसी प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या और द्वेष आदि-आदि । भारत में पिछले दिनों कोरोना काल में काम-धंधा ठप होने के बाद बड़ी संख्या में प्रवासी मज़दूर बड़े-बड़े शहरों से पैदल ही अपने घर के लिए चल पड़े थे, अपने बच्चों को कंधे पर बिठाए भूखे-प्यासे ये मज़दूर गर्मी की कड़कती धूप में नंगे पैर हज़ारों किलोमीटर के सफ़र पर चलने के लिए मजबूर थे । ऐसी आपातकालीन परिस्थिति में कई शहरों में बहुत सारे लोगों और संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर इन मज़दूरों के खाने-पीने की व्यवस्था की जो इस बात का परिचायक है कि अभी भी हमारे अंदर संवेदना और करुणा जैसी मानवीय भावनाएं बची हुई हैं जो मानव समाज के लिए शुभ संकेत है ।
ऐसी मानवीय त्रासदी के बीच एक व्यक्ति प्रवासी मज़दूरों के लिए मसीहा बनकर सामने आया जिसने इन मज़दूरों के तकलीफ़ भरे सफ़र को आसान बना दिया । यूं तो एक अभिनेता के तौर पर इस चेहरे से हम सब पहले से ही वाक़िफ़ थे लेकिन एक सच्चे मददगार इंसान के रूप में इनका तारुफ़्फ़ हमें इस महामारी ने कराया । जी हाँ, मैं यहाँ बात कर रही हूँ फ़िल्मों में खलनायक का रोल निभाने वाले लेकिन असल जिंदगी के नायक सोनू सूद के बारे में... सोनू सूद का नाम सिर्फ़ चार अक्षरों का है लेकिन उन्होने मानवता की ऐसी मिसाल पेश की है कि आने वाली कई पीढ़ियाँ तक उनके नाम को याद रखेंगी ।  कोरोना काल में सोनू सूद ने लाखों प्रवासी मज़दूरों को अपने ख़र्च पर सकुशल उनके घर पहुंचाया, जिसके लिए उन्होने बस, ट्रेन यहाँ तक कि हवाई जहाज़ की भी व्यवस्था की । इसके साथ ही उन्होने इन मज़दूरों के समुचित खानपान के भी इंतज़ाम किए । लॉकडाउन के दौरान सभी सेलेब्रिटी घर पर ही अपना वक़्त गुज़ार रहे थे ,सिर्फ़ एक विज्ञापन से ही करोड़ों कमाने वाले हमारे बड़े-बड़े क्रिकेटर इस दौरान सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को फ़िटनेस चैलेंज देने में लगे थे वहीं हमारे चहेते फ़िल्मी सितारे ये दिखाने में व्यस्त थे कि लॉकडाउन में किस तरह वो अपने घर का काम स्वयं कर रहे हैं; तथाकथित रूप से सबके मददगार कहलाने वाले एक नामी अभिनेता ने लॉकडाउन का पूरा समय अपनी महिला मित्र के साथ अपने फ़ार्म हाउस पर बिताया और इस समय का सदुपयोग करते हुए 2-3 गाने भी बना डाले । दूसरी तरफ़ सोनू सूद जो दौलत और शौहरत दोनों में ही इन खिलाड़ियों और अभिनेताओं से काफ़ी पीछे हैं उन्होने अपने पास मौजूद समस्त संसाधनों का समुचित उपयोग करते हुए प्रवासी मज़दूरों को उनके घर पहुंचाने का बीड़ा उठाया । सोनू सूद ने ये काम तब शुरू किया जब सरकार के पास भी प्रवासी मज़दूरों की इस समस्या के लिए कोई बेहतर उपाय नहीं था क्योंकि सरकार भी इस तरह की स्थिति के लिए तैयार नहीं थी । ऐसे असंभव से लगने वाले काम को सोनू सूद और उनकी टीम ने बख़ूबी अंजाम दिया जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है । इसके बाद नाम आता है मशहूर अभिनेता अक्षय कुमार का जिन्होने सबसे पहले लगभग 25 करोड़ रुपये की बड़ी रक़म प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा की, इसके पहले भी अक्षय कुमार समय-समय पर भारतीय सेना के लिए भी आर्थिक मदद करते आए हैं । कोरोना संकट के कई सप्ताह गुज़रने के बाद और अपनी आय, व्यय और बचत का पूरा हिसाब-किताब कर लेने के बाद बाकी बड़े-बड़े सेलेब्रिटीस ने कुछ लाख रुपये की धनराशि राहत कोष या किसी संगठन को दान की,स्पष्ट है कि ये धनराशि इनके एक ट्वीट से होने वाली कमाई से भी कई गुना कम है और ये धनराशि भी शायद इसलिए दी गयी जब ऐसे वैश्विक संकट की घड़ी में इन लोगों द्वारा बरती जा रही कंजूसी पर लोग सवाल उठाने लगे । 
