आज एक समाचार चैनल पर योगगुरू बाबा रामदेव और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन(IMA) के निवर्तमान अध्यक्ष और वर्तमान महासचिव के बीच बहस का प्रसारण किया गया। ये एक योगी और दो डॉक्टरों के बीच तीखी बहस थी,या यों कहें कि सीधे तौर पर प्राचीन आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा पद्धति एलोपैथी के बीच "कौन श्रेष्ठ है" की अप्रासंगिक और मूर्खतापूर्ण वाद-विवाद प्रतियोगिता थी। इस विवाद की जड़ में है बाबा रामदेव का एलोपैथी को लेकर दिया हालिया वक्तव्य जिसमें उन्होंने एक सोशल मीडिया मैसेज का हवाला देते हुए आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर प्रश्न-चिन्ह खड़े किए थे। इस कोरोना काल में जिस तरह से लाखों रुपये का अस्पताल का बिल भरने के बाद भी अस्पताल में मरीज़ों की मृत्यु हुई,ये कहीं न कहीं हम सबके मन में संदेह पैदा करता ही है। संभव है कि अस्पतालों में हो रही मौतों के इस आंकड़े से आहत होकर बाबा रामदेव ने अपने मन की शंका ज़ाहिर की हो लेकिन भावातिरेक में उन्होंने ग़लत शब्दों का चयन किया। यहां स्पष्ट है कि उन्होंने चिकित्सा पद्धति पर सवाल उठाए थे न कि चिकित्सकों पर। आज गूगल और टेस्ला जैसी दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनियों के द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बढ़ावा देने के बाद भी कई टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट भविष्य में होने वाले इसके कई संभावित ख़तरों की तरफ़ इशारा करते हैं और इसकी प्रामाणिकता पर भी सवाल खड़े करते हैं,क्योंकि तकनीक कितनी भी उन्नत क्यों न हो उसमें सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है।
आज इस कार्यक्रम के प्रसारण के पूर्व भी और कार्यक्रम की शुरुआत में भी बाबा रामदेव ने मामले की गंभीरता को समझते हुए अपने बयान को न सिर्फ़ वापिस लिया बल्कि बार-बार दोहराया भी कि उन्हें आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से कोई परहेज़ नहीं है। ज़ाहिर है एक योगी होने के नाते उन्हें ये समझने में देर नहीं लगी होगी कि मामला अब बेवजह तूल पकड़ रहा है और ऐसे नाज़ुक हालात में उनके इस एक बयान की आड़ लेकर देश भर के डॉक्टरों को सरलतापूर्वक भड़काया जा सकता है,इसीलिए उन्होंने मामले की नज़ाक़त को ध्यान में रखते हुए समझदारी का परिचय दिया।
लेकिन ठीक इसके विपरीत उस कार्यक्रम में पधारे दोनों डॉक्टर महाशय ने शुरुआत से ही जिस अपमानजनक लहज़े में बाबा रामदेव से बहस करना शुरू किया,ये मेरे लिए स्तब्ध कर देने वाला वाक़या था क्योंकि चाहे वास्तविक जीवन में हों या टीवी कार्यक्रमों में, मैंने डॉक्टरों को हमेशा बहुत ही मर्यादित भाषा का उपयोग करते देखा है। लेकिन दो डॉक्टर एक टीवी कार्यक्रम में आकर गंभीरता-पूर्वक बात करने की जगह जब किसी राजनीतिक दल के प्रवक्ता की तरह आते ही सामने वाले व्यक्ति पर छींटाकशी आरंभ कर दें, तो आपको भी दाल में कुछ काला नज़र आने लगता है।
