Tuesday, 22 January 2013

Jaago Re....


जागो रे ....
हालाँकि मैं जानती हूँ कि मेरे इन विचारों को इस  चेहरे की किताब पर चस्पा करते ही हमारे सभ्य और आधुनिक भारतीय समाज के कई लोग मेरे विरोध में तर्क देना शुरू कर  देंगे,क्योंकि ये तो हमारी पुरानी  आदत है कि  हम परायों के साथ मिलकर अपनों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं।हमें हमेशा अपनी ही चीज़ों में कमियां नज़र आती हैं चाहे वो हमारा धर्म हो,हमारे देश की संस्कृति या हमारे देश का रहन-सहन!हम हमेशा से ही विदेशो और विदेशी शिक्षा-संस्कृति से अनुगृहीत रहे हैं।इसीलिए आज देश की आधी से अधिक जनसँख्या अपने ही देश में अपने धर्म का अपमान होने पर भी मौन है!आज कुछ मुट्ठी भर राजनेताओं ने हमारे धर्म की अस्मिता को कलंकित करने के लिए एक नया शब्द ईजाद किया है "भगवा आतंकवाद "जिसका कोई अस्तित्व ही नही है।भगवा रंग जो विभिन्न परिप्रेक्ष्य में विविध रूपों में हमारे सामने आता है, कभी वो शहीद भगत सिंह के चोले  का बसंती रंग है,कभी वीर हनुमान के ब्रम्हचर्य का रंग है तो कभी हमारे राष्ट्र -ध्वज में केसरिया रंग के रूप में आकर शक्ति का प्रतीक बन जाता है।क्या ऐसा निर्मल भगवा रंग आतंकवाद का प्रतीक हो सकता है?लेकिन आज हम आधुनिक भारतियों के आगे इन बातों की कोई महत्ता नही।क्योंकि आज हमारे लिए राधा देवी नही रही बल्कि देवी राधा अब सेक्सी राधा बन चुकी हैं।ये हमारे लिए निहायती शर्म की बात है कि अब हम अपने पूजनीय देवी-देवताओं के लिए ऐसे अभद्र  शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं,शायद आगे हमे हॉट और आइटम जैसे  शब्दों का प्रयोग भी देखने  को मिल सकता है क्योंकि हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षित  हैं इसीलिए हमे हमारे धर्म के रीति -रिवाज पाखंड और आडम्बर लगते हैं।कुछ दिनों पहले एक फिल्म का पूरी दुनिया में ज़बरदस्त विरोध किया गया क्योंकि उससे एक धर्म विशेष के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी,लेकिन हम हिन्दुओं को न ही इस गीत में कुछ अपमानजनक लगा न ही उस फिल्म में जिसमे हमारे शंकराचार्यों को पाखंडी करार दे दिया गया और हिन्दू धर्म से जुडी समस्त धार्मिक क्रियाओं को आडम्बर नाम दे दिया गया।शायद इसी का प्रतिफल आज हमारे सामने है कि हम जैसे यज्ञ -अभिषेक -अनुष्ठान करने वाले हिन्दुओं को आतंकवादी की संज्ञा दी जा रही है।यहाँ गीता के उक्त श्लोक का उल्लेख करना अनिवार्य हो गया है-
"यदा -यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः ,
अभ्युथानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाभ्यहम।"  

जय हिन्द।

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