यहाँ मैं स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि मैं किसी के भी द्वारा की जाने वाली मदद या दान को पैसे की तराज़ू में नहीं तौल रही हूँ, लेकिन मदद करने का जज़्बा या दान करने की मंशा मेरे लिए मायने रखती है क्योंकि दान स्वेच्छा से किया जाना चाहिए न कि अपनी सामाजिक छवि या फ़ैन फॉलोइंग बरक़रार रखने के दबाव में ! एक बड़े पब्लिक फ़िगर होने के नाते आपके पास शासन-प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों से अच्छे संबंध हैं, आपका काम संभालने के लिए आपके पास पढे-लिखे युवाओं की प्रतिभाशाली टीम है, आपके पास आय के असीमित साधन उपलब्ध हैं और लॉकडाउन में सबका काम बंद होने की वजह से आपके पास भरपूर समय भी है; इतने साधन उपलब्ध होने के बावजूद इन नामी-गिरामी हस्तियों ने सिर्फ़ कुछ चंद रुपये का चेक साइन करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली.... वहीं दूसरी तरफ़ सोनू सूद ने इस विपत्ति की घड़ी में अपने घर से निकलकर ख़ुद ज़मीनी स्तर पर जाकर दिन-रात काम किया। उन्होने सही अर्थों में तन-मन-धन से राष्ट्र की सेवा की है ।
लगभग सभी धर्मों में दान को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है और अपनी आय का कुछ हिस्सा अनिवार्य रूप से दान करने के लिए कहा गया है । हिंदू धर्म में दान की अवधारणा केवल धन तक सीमित नहीं है, बल्कि विद्या दान, अन्न दान, कन्या दान, पिंड दान और गो दान को धन के दान से भी अधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है । इसीलिए भारत में प्राचीन काल से ही हिंदू सन्यासियों और बौद्ध भिक्षुकों के घर-घर जाकर भिक्षा मांगने की परंपरा रही है । मुझे आज भी याद है कि बचपन में हमारी कॉलोनी में एक साधु भिक्षा मांगने आया करते थे और प्रत्येक घर से महिलाएं या बच्चे उनके झोले में इच्छानुसार आटा डाल दिया करते थे, पर्व-त्योहार के समय उन्हें घर में बने पकवान भी दे दिये जाते थे, कोई भी उन्हे मना नहीं करता था । आज ये प्रथा ख़त्म हो चुकी है और निर्दोष साधुओं की नृशंस हत्याएँ की जा रही हैं । घर-घर जाकर भिक्षा मांगते सन्यासियों का स्थान सड़क किनारे बैठकर भीख मांगते ग़रीबों ने ले लिया है जिन्हे प्रायः लोगों से दुत्कार ही मिलती है । बड़े शहरों में बच्चों को अगवा कर उन्हे अपाहिज बनाकर भीख मँगवाने का गोरख-धंधा चलाया जा रहा है । हमारे यहाँ शादियों में एक रस्म की जाती है जिसमें होने वाला दूल्हा अपने परिवार की सभी महिलाओं से "भिक्षाम देहि" कहकर भिक्षा मांगता है और सभी स्त्रियाँ उसके झोले में आटा डाल देती हैं ।
भारतवर्ष में एक से बढ़कर एक महादानी हुए हैं जिनमे राजा बलि और दानवीर कर्ण का नाम सबसे ऊपर आता है । त्रेता युग में त्रिलोक के अधिपति राजा बलि ने भगवान विष्णु के अवतार वामन को तीन पग के बराबर भूमि दान करने का वचन दिया और जब वामनवातार ने अपने एक पग से संपूर्ण भूलोक और दूसरे पग में संपूर्ण देवलोक नाप लिया और भगवान के तीसरे क़दम के लिए कोई भूमि ही नहीं बची, तब असुर राजा बलि ने भगवान वामन को तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया था, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे महाबली की उपाधि प्रदान की । इसी प्रकार द्वापर युग में हमें परम दानी कर्ण का परिचय मिलता है जो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था । कर्ण का ये प्रण था कि रोज़ प्रातःकाल अपने इष्टदेव सूर्य की आराधना करने के बाद जो भी पहला व्यक्ति उससे आकर जो कुछ भी माँगेगा वो उसे दे देगा, इसी बात का फ़ायदा उठाकर महाभारत युद्ध से पहले देवराज इंद्र ने उसी समय आकर कर्ण से उसका जीवन-रक्षक कवच मांग लिया था। कर्ण ने ये जानते हुए भी कि इस कवच के बिना वो युद्ध में आसानी से अर्जुन के तीरों का निशाना बन सकता है, इंद्र को ये कवच दान कर दिया जिससे प्रसन्न होकर इंद्र ने कर्ण को दिव्य-शक्ति प्रदान की। 

