पिछले दिनों शहर के मॉल में एक बच्ची के साथ हुई दरिंदगी के बारे में बात करते हुए जब मैंने मम्मी से कहा कि कलियुग बहुत बढ़ रहा है,तब मेरी माँ ने मुझे जवाब दिया कि "धर्म भी बढ़ रहा है और जैसे-जैसे कलियुग बढ़ेगा,हमारा धर्म उतना ही मज़बूत होता जाएगा।" माँ का ये जवाब मुझे चौंका देने वाला था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वाक़ई ऐसा संभव है? और काफ़ी सोच-विचार करने के बाद मुझे लगता है कि ये बात काफ़ी हद तक सही है,क्योंकि भारत का इतिहास अनेकों क्रूरतम विदेशी आक्रमणकारियों से भरा पड़ा है जिन्होंने मूर्तियां खंडित करने, मंदिरों को गिराने और लूटने से लेकर जबरन धर्मांतरण करने तक सदियों हिन्दू धर्म को ख़त्म करने की कोशिशें कीं, यहां तक कि हमारे देश के वीर राजपूत शासकों ने भी इन आततायियों के आगे घुटने टेकते हुए इनसे विवाह संधियां करके भारतीय संस्कृति को दूषित किया। अफ़ग़ानिस्तान और इंडोनेशिया जैसे कितने ही देश जिनका उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है,वहां से हिंदू धर्म का लगभग सफ़ाया कर दिया गया। हिन्दू धर्म से काफ़ी बाद में आये धर्म तेज़ी से विश्व-पटल पर छा गए क्योंकि शुरुआत से ही इन धर्मों को मानने वालों की रणनीति अपने अनुयायियों को बढ़ाने की रही और इस रणनीति को सफल बनाने के लिए मानवता की सारी हदें उन्होंने पार कीं और ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। लेकिन इतनी सब कठिनाईयों के बावजूद आज हमारी पीढ़ी ज़िंदा है और हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ा रही है। अभी कुछ दिनों पहले ही हमारे प्रधानमंत्री एक कट्टरपंथी देश में एक भव्य मंदिर-निर्माण के लिए शिलान्यास करके आये हैं। पश्चिमी देशों के लोग तो हमेशा से ही हमारे धर्म और संस्कृति को बढ़-चढ़कर अपनाते आए हैं और मुझे लगता है कि ये चलन आगे आने वाले वर्षों में और बढ़ेगा जब ज़्यादा से ज़्यादा लोग हमारे धर्म की महत्ता को समझना शुरू करेंगे। इसलिए चाहे हम किसी भी जाति के हों ये महत्वपूर्ण नहीं है,सबसे पहले हम भारतीय हिन्दू हैं और इस बात का हमें गर्व होना चाहिए।
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