इस कार्यक्रम के दौरान एक और हैरतअंगेज घटना तब हुई जब आईएमए के महासचिव महोदय आते ही इस बात पर बिफ़र पड़े कि बाबा रामदेव कार्यक्रम में पतंजलि की कोरोना किट को बार-बार कैमरे के सामने क्यों दिखा रहे हैं! इस वाक़ये ने मुझे उत्तर प्रदेश में हुए पिछले विधानसभा चुनाव की याद दिला दी जब बुआ-बबुआ की पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने 'कमल' के फ़ूल से भरे एक सरोवर को कपड़े से ढंक दिया था, शुक्र है कि शोले फ़िल्म के गब्बर की तरह इन्होंने मतदाताओं के 'हाथ' नहीं काट डाले। बहरहाल यहां बड़ा सवाल ये है कि दुनिया भर की विदेशी कंपनियों के मंजन, साबुन-तेल और खाद्य पदार्थों को मान्यता देने वाले आईएमए को आख़िर स्वदेशी कंपनी पतंजलि की कोरोना किट से इतनी तक़लीफ़ क्यों है? ये ठीक ऐसा ही है जैसे दुनिया भर में सबसे सस्ता डाटा उपलब्ध कराकर भारत में डिजिटल क्रांति लाने वाले और एप्पल, अमेज़न, अलीबाबा और डिज़्नी जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों को पीछे छोड़ते हुए विश्व भर में 5वे सबसे मज़बूत ब्रांड बनकर उभरे स्वदेशी कंपनी जिओ टेलीकॉम के मालिक मुकेश अंबानी को लोग चोर कहते हैं और हमारे ही देश में उन्हें मारने का षड्यंत्र रचा गया। इस समय ख़ौफ़ज़दा अंबानी परिवार मुंबई के अपने आलीशान घर को छोड़कर देश के सबसे सुरक्षित राज्य गुजरात में रह रहा है, क्योंकि सत्ताधारी क्षेत्रीय दल के लिए "जय महाराष्ट्र" का नारा "जय हिंद" के नारे से अधिक प्रासंगिक है। सौभाग्य से विश्व की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी भारतीय है जो दुनिया में सबसे सस्ती दर पर कोरोना वैक्सीन देश में उपलब्ध करा रही है लेकिन आख़िर क्या वजह रही कि इस स्वदेशी कंपनी के मालिक अदार पूनावाला को कोरोना की दूसरी लहर शुरू होते ही अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया करानी पड़ी? हद तो तब हो गयी जब विभिन्न राज्य सरकारों और नेताओं के दबाव के चलते उन्हें भारत छोड़कर विदेश में शरण लेनी पड़ी! संयोगवश पूनावाला का निवास भी महाराष्ट्र के पूना में है तो बहुत संभव है कि इन्हें भी "जय महाराष्ट्र" कहने के लिए बाध्य किया गया हो।
आज पतंजलि के केमिकल-रहित उत्पाद अपनी गुणवत्ता के बल पर एफ़एमसीजी बाज़ार में विदेशी कंपनियों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। लेकिन ये वही आइएमए है जिसने पतंजलि की कोरोना किट को मान्यता देने से मना किया था और ये वही आइएमए है जिसने प्राचीन भारतीय आयुर्वेद को कोर्ट में केवल झाड़-फूंक बताया है और यही वजह है कि इंटरनेट पर विकिपीडिया नामक प्रसिध्द साइट पर भारतीय आयुर्वेद को Pseudoscience यानि कि मिथ्या बताया गया है। आख़िर आयुर्वेद से मेडिकल माफ़िया को इतनी परेशानी किस बात से है, क्या इसके पीछे अपने एकाधिकार के ध्वस्त होने का भय है?
