बरसों पहले वर्ष 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को लोकसभा चुनावों में सरकारी संसाधनों जैसे कि पुलिस का इस्तेमाल करके और मतदाताओं को रिश्वत देकर गलत तरीके से जीतने का दोषी पाया और उनके निर्वाचन को निरस्त कर दिया,साथ ही अगले 6सालों के लिए श्रीमती गांधी के चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी। बस फ़िर क्या था,गांधीजी को हमेशा से अपना आदर्श बताने वाले राजनीतिक दल की सत्तारूढ़ नेता के अंदर का तानाशाह जाग गया और सालों से जिस महिला और पार्टी ने शांति और अहिंसा का छद्म आवरण ओढ़ रखा था,अपने अहम पर न्यायपालिका की चोट लगते ही उन्होंने ख़ुद ये आवरण तार-तार कर दिया और एक लोकतांत्रिक देश में एक काला अध्याय लिखा गया जिसमें एक तानाशाह प्रधानमंत्री ने अपने विरोधियों को कुचलने के लिए उन्हें जेलों में डलवा दिया,अखबारों को बंद कर दिया गया और महिला तानाशाह के सनकी बेटे ने हिन्दू युवाओं की जबरन नसबंदी तक करायी। इस दौरान सत्ताधारी दल ने सत्ता के नशे में चूर होकर एक नारा दिया था "इंदिरा इंडिया है और इंडिया इंदिरा है"। ज़ाहिर है इस तरह की सोच रखने वाली छद्म गांधीवादी पार्टी जो आज़ादी के बाद पिछले 28सालों से बेरोकटोक शासन चला रही थी,उसकी एक क़द्दावर महिला प्रधानमंत्री को असली गांधीवादी विचारों वाले जयप्रकाश नारायण जैसे विरोधियों ने जब ये एहसास दिलाना शुरू किया कि एक लोकतांत्रिक देश की सत्ता किसी भी एक पार्टी, परिवार या व्यक्ति की बपौती नहीं है और न्यायपालिका ने भी जब सत्ता के इस बेलगाम घोड़े पर लगाम कसनी शुरू की,तो आनन-फानन में अपना अस्तित्व बचाये रखने और विरोधियों को दबाने के लिए आपातकाल लागू कर दिया गया। कहने का सार ये है कि दशकों पहले भी कांग्रेस ने आपातकाल लगाकर लोकतंत्र और न्यायपालिका का मख़ौल उड़ाया था,तब भी कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट था और आज मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग लगाने का प्रस्ताव लाना भी कांग्रेस की इसी पुरानी परंपरा का हिस्सा है और आज भी कांग्रेस संकट में है।
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