"आओ लाल,झूलेलाल" हर साल की तरह इस साल भी हमारी कॉलोनी में चेटीचंड की सुबह का आग़ाज़ भगवान झूलेलाल जी के इन्हीं भजनों से हुआ,क्योंकि हमारी कॉलोनी में सिंधी समुदाय के काफ़ी लोग रहते हैं और ये लोग हर साल चेटीचंड का त्यौहार इसी तरह धूमधाम से मनाते हैं। ये सभी आज हिंदुस्तान में हंसी-ख़ुशी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं लेकिन इन परिवारों की पुरानी पीढ़ियों ने बंटवारे का दर्द झेला है। मूल रूप से पाकिस्तान के सूबे सिंध के रहने वाले ये लोग अरसा पहले अपने मादरे-वतन को छोड़ चुके हैं। चाहे सिंध के सिंधी हों,कश्मीर के कश्मीरी पंडित हों,फ़ारस(आज के ईरान) के पारसी हों या तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और लाखों की तादाद में उनके धर्मावलंबी, इन सबको अचानक से रातों-रात अपना घरबार और क़ारोबार सब कुछ छोड़कर भागना पड़ा है। आप और हम शायद इस तरह की परिस्थितियों का सामना कभी नहीं करना चाहेंगे और शायद हम इस तरह के शरणार्थी जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। सिंधी समुदाय के लोग अपना जमा-जमाया क़ारोबार छोड़कर आ गए, लेकिन अपनी कारोबारी कला को अपने साथ भारत ले आये और यहां मेहनत करके अपने व्यवसाय स्थापित किये और आज एक खुशहाल ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। ईरान से आये पारसी अपनी जान बचाकर सात समंदर पार करके भारत आये और साथ लाये अपनी ज़िंदादिली और खुशमिजाज़ी,आज मुम्बई और गुजरात के कई शहरों में इनकी अच्छी ख़ासी आबादी है और आज ये हमेशा क़ानून का पालन करने वाले,हंसी-ख़ुशी सबसे मिलकर रहने वाले सच्चे भारतीय हैं। दलाई लामा अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिमालय को पार करके भारत आये,भारत सरकार ने इन्हें हिमाचल प्रदेश के शहर धर्मशाला में बसने की अनुमति दी और बदले में इन्होंने इस पूरे क्षेत्र को अहिंसा और शांति की अपनी सीखों से लाभान्वित किया और भारत का मान बढ़ाया है। ये सभी समुदाय सम्मान के पात्र हैं क्योंकि इन्होंने विपरीत परिस्थितियों का सामना करके भी अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा की है। आज सीरिया और रोहिंग्यों पर आंसू बहाने वाले लोग शायद ये भूल गए हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है।
Beautifully written 👌
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