हम सभी साक्षी हैं कि कोरोना काल में स्टेरॉयड के बेतहाशा इस्तेमाल के बाद अब ब्लैक,व्हाइट, येलो और न जाने कितने रंगों के फंगस का संक्रमण लोगों में तेज़ी से फैल रहा है? कोरोना मरीज़ों के उपचार हेतु की जा रही प्लाज़्मा थेरेपी को हाल ही में कोविड उपचारों की सूची से बाहर कर दिया गया है। एलोपैथी दवाओं के साइड इफ़ेक्ट से सभी वाकिफ़ हैं।असंवेदनशील अस्पताल मरीज़ों को लाखों रुपये का बिल थमा रहे हैं फ़िर भी बड़े अस्पतालों से लोग ज़िंदा वापिस नहीं आ रहे, वहीं घर पर उपचाररत मरीज़ स्वस्थ हो रहे हैं। बड़े प्राइवेट अस्पतालों के कुछ लालची डॉक्टर जो दुर्भाग्यवश डॉक्टरों की कुल जमात का 90% हैं, वो आपदा के इस अवसर को पैसे कमाने के सुनहरे अवसर के रूप में देख रहे हैं। कई डॉक्टर और नर्स रेमडेसीविर एवं अन्य ज़रूरी दवाओं की कालाबाज़ारी करते पकड़ा रहे हैं। ऐसा कैसे संभव है कि नक़ली इन्जेक्शन जो धोखे से मरीज़ के परिजनों को बेचे गए,वो डॉक्टर या नर्स ने बिना चेक किये मरीज़ को लगा दिए जिससे बाद में मरीज़ की मौत हो गयी! ये तभी संभव है जब आप ख़ुद भी इस मेडिकल माफ़िया का हिस्सा हों। बात कड़वी ज़रूर है मगर सच्ची है। आख़िर ऐसा क्यों है कि कोरोना से पीड़ित लगभग सभी मरीज़ कोरोना से इतना नहीं घबराते जितना अस्पताल में भर्ती होने से घबराते हैं और घर पर ही अपना इलाज कराना चाहते हैं।
बाबा रामदेव के एक बयान के लिए उनके ख़िलाफ़ एफआईआर की धमकी देने वाले आइएमए ने क्या कभी कालाबाज़ारी करते डॉक्टरों को कोई चेतावनी दी है? स्वास्थ्य आपातकाल के इस दौर में भी मनमानी कर रहे अस्पतालों पर क्या कभी आइएमए ने कोई कार्यवाही की है जो दवाइयों और इंजेक्शन के चार गुना अधिक दाम वसूल रहे हैं? कामचोर डॉक्टरों के ख़िलाफ़ जब इंदौर कलेक्टर कार्यवाही करते हैं,तो यही मेडिकल यूनियन उनके समर्थन में आकर काम बंद करने की चेतावनी देती है और तब लोगों की जान बचाने की ख़ातिर प्रशासन को इन सर्वशक्तिमान डॉक्टरों के आगे हाथ जोड़ना पड़ता है; क्या आइएमए ने इस अमानवीयता को रोकने का कोई प्रयास किया?
आंकड़ों पर नज़र डालें तो कुल जनसंख्या प्रतिशत के अनुपात में भारत में कोरोना संक्रमित होने वालों का प्रतिशत कुल जनसंख्या का केवल 1.8% है जो कि अमेरिका में 10%, फ्रांस में 9% और इटली एवं ब्राज़ील में 7.3% है। भारत की जनसंख्या के अनुपात में कोरोना से होने वाली मृत्यु दर भी अन्य देशों से कम है। इसका सबसे बड़ा कारण भारतीयों की मज़बूत रोग प्रतिरोधक क्षमता है जो हमारे रोज़मर्रा के खाने में उपयोग में आने वाले विभिन्न जड़ी-बूटियों और मसालों की वजह से संभव हुआ है और प्राचीन आयुर्वेद भी इन चीज़ों के सही वैज्ञानिक इस्तेमाल पर ही आधारित है।
यहां आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच के सबसे बड़े अंतर का उल्लेख करना आवश्यक है कि जहां एलोपैथी बीमारी होने के बाद गंभीर से गंभीर रोग का इलाज करने में सक्षम है वहीं आयुर्वेद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करके रोग पैदा होने की संभावना को ही कम कर देता है जो प्रमाणित भी हो चुका है। इस तरह वर्तमान परिस्थितियों में दोनों ही चिकित्सा पद्धतियां प्रासंगिक हैं और हम भाग्यशाली हैं कि हमारे देश में दोनों ही पद्धतियों के जानकार लोग मौजूद हैं जिनके ज्ञान का हमें अधिक से अधिक लोगों को स्वस्थ करने और जान बचाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए; क्योंकि ये समय दूसरे को नीचा दिखाकर अपनी श्रेष्ठता साबित करने का नहीं बल्कि क़दम मिलाकर साथ चलने का है।
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