Friday, 14 August 2020

आज़ादी

आज़ादी की आबो-हवा में सांस ले रहे है

खुशकिस्मत हैं कि हिंदुस्तान में जी रहे हैं

वतन पर क़ुर्बान होने वाले मरकर भी नहीं मरते
जोश-ए-जुनून की मिसालें बनकर हर घर में जिंदा रहते हैं
जंग-ए-आज़ादी के सिपाही कभी ख़ामोश नहीं होते
अफ़साना बनकर फ़िज़ाओं में गूंजा करते हैं
आज़ादी के परवाने आग से खेला करते हैं
शमा बनकर अंधेरी बस्तियों को गुलज़ार करते हैं
आज़ादी के दीवाने आंधियों में मशाल जलाते हैं
ज्वाला बनकर देशभक्तों के हृदय में दहका करते हैं
आज़ादी के रखवाले जान हथेली पर लिए चलते हैं
गुलशन बनकर सेहरा में महका करते हैं
आज़ादी के मतवाले तिरंगे में लिपटे आते हैं
सरफ़रोशी तमन्ना बनकर हर दिल में धड़का करते हैं
आज़ादी के पैरोकारों की शायद यही एक वसीयत होगी
सबको बराबरी से मिले ये जायदाद,कोई न इसमें हिमाक़त होगी
पर अमानत-ए-आज़ादी छोड़ गए किन बेफ़िकरे हाथों में
आज़ादी का अनमोल हीरा जड़ा गया चोरों की दाढ़ी में
भ्रष्ट सरकारों ने जब आज़ादी की इज़्ज़त लूट ली
तो केसरिया आज़ादी ने धर्मनिरपेक्षता की हरी चादर ओढ़ ली
केरल और बंगाल में आज़ादी पर अनुसंधान होने लगे
अब अभिव्यक्ति की आज़ादी के राजनीतिक अनुष्ठान होने लगे
"भारत तेरे टुकड़े होंगे" ऐसे मंत्रों के आवाहन होने लगे
आज़ादी की देवी जब उतरी जेएनयू के मैदान में
आज़ाद देश के मानसिक ग़ुलाम देश से आज़ादी मांगने लगे
आज़ादी के दामन पर असहिष्णुता का कीचड़ उछालने लगे
अड़ियल अमेरिका से गुस्ताख़ चीन तक
कट्टरपंथी अरब मुल्क़ों से नापाक पाकिस्तान तक
दमिश्क से बारूद के ढेर पर बैठे बेरूत तक
आज़ाद परिंदे "होशंगाबादी" की आरज़ू है बस इतनी कि
आज़ादी की अलख जगाओ,आज़ादी की हवस नहीं
आज़ादी के लिए अभिनंदन बनो,आतंकवादी नहीं।

सोनल "होशंगाबादी" की क़लम से।










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