सदियों पहले पाखंडी और अहंकारी ब्राह्मणों,ठाकुरों और साहूकारों ने ग़रीब दलित वर्ग का ख़ूब शोषण किया और उन बेचारे दलितों की हाय इन सवर्ण जातियों को ऐसी लगी जिसका खामियाज़ा इनकी पीढियां आज 70साल बाद भी भुगत रही हैं और आगे भी भुगतेंगी। फ़िर दलितों के मसीहा बनकर जन्मे डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्होंने कई सारी कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी क़ाबिलियत के दम पर उच्च शिक्षा हासिल की और संविधान निर्माता बने। ज़ाहिर तौर पर उन्होंने भी सवर्णों से बदला लेने के लिए आरक्षण का सुझाव नहीं दिया होगा,बल्कि उनका उद्देश्य था अपने लोगों को आगे बढ़ाना और समाज में सम्मानजनक स्थान दिलवाना। लेकिन कुछ चीज़ें इतनी संवेदनशील होती हैं कि ग़लत व्यक्ति के हाथों में पड़ते ही उन्हें वरदान से अभिशाप बनने में देर नहीं लगती। जैसे असुर राहु धोखे से अमृत-पान करके अमर हो गया और आज तक लोगों के जीवन में ग्रहण लगाता आ रहा है। अश्वत्थामा ने पांडवों का वंश मिटाने के लिए उत्तरा के गर्भ पर निशाना साधते हुए ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था,वहीं अमेरिका के सनकी राष्ट्राध्यक्ष ने दुनिया पर अपना दबदबा बनाने के लिए परमाणु बम की शक्ति का पता लगते ही उसे अपने प्रतिद्वंदी देश पर गिराकर लाशों के ढेर पर बैठकर युद्ध में जीत हासिल कर ली। आरक्षण भी एक ऐसा ही ब्रह्मास्त्र है जो जैसे ही राजनीति के असुरों के हाथ लगा, उन्होंने उसे दलित वोट बैंक के लिए सवर्ण समुदाय की तरफ़ छोड़ दिया है जो अब सवर्णों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पूरी तरह नष्ट करके ही दम लेगा। SC/ST एक्ट भी ऐसे ही एक परमाणु बम की तरह है जिसका डर दिखाकर दलित समुदाय के लोग सवर्णों को दबाकर रखते हैं और सदियों पहले अपने पूर्वजों के साथ हुए भेदभाव का बदला सवर्णों की वर्तमान पीढ़ी से लेते हैं जो उस समय अस्तित्व में भी नहीं थी। ये वही लोग हैं जो पिछले दिनों भीमा-कोरेगांव में अंग्रेज़ों की एक भारतीय राजा पर हुई जीत का जश्न मना रहे थे,इस तरह इन्होंने अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचारों का बदला ख़ुद अपने ही देश से भी ले लिया, वो भी उस देश से जिसका संविधान इन्हें आरक्षण और SC/ST एक्ट जैसी सुविधाएं देता है। ये वही लोग हैं जिन्हें भीम के नाम में राम लिखना गंवारा नहीं क्योंकि शायद इन्होंने रामायण कभी पढ़ी नहीं, पढ़ते तो इन्हें शबरी के बारे में पता चलता जिसके जूठे बेर भगवान राम ने खाये थे। जिन अम्बेडकर को ये भगवान की तरह पूजते हैं उन्हें अपने जीवन में कभी हिंसा करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। शायद यही वजह है कि उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था और आज भी उन्हीं का अनुसरण करते हुए दलित समुदाय के कई लोग धर्मांतरण करके बौद्ध धर्म अपना चुके हैं। लेकिन घोर आश्चर्य की बात है कि आज़ादी के पहले जातिगत भेदभाव वाले कट्टर हिन्दू समाज में डॉ. अंबेडकर ने हिंसा और हथियारों के बल पर नहीं बल्कि अपनी प्रतिभा के बल पर अपनी सम्मानजनक पहचान बनाई और आज उन्हीं के अनुयायी जिन्हें आज़ाद हिंदुस्तान में भारत के संविधान द्वारा हर संभव सुविधाएं दी जा रही हैं,वो अपनी क़ाबिलियत के दम पर नहीं बल्कि लाठियों और डंडों के दम पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।
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