Tuesday, 27 March 2018

Sangeet

पिछले हफ़्ते मुझे अपने शहर में मंत्रमुग्ध कर देने वाली संगीत की महफ़िल में शरीक़ होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ये महफ़िल सजाई गई थी महाराष्ट्र साहित्य सभा के सभागृह में,जैसा कि नाम से ही आप समझ गए होंगे कि ये आयोजन शहर के संभ्रांत मराठी समुदाय द्वारा किया गया था और मेरे वहां जाने का कारण थे हमारी कंपनी के कर्मठ कर्मचारी और अत्यंत ही प्रतिभाशाली कलाकार श्री प्रदीप विन्चुरकर जी। यहां तयशुदा समय पर ही कार्यक्रम शुरू हुआ और सर्वप्रथम कला की देवी माँ सरस्वती के सामने दीप-प्रज्ज्वलन करने के बाद संगीत से सजी सुरीली शाम का आग़ाज़ किया श्री विन्चुरकर जी और उनकी सुपुत्री अक्षता ने जिनकी तबला-सारंगी की बेजोड़ जुगलबंदी ने अपनी हर एक प्रस्तुति के बाद हम सभी श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। अक्षता ने शुरुआत की सारंगी पर शास्त्रीय राग रागेश्री से जो पुराने सदाबहार फ़िल्मी नग़मों पर तबले और सारंगी की जुगलबंदी से होते हुए पुनः शास्त्रीय राग मांड पर समाप्त हुई। इन दोनों कलाकारों की प्रस्तुति में इतनी गहराई थी जो कभी तो पूरे शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी तो कभी आंखों में पानी ला रही थी। कला के क्षेत्र में मराठी समुदाय और साहित्य के क्षेत्र में बंगाली समुदाय का जो योगदान है, वो अतुलनीय है। स्वर कोकिला लता मंगेशकर और नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर का उदाहरण हम सबके सामने है। लगभग 45मिनट की इस संगीतमयी यात्रा में आप इस क़दर खो जाते हैं कि अपनी सारी चिंताएं भूलकर बस संगीत के सुरों में डूब जाते हैं। उस समय शायद ऑक्सीजन की जगह संगीत मेरे लिए प्राणवायु का काम कर रहा था। मुझे हमेशा लगता है कि दुनिया के किसी भी धर्म में इतनी ताक़त नहीं जितनी कि संगीत में है। कलाकार के सुर अगर सच्चे हों तो वो आपको उस परम-सत्ता के बहुत नज़दीक ले जा सकते हैं। मेरे विचार में मंदिर में दिन भर पूजा-पाठ करने वाला पंडित भी शायद भगवान के इतने क़रीब नहीं पहुंच सकता, जितना एक संगीत साधक अपनी संगीत साधना के बल पर पहुंच सकता है। शायद अपनी इसी साधना के बल पर तानसेन और बैजू बावरा जैसे महान कलाकार अपने सुरों से दिए जला दिया करते थे और बिन सावन के बादल भी रो पड़ते थे।

Monday, 19 March 2018

शरणार्थी

"आओ लाल,झूलेलाल" हर साल की तरह इस साल भी हमारी कॉलोनी में चेटीचंड की सुबह का आग़ाज़ भगवान झूलेलाल जी के इन्हीं भजनों से हुआ,क्योंकि हमारी कॉलोनी में सिंधी समुदाय के काफ़ी लोग रहते हैं और ये लोग हर साल चेटीचंड का त्यौहार इसी तरह धूमधाम से मनाते हैं। ये सभी आज हिंदुस्तान में हंसी-ख़ुशी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं लेकिन इन परिवारों की पुरानी पीढ़ियों ने बंटवारे का दर्द झेला है। मूल रूप से पाकिस्तान के सूबे सिंध के रहने वाले ये लोग अरसा पहले अपने मादरे-वतन को छोड़ चुके हैं। चाहे सिंध के सिंधी हों,कश्मीर के कश्मीरी पंडित हों,फ़ारस(आज के ईरान) के पारसी हों या तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और लाखों की तादाद में उनके धर्मावलंबी, इन सबको अचानक से रातों-रात अपना घरबार और क़ारोबार सब कुछ छोड़कर भागना पड़ा है। आप और हम शायद इस तरह की परिस्थितियों का सामना कभी नहीं करना चाहेंगे और शायद हम इस तरह के शरणार्थी जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। सिंधी समुदाय के लोग अपना जमा-जमाया क़ारोबार छोड़कर आ गए, लेकिन अपनी कारोबारी कला को अपने साथ भारत ले आये और यहां मेहनत करके अपने व्यवसाय स्थापित किये और आज एक खुशहाल ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। ईरान से आये पारसी अपनी जान बचाकर सात समंदर पार करके भारत आये और साथ लाये अपनी ज़िंदादिली और खुशमिजाज़ी,आज मुम्बई और गुजरात के कई शहरों में इनकी अच्छी ख़ासी आबादी है और आज ये हमेशा क़ानून का पालन करने वाले,हंसी-ख़ुशी सबसे मिलकर रहने वाले सच्चे भारतीय हैं। दलाई लामा अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिमालय को पार करके भारत आये,भारत सरकार ने इन्हें हिमाचल प्रदेश के शहर धर्मशाला में बसने की अनुमति दी और बदले में इन्होंने इस पूरे क्षेत्र को अहिंसा और शांति की अपनी सीखों से लाभान्वित किया और भारत का मान बढ़ाया है। ये सभी समुदाय सम्मान के पात्र हैं क्योंकि इन्होंने विपरीत परिस्थितियों का सामना करके भी अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा की है। आज सीरिया और रोहिंग्यों पर आंसू बहाने वाले लोग शायद ये भूल गए हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है।

Friday, 16 March 2018

Women's day

तुम माँ की ममता हो,बेटी की चपलता हो
तुम बहन का स्नेह हो,अर्धांगिनी का समर्पण हो,
हाँ,तुम स्त्री हो।
तुम देवी हो,शक्ति हो
तुम प्रकृति हो,सृष्टि हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम सुंदर हो,सुशील हो
तुम संतोषी हो,बलिदानी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम अलसभोर की पहली किरण हो,रात की चांदनी हो
तुम दीपक की ज्योति हो,जुगनू की रोशनी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम हिमालय की ऊंचाई हो,महासागर की गहराई हो
तुम हिम की शीतलता हो,अग्नि की ज्वाला हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम ग्रीष्म की तपिश हो,वर्षा की ठंडी फ़ुहार हो
तुम बरगद की घनी छांव हो,बसंत बहार हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम प्रेम का सागर राधा हो,ममता का आँचल यशोदा हो
तुम कभी पति के अपमान पर अग्नि में कूदने वाली सती हो, तो कभी ख़ुद अपमान सहकर भी अग्नि-परीक्षा देने वाली सीता हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम कालिदास की कल्पना ,अजंता की आकर्षक मूरत हो
तुम ग़ालिब की ग़ज़ल हो,फ़ैज़ की शायरी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम यमराज से लड़ने वाली सावित्री हो, स्वाभिमान की मूरत पद्मावती हो
तुम अदम्य साहस की धनी लक्ष्मीबाई हो, त्याग और बलिदान की मिसाल पन्ना धाय हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम कल्पनाओं के परे जाने वाली कल्पना चावला हो, चीते सी रफ़्तार वाली पीटी उषा हो
तुम मानवता की मिसाल मदर टेरेसा हो,शिक्षा की मशाल मलाला हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
फ़िर क्यों हो तुम वहशियों की वासना का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम दहेज की लालसा का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम पुत्र-मोह की अभिलाषा का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम समाज की रूढ़िवादी सोच का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम घर की चार-दीवारी की दासता का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम पुरुषों की मानसिक ग़ुलामी का शिकार?
स्त्री!तुम बनो मत शिकार किसी का,ख़ुद करो शिकार तुम्हें कमतर मानने वाली पुरुषों की इस दकियानूसी सोच का।
अब तक तो सिर्फ़ मकानों को घर बनाती आयी हो, अब निर्माण करो एक उत्कृष्ट सोच वाले समाज का।
अब तक तो आईने में अपना रूप निहारते आयी हो, अब तुम्हें आईना दिखाना होगा सम्पूर्ण समाज को।
क्योंकि तुम स्त्री हो।
तुम्हारा दर्जा पुरुष के बराबर नहीं,उससे कहीं ऊंचा है।

धर्म और कलियुग

पिछले दिनों शहर के मॉल में एक बच्ची के साथ हुई दरिंदगी के बारे में बात करते हुए जब मैंने मम्मी से कहा कि कलियुग बहुत बढ़ रहा है,तब मेरी माँ ने मुझे जवाब दिया कि "धर्म भी बढ़ रहा है और जैसे-जैसे कलियुग बढ़ेगा,हमारा धर्म उतना ही मज़बूत होता जाएगा।" माँ का ये जवाब मुझे चौंका देने वाला था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वाक़ई ऐसा संभव है? और काफ़ी सोच-विचार करने के बाद मुझे लगता है कि ये बात काफ़ी हद तक सही है,क्योंकि भारत का इतिहास अनेकों क्रूरतम विदेशी आक्रमणकारियों से भरा पड़ा है जिन्होंने मूर्तियां खंडित करने, मंदिरों को गिराने और लूटने से लेकर जबरन धर्मांतरण करने तक सदियों हिन्दू धर्म को ख़त्म करने की कोशिशें कीं, यहां तक कि हमारे देश के वीर राजपूत शासकों ने भी इन आततायियों के आगे घुटने टेकते हुए इनसे विवाह संधियां करके भारतीय संस्कृति को दूषित किया। अफ़ग़ानिस्तान और इंडोनेशिया जैसे कितने ही देश जिनका उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है,वहां से हिंदू धर्म का लगभग सफ़ाया कर दिया गया। हिन्दू धर्म से काफ़ी बाद में आये धर्म तेज़ी से विश्व-पटल पर छा गए क्योंकि शुरुआत से ही इन धर्मों को मानने वालों की रणनीति अपने अनुयायियों को बढ़ाने की रही और इस रणनीति को सफल बनाने के लिए मानवता की सारी हदें उन्होंने पार कीं और ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। लेकिन इतनी सब कठिनाईयों के बावजूद आज हमारी पीढ़ी ज़िंदा है और हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ा रही है। अभी कुछ दिनों पहले ही हमारे प्रधानमंत्री एक कट्टरपंथी देश में एक भव्य मंदिर-निर्माण के लिए शिलान्यास करके आये हैं। पश्चिमी देशों के लोग तो हमेशा से ही हमारे धर्म और संस्कृति को बढ़-चढ़कर अपनाते आए हैं और मुझे लगता है कि ये चलन आगे आने वाले वर्षों में और बढ़ेगा जब ज़्यादा से ज़्यादा लोग हमारे धर्म की महत्ता को समझना शुरू करेंगे। इसलिए चाहे हम किसी भी जाति के हों ये महत्वपूर्ण नहीं है,सबसे पहले हम भारतीय हिन्दू हैं और इस बात का हमें गर्व होना चाहिए।