जागो रे ....
"इस फिल्म के सभी पात्र एवं घटनाएँ काल्पनिक हैं और इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नही है।अगर किसी व्यक्ति या घटना से कोई समानता पाई जाती है तो इसे एक केवल एक संयोग माना जाएगा।"हम लगभग हर हिंदी फिल्म के शुरू होने से पहले ये स्पष्टीकरण देखते हैं लेकिन आज ये महज़ एक औपचारिकता बनकर रह गया है !किसी भी कट्टर धार्मिक संगठन के लिए इसका कोई महत्त्व नही है।आज के कुछ बुद्धिजीवी देश में ऐसी स्थिति को सांस्कृतिक आपातकाल कह रहे हैं जिसकी गाज आये दिन गिर रही है निर्दोष साहित्यकारों और कलाकारों पर।लेकिन विडम्बना ये है कि आपातकाल लगाने वालों को तो शुरू से ही हमारे देश में पूजा जाता रहा है और आज भी वे लोग पूजे जाते हैं।हाल ही में इस आपातकाल का शिकार हुए एक श्रेष्ठ कलाकार ने इसे सांस्कृतिक आतंकवाद कहा है।इस तरह के आतंकवादी कब्ज़ा करना चाहते हैं इन कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर।उक्त कलाकार ने कहा कि अगर उनकी कृति को प्रदर्शित नही होने दिया जाता तो उन्हें ऐसे किसी देश में जाकर बसना होगा जहाँ धर्म-निरपेक्षता हो,धर्म-निरपेक्षता का दावा करने वाले हम भारतीयों के लिए ये निहायती शर्म की बात है।लेकिन हमारे देश के बुद्धिजीवियों का इस देश से पलायन करना कोई नया नही है,इसीलिए उक्त कलाकार की इस बात को किसी ने कोई तवज्जो नही दी।हमने सोचा चाहे जहाँ भी चले जाइये लेकिन कहलायेंगे तो भारतीय मूल के और भविष्य में आपको कोई भी सफलता मिलती है तो हम भारतीय मूल के उक्त कलाकार कहकर ही संतोष कर लेंगे।भले ही आप 4बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हों और पद्मश्री भी ग्रहण कर चुके हों!लेकिन हमारे देश में ऐसी प्रतिभा का सम्मान करने वाला कोई नही।उक्त कलाकार ने अपने आपको राजनीति का भी शिकार बताया।लेकिन कुछ राजनीतिज्ञ निर्माता-निर्देशक पर आरोप लगा रहे हैं कि इस कृति में एक समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाते हुए उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया है।वैसे राजनीति की कडाही में विवादों की दाल को ऐसे ही आरोपों के तडके लगाकर स्वादिष्ट बनाने का प्रयास किया जाता है अन्यथा ये दाल फीकी रह जाएगी।वैसे कोई व्यक्ति किसी समुदाय विशेष के प्रति अपने व्यक्तिगत वैमनस्य को प्रदर्शित करने के लिए करोड़ों रूपए आसानी से दांव पर लगा देगा,ये बात गले नही उतरती!
बहरहाल, इस कृति में अब पर्याप्त काट-छांट करने के बाद दक्षिण भारत में रिलीज़ किया जा रहा है या यूँ कहें की postmortum करने के बाद मृत शरीर को जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।और इस मृतप्राय शरीर की संजीवनी बूटी हमारे पास है इसीलिए मेरा सभी सिनेमा-प्रेमियों से अनुरोध है कि वे अधिक-से-अधिक संख्या में इस फिल्म को सिनेमा-हॉल में देखने जाएँ और इस फिल्म को सफल बनायें।
जय हिन्द।
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