" उपार्जितानाम वित्तानाम त्याग एव हि रक्षणम तड़ागोदरसंस्थानाम परीवाह इवाम्भसाम "
अर्थात कमाए हुए धन का त्याग करने से ही उसका रक्षण होता है, जैसे तालाब का पानी बहते रहने से ही तालाब साफ़ रहता है । हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि धन का संचय नहीं करना चाहिए अपितु इसे समाज सेवा के कार्यों में लगाना चाहिए , केवल संचय करते रहने से देवी लक्ष्मी नाराज़ होती हैं और संचित धन नष्ट हो जाता है। लेकिन शास्त्रों की अवधारणा के उलट आज के दौर में मनुष्य के जीवन की पहली प्राथमिकता ही धन संचय है। इसके पीछे लोग तर्क देते हैं कि वो अपने बच्चों के भविष्य के लिए पैसा जमा कर रहे हैं । इस संदर्भ में आचार्य विष्णु शर्मा ने अपने ग्रंथ पंचतंत्र में बहुत ही सुंदर बात कही है कि "पूत सपूत का धन संचय, पूत कपूत का धन संचय ", इसका अर्थ है कि सपूत या योग्य संतान के लिए धन संचय अनावश्यक है क्योंकि भविष्य में वो स्वयं ही धनार्जन करने के योग्य होगा और कपूत या अयोग्य संतान के लिए धन छोडकर जाना मूर्खता है क्योंकि वो इस धन को व्यर्थ के कामों में नष्ट ही करेगा।
हमारे सनातन ग्रंथों में विद्या, अन्न और कन्या को धन से भी अधिक मूल्यवान समझा गया है इसीलिए इनका दान सर्वोपरि माना गया है । ज़ाहिर है कि जिनके पास भी ये अमूल्य संपत्ति है उनका दर्जा समाज में सबसे ऊपर होना चाहिए । इसीलिए प्राचीन काल में विद्या देने वाले गुरु और अन्नदाता किसान को धनवान व्यक्ति से भी अधिक सम्मान दिया जाता था, लेकिन धीरे-धीरे रुपये-पैसे की चकाचौंध ने समाज में शिक्षक और किसान दोनों को ही हाशिये पर धकेल दिया और इसके बाद से ही नैतिक स्तर पर मानव समाज का पतन आरंभ हो गया । सनातन काल में कन्या के पिता को ये चिंता नहीं रहती थी कि बेटी के विवाह में कितना धन ख़र्च करना पड़ेगा, बल्कि उनकी चिंता ये होती थी कि उनकी इस अनमोल धरोहर के वरण करने योग्य योग्य वर को कैसे ढूंढा जाए? यही कारण है कि आज के आधुनिक समाज की संकीर्ण विचारधारा के विपरीत उस समय के भारतीय समाज में लड़कियों को ख़ुद अपना वर चुनने की आज़ादी प्राप्त थी जिसके लिए भव्य स्वयंवरों का आयोजन किया जाता था । इन स्वयंवरों में अधिकांशतः किसी प्रतियोगिता का आयोजन होता था जिसे जीतकर पुरुष को अपनी योग्यता को साबित करना पड़ता था । विवाह के परिप्रेक्ष्य में लड़के वाले याचक हैं जो लड़की वालों के पास रिश्ता लेकर याचना करने (हाथ मांगने) आते हैं; स्पष्ट है कि वधू पक्ष का स्थान वर पक्ष से ऊपर है क्योंकि लड़की के पिता के पास कन्या रूप में एक अनमोल धन है जिसे वो लड़के वालों को स्वेच्छा से दान करते हैं । लेकिन दुख की बात है कि कालांतर में पुरुष प्रधान समाज में इस वैवाहिक परिदृश्य को सुनियोजित तरीके से पूर्णतया परिवर्तित करके वर पक्ष को मज़बूत और कन्या पक्ष को कमज़ोर सिद्ध करने वाला बना दिया गया , इसी कारण लोग बेटियों को अनमोल रत्न के स्थान पर बोझ समझने लगे और इसी के साथ प्रादुर्भाव हुआ पुत्र-मोह और लैंगिक भेदभाव का जिसका खामियाज़ा हमारी कई पीढ़ियों ने भुगता है और ये अभी भी जारी है । बेटियाँ तो वो हैं जिनका कोई मोल नहीं होता जबकि बेटों को तो दहेज के बाज़ार में कम-अधिक मोलभाव करके आसानी से ख़रीदा और बेचा जा सकता है, इसीलिए कन्यादान को हमारे शास्त्रों में इतना अधिक महत्व दिया गया है ।
दुनिया में मुट्ठी भर अमीर लोगों के पास विश्व की आधे से अधिक संपत्ति है जिसका हिस्सा कुछ छोटे देशों की जीडीपी से भी बड़ा है । स्पष्ट है कि दुनिया के आर्थिक विकास में इनका योगदान काफ़ी अहम है । लेकिन आर्थिक योगदान के साथ ये देश और दुनिया के सामाजिक विकास में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, परंतु धन संचय की प्रवृत्ति रखने वाला मनुष्य चाहे दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति ही क्यों न बन जाए मन से वो ग़रीब ही रहेगा । इस मामले में बिल गेट्स और वारेन बफ़े जैसे अरबपति दुनिया भर के अमीरों के लिए प्रेरणा-स्त्रोत हैं जिन्होने अपनी आधी से अधिक जायदाद वंचितों, शोषितों और ग़रीबों के विकास के लिए दान कर दी है । साल 2000 में स्थापित बिल और मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन विश्व का सबसे बड़ा निजी चैरिटेबल ट्रस्ट है जो ग़रीबी उन्मूलन और शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए एशिया और अफ्रीका के ग़रीब और विकासशील देशों में सक्रिय है । साल 2010 में बिल गेट्स और वारेन बफ़े ने सभी अरबपतियों के लिए "गिविंग प्लेज़" नाम से एक कैम्पेन शुरू किया था जिससे वर्तमान में 200 से भी अधिक रईस जुड़े हुए हैं। इस कैम्पेन से जुड़े रईस ये शपथ लेते हैं कि वे अपनी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा दान करेंगे । हाल ही में अपनी संपत्ति का एक और बड़ा भाग दान करने के कारण वारेन बफ़े अरबपतियों की सूची में भारतीय कारोबारी और एशिया के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अंबानी से एक पायदान नीचे आ गए हैं; लेकिन सही अर्थो में वारेन बफ़े और बिल गेट्स जैसे परोपकारी लोग पैसे के इस नफ़ा-नुकसान के गणित से बहुत आगे निकाल चुके हैं । कोरोना महामारी के दौर में पश्चिमी देशों के अनेक धनी व्यवसायियों ने स्वेच्छा से जन-कल्याण के उद्देश्य से अपने देश की सरकारों को अधिक कर देने की पेशकश की है । दुनिया के छठे सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी रिलायंस फ़ाउंडेशन के माध्यम से सामाजिक उत्थान के कई कार्य करती हैं । हालांकि अपने रहने के लिए विश्व का सबसे बड़ा और आलीशान घर बनवाने वाले और आए दिन बॉलीवुड और क्रिकेट के सितारों से रोशन महफ़िलें सजाने के शौकीन अंबानी क्या कभी संपत्ति दान करने के मामले में बिल गेट्स और वारेन बफ़े को टक्कर दे पाएंगे, इसमें मुझे संदेह है । यहाँ विप्रो के चेयरमैन अज़ीम प्रेमजी का उल्लेख करना आवश्यक है जो "गिविंग प्लेज़" से जुड़ने वाले पहले भारतीय अमीर हैं। अज़ीम प्रेमजी अब तक अपनी कुल संपत्ति का लगभग आधा हिस्सा अज़ीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन के ज़रिये विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए दान कर चुके हैं । कहने का तात्पर्य यही है कि जिनके पास अपार संपत्ति है, उन्हें अपनी शानो-शौक़त और भोग-विलास की सुविधाओं पर मनमाना ख़र्च करने की बजाय अपनी इस अकूत दौलत का इस्तेमाल समाज में हाशिये पर जीने को मजबूर लोगों की मदद के लिए करना चाहिए । 
एक बार एक अमीर आदमी ने कहा था कि मैं रोज़ाना सैंकड़ों ग़रीबों की आर्थिक मदद करता हूँ लेकिन मैं किसी को भी पैसे देते समय उसके चेहरे की ओर नहीं देखता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि उसे देखने पर न चाहते हुए भी मेरे चेहरे पर गर्व का भाव आ जाएगा और उसके चेहरे पर लज्जा और मजबूरी के भाव होंगे कि उसे मुझसे पैसे मांगने पड़ रहे हैं इसीलिए उसका आत्म-सम्मान बनाए रखने के लिए मैं उसके चेहरे की तरफ़ नहीं देखता ।  जो व्यक्ति मदद करने या दान देने की स्थिति में होता है लोग उसी के पास कुछ मांगने आते हैं, अतः अगर कोई आपके पास कुछ उम्मीद लेकर आए तो कोशिश करें कि आप उसे निराश न करें; क्योंकि आपको भगवान का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि भगवान ने आपको किसी को कुछ दे पाने की हैसियत दी है लेकिन कभी इस बात का अहंकार न करें क्योंकि वक़्त बदलते देर नहीं लगती।

Friday, 10 July 2020

बारिश का मौसम

टिप टिप बरसती बूँदों का मौसम
काले गरजते मेघों का मौसम
तेज़ कड़कती बिजलियों का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

धरती की प्यास बुझाने का मौसम
आसमानी इंद्रधनुष के चमकने का मौसम
धरा के हरी चादर ओढ़ने का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

पेड़ों पर बहार आने का मौसम
शांत नदियों के मचलने का मौसम
सूखे तालों की तृप्ति का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

प्रेमियों के मिलन का मौसम
विरह की तपिश का मौसम
सावन के झूलों का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

नाचते मोर के प्रणय निवेदन का मौसम
उछलते मेंढ़कों के टर्राने का मौसम
व्याकुल पपीहे की तृष्णा बुझाने का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

प्रकृति के सौम्य और रौद्र रूप का साक्षी मौसम
केदारनाथ और केरल की बाढ़ का मौसम
विदर्भ की अंतिम आस का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

प्रकृति-जन्य मधुर संगीत का मौसम
तानसेन के राग मल्हार गाने का मौसम
कालिदास के मेघदूत की रचना का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

अरब के रेगिस्तान की उम्मीदों का मौसम
थार की बंजर ज़मीन पर फूटती कोपलों का मौसम
अफ़्रीकी हाथियों और जिराफों की मुरादों का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

काग़ज़ की कश्तियों को तैराने का मौसम
पानी भरे गड्ढों में छपाक से कूदने का मौसम
बचपन को फ़िर से ज़िंदा करने का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

भूले-बिसरे गीतों को सुनने का मौसम
बालकनी से बूंदों को निहारने का मौसम
चाय की चुस्कियों और पकौड़ों की गर्माहट का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

ग़रीब की झोंपड़ी की मरम्मत का मौसम
किसान की प्रार्थनाओं का मौसम
गीले कपड़े सुखाने की जुगाड़ का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

तेजस्वी रवि का अहं टूटने का मौसम
कीचड़ से कपड़ों के मैला होने का मौसम
किंतु मन की निराशा को साफ़ करने का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

मन की कस्तूरी के भागने का मौसम
और भागती गाड़ियों को रोकते बरसाती नालों का मौसम
सरकारी टेंडर की पोल खोलती धंसती पुलियाओं का मौसम
ये है बारिश का मौसम।

"होशंगाबादी" के कवि हृदय की कल्पनाओं का मौसम
नव-अंकुरण,नव-सृजन और नव-तरंग का मौसम
गर्मी के बाद बारिश जैसे दुख के बाद सुख आने का मौसम,
ये केवल बारिश का मौसम नहीं, ये तो है जीवन का मौसम।
सोनल"होशंगाबादी" की क़लम से।