इस देश ने कई ऐसे बड़े नेताओं को देखा है जिन्हें राजनीति विरासत में मिली और जो सालों तक सत्ता में रहकर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे जिसकी परिणति आज हमें देश के हर गली-चौराहों पर इनकी बड़ी-बड़ी मूर्तियों या सड़कों के नाम के बोर्ड पर दिखाई देती है। साथ ही देश की लगभग हर बड़ी योजना इन नेताओं ने ख़ुद के नाम से ही शुरू की। ज़ाहिर है कि इन नेताओं ने हर क़दम पर ख़ुद के नाम को प्रधानमंत्री के पद से बड़ा बनाने की कोशिशें कीं। इन सबसे जुदा दो महान राजनेता अस्तित्व में आये,पहले थे लाल बहादुर शास्त्री जी,जिनकी ईमानदारी और सादगी के किस्से पूरी दुनