Thursday, 23 July 2020

मन के भाव

मन के भाव हैं बूंदों जैसे 
कभी झूमकर बरसने वाले 
तो कभी मन में ही रह जाने वाले,
मन के भाव हैं मेघों जैसे 
कभी नीले मन पर सफ़ेद झाग की तरह
तो कभी वर्षा के काले घन की तरह,
मन के भाव हैं तारों जैसे 
कभी रोशनी से टिमटिमाने वाले 
तो कभी टूटकर बिखरने वाले,
मन के भाव हैं मरुस्थल की रेत जैसे 
बनते-बिगड़ते कल्पनाओं के टीले बनाते 
तो कभी मृग मरीचिका का एहसास कराते,
मन के भाव हैं पर्वतों जैसे 
कभी हिमालय से अचल और अडिग रहने वाले
तो कभी स्खलित हो धरा पर गिरने वाले,
मन के भाव हैं समंदर जैसे 
कभी ज्वार की तरह मचलते 
तो कभी एकदम शांत से दिखते 
मन के भाव हैं रंगों जैसे 
कभी श्वेत वर्ण से उजले, तो कभी श्याम रंग लिए स्याह 
कभी हरे रंग से प्रफुल्लित तो कभी सुनहरी आभा से प्रकाशित
मन के भाव हैं क्षणभंगुर 
कभी बर्फ़ की तरह पिघलते 
तो कभी ज्वालामुखी की तरह धधकते 
मन के भाव हैं संवेदनशील 
कभी एक उम्मीद से खिल उठते 
तो कभी एक चिंगारी से सुलग उठते 
मन के भाव हैं समय की रेत जैसे 
रोक पाना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं लहरों जैसे 
मोड़ पाना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं चंचल हिरण जैसे 
पकड़ पाना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं उफ़नती नदियों जैसे 
बांध पाना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं पंछियों जैसे 
क़ैद रखना जिसे नामुमकिन है 
मन के भाव हैं विशाल महासागर जैसे 
थाह पाना जिसकी नामुमकिन है 
कभी कड़कती बिजलियों सा तो कभी गरजते बादलों सा मन
कभी दमकते जुगनुओं सा तो कभी अनमने जंगलों सा मन
कभी काग़ज़ की कश्ती पर सवार दुस्साहसी मन
कभी मिट्टी के घड़े सा कच्चा मन
कभी पुष्प सा नाज़ुक मन
कभी बुलबुले सा नश्वर मन
मन में छुपी कस्तूरी को कहाँ-कहाँ न ढूंढा मैंने 
दुनिया को समझ लिया पर मन को न समझा मैंने 
जिसने मन को जीत लिया वही विश्व-विजेता है ।
मन की लक्ष्मण रेखा को लांघ पाना सरल नहीं 
मन की गहराई को भाँप पाना सरल नहीं 
जिसने मन को साध लिया वही विश्व-विजेता है ।
मन के खग को कल्पना की उड़ान भरने दो 
मन की लहरों को मीलों तक बहने दो 
मन के चित्रकार को मनचाहे रंग भरने दो 
मन के दर्पण की धूल हटने दो
मन के मैल को धुलने दो
मन की आंखों को खुलने दो
संदेह के बादल छंटने दो
मत बांधो मन को आज़ाद रहने दो
न रहो मन के वश में लेकिन रहो न मन मसोसकर 
जिसने इस भेद को जान लिया वही तो विश्व-विजेता है ।
"होशंगाबादी" का मन तो मलंग है 
कहीं लग जाए तो बावरा और न लगे तो बैरागी है 
समझ जाए तो होशियार और न समझे तो अनाड़ी है । 

सोनल"होशंगाबादी" की क़लम से।







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