Saturday, 20 February 2021

आशियाना

 ज़मीन का टुकड़ा अपने नाम करने की नहीं थी हसरत मुझे

स अपना मुक़ाम बनाने की चाह में एक मकान बना लिया मैंने।

दुनिया में आने का मक़सद चाहे और हो

लेकिन अपने हिस्से का दुनियावी दस्तूर निभा लिया मैंने।
यूँ तो मुसाफ़िर की सी है फ़ितरत मेरी
फ़िर भी ठहरने का एक ठिकाना बना लिया मैंने।
उस जहाँ में जन्नत नसीब हो या जहन्नुम
इस जहाँ में अपना स्वर्ग बना लिया मैंने।
पुश्तैनी दौलतें न रास आयीं कभी मुझे
अपनी ख़ुद की ये जागीर बना ली मैंने।
किसी और से नहीं है पहचान मेरी
अपने दम पर ये वजूद बना लिया मैंने।
ऊंची उड़ान भरनी अभी बाकी है
सीमेंट के इस जंगल में एक पेड़ लगा लिया मैंने।
अलहदा है शख़्सियत मेरी
रानी नहीं राजा बनकर अपना ये महल बना लिया मैंने
अपने हिस्से का दुनियावी दस्तूर निभा लिया मैंने।
                                   -सोनल"होशंगाबादी"

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