कल भारत को बंद कराने के लिए हिन्दू हमेशा की तरह फ़िर से सवर्ण और दलितों में बंटकर आपस में मरने-कटने लगे। जी हाँ, भारत कोई छोटी-मोटी दुकान का नाम नहीं है,पूरे 125करोड की आबादी वाला एक विकासशील देश है जिसे बंद कराना और चालू कराना अब मुट्ठी भर गुंडों के हाथों का खेल बनकर रह गया है। आजकल जिस भी वर्ग या समुदाय को सरकार से या क़ानून से जो भी दिक्कत होती है,बस उस वर्ग के लोग लाखों की तादाद में निकल पड़ते हैं इस भारत को बंद करवाने। बेचारे पुलिस और प्रशासन भी इनके आगे बेबस नज़र आते हैं क्योंकि कहीं उन पर राजनीतिक दबाव रहता है तो कहीं ख़ुद ही इन्हें अपनी जान बचाकर भागना पड़ता है। अब जैसा कि मैंने कहा कि भारत कोई चाय या पान की दुकान तो है नहीं कि आज इतवार है तो भैया,दुकान बंद रहेगी। भारत तो सदियों से अपनी रफ़्तार से चलता आ रहा है,अनेकों विदेशी आक्रमणकारियों से लुटने के बाद भी ये बंद नहीं हुआ। और भारत को सदा गतिमान रखते हैं यहां के लोग जो इस भारत-रूपी गाड़ी के पहिये हैं। अब जो भी लोग भारत को रोकना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले इसके पहियों को रोकना पड़ता है जो क़तई आसान नहीं है। और जब ये पहिये इन मूर्खों के आगे नहीं रुकते तो बस,वहीं से शुरू हो जाता है एक ख़ूनी खेल जिसमें भारत का जो भी पहिया सामने आएगा,उसे अपनी जान गंवानी पड़ेगी। मसलन भारत के बाज़ार, बसें, रेलगाड़ियां वगैरह। यहां तक कि हिंसा पर आमादा ये भीड़ बीमारों को ले जाने वाली एम्बुलेंस तक को रोककर किसी बुज़ुर्ग की सांसें रोक देती है,किसी मासूम की आंख नोंच लेती है,रेलगाड़ी पर पथराव करके हज़ारों यात्रियों को दहशत में डाल देती है और ये सब किसलिए, भारत को बंद कराने के लिए। मनमानी करने वाले ये लोग शायद भूल जाते हैं कि भारत किसी के बाप की जागीर नहीं है और दलित हों या सवर्ण, करणी सेना हो या ऐसे ही लाख़ों बेरोज़गार गुंडों की कोई फ़ौज, भारत को कोई भी बंद नहीं करा सकता। हम आज विश्व के सबसे युवा देश हैं और युवाओं से मेरा अनुरोध है यही
"ख़ून का उबाल मत ज़ाया करो भारत को बंद कराने में
आपस में मत लड़ो राजनीतिक दलों के बहकावे में
लड़ना है तो लड़ो लहू के आख़री क़तरे तक
लेकिन आपस में नहीं,भारत के दुश्मनों से
घरों से निकलो संगठित होकर, फ़िर से लाखों की तादाद में
लेकिन भारत को बंद कराने नहीं,भारत को आगे बढ़ाने।"
"ख़ून का उबाल मत ज़ाया करो भारत को बंद कराने में
आपस में मत लड़ो राजनीतिक दलों के बहकावे में
लड़ना है तो लड़ो लहू के आख़री क़तरे तक
लेकिन आपस में नहीं,भारत के दुश्मनों से
घरों से निकलो संगठित होकर, फ़िर से लाखों की तादाद में
लेकिन भारत को बंद कराने नहीं,भारत को आगे बढ़ाने।"
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