तुम माँ की ममता हो,बेटी की चपलता हो
तुम बहन का स्नेह हो,अर्धांगिनी का समर्पण हो,
हाँ,तुम स्त्री हो।
तुम देवी हो,शक्ति हो
तुम प्रकृति हो,सृष्टि हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम सुंदर हो,सुशील हो
तुम संतोषी हो,बलिदानी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम अलसभोर की पहली किरण हो,रात की चांदनी हो
तुम दीपक की ज्योति हो,जुगनू की रोशनी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम हिमालय की ऊंचाई हो,महासागर की गहराई हो
तुम हिम की शीतलता हो,अग्नि की ज्वाला हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम ग्रीष्म की तपिश हो,वर्षा की ठंडी फ़ुहार हो
तुम बरगद की घनी छांव हो,बसंत बहार हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम प्रेम का सागर राधा हो,ममता का आँचल यशोदा हो
तुम कभी पति के अपमान पर अग्नि में कूदने वाली सती हो, तो कभी ख़ुद अपमान सहकर भी अग्नि-परीक्षा देने वाली सीता हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम कालिदास की कल्पना ,अजंता की आकर्षक मूरत हो
तुम ग़ालिब की ग़ज़ल हो,फ़ैज़ की शायरी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम यमराज से लड़ने वाली सावित्री हो, स्वाभिमान की मूरत पद्मावती हो
तुम अदम्य साहस की धनी लक्ष्मीबाई हो, त्याग और बलिदान की मिसाल पन्ना धाय हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम कल्पनाओं के परे जाने वाली कल्पना चावला हो, चीते सी रफ़्तार वाली पीटी उषा हो
तुम मानवता की मिसाल मदर टेरेसा हो,शिक्षा की मशाल मलाला हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
फ़िर क्यों हो तुम वहशियों की वासना का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम दहेज की लालसा का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम पुत्र-मोह की अभिलाषा का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम समाज की रूढ़िवादी सोच का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम घर की चार-दीवारी की दासता का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम पुरुषों की मानसिक ग़ुलामी का शिकार?
स्त्री!तुम बनो मत शिकार किसी का,ख़ुद करो शिकार तुम्हें कमतर मानने वाली पुरुषों की इस दकियानूसी सोच का।
अब तक तो सिर्फ़ मकानों को घर बनाती आयी हो, अब निर्माण करो एक उत्कृष्ट सोच वाले समाज का।
अब तक तो आईने में अपना रूप निहारते आयी हो, अब तुम्हें आईना दिखाना होगा सम्पूर्ण समाज को।
क्योंकि तुम स्त्री हो।
तुम्हारा दर्जा पुरुष के बराबर नहीं,उससे कहीं ऊंचा है।
तुम बहन का स्नेह हो,अर्धांगिनी का समर्पण हो,
हाँ,तुम स्त्री हो।
तुम देवी हो,शक्ति हो
तुम प्रकृति हो,सृष्टि हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम सुंदर हो,सुशील हो
तुम संतोषी हो,बलिदानी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम अलसभोर की पहली किरण हो,रात की चांदनी हो
तुम दीपक की ज्योति हो,जुगनू की रोशनी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम हिमालय की ऊंचाई हो,महासागर की गहराई हो
तुम हिम की शीतलता हो,अग्नि की ज्वाला हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम ग्रीष्म की तपिश हो,वर्षा की ठंडी फ़ुहार हो
तुम बरगद की घनी छांव हो,बसंत बहार हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम प्रेम का सागर राधा हो,ममता का आँचल यशोदा हो
तुम कभी पति के अपमान पर अग्नि में कूदने वाली सती हो, तो कभी ख़ुद अपमान सहकर भी अग्नि-परीक्षा देने वाली सीता हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम कालिदास की कल्पना ,अजंता की आकर्षक मूरत हो
तुम ग़ालिब की ग़ज़ल हो,फ़ैज़ की शायरी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम यमराज से लड़ने वाली सावित्री हो, स्वाभिमान की मूरत पद्मावती हो
तुम अदम्य साहस की धनी लक्ष्मीबाई हो, त्याग और बलिदान की मिसाल पन्ना धाय हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम कल्पनाओं के परे जाने वाली कल्पना चावला हो, चीते सी रफ़्तार वाली पीटी उषा हो
तुम मानवता की मिसाल मदर टेरेसा हो,शिक्षा की मशाल मलाला हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
फ़िर क्यों हो तुम वहशियों की वासना का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम दहेज की लालसा का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम पुत्र-मोह की अभिलाषा का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम समाज की रूढ़िवादी सोच का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम घर की चार-दीवारी की दासता का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम पुरुषों की मानसिक ग़ुलामी का शिकार?
स्त्री!तुम बनो मत शिकार किसी का,ख़ुद करो शिकार तुम्हें कमतर मानने वाली पुरुषों की इस दकियानूसी सोच का।
अब तक तो सिर्फ़ मकानों को घर बनाती आयी हो, अब निर्माण करो एक उत्कृष्ट सोच वाले समाज का।
अब तक तो आईने में अपना रूप निहारते आयी हो, अब तुम्हें आईना दिखाना होगा सम्पूर्ण समाज को।
क्योंकि तुम स्त्री हो।
तुम्हारा दर्जा पुरुष के बराबर नहीं,उससे कहीं ऊंचा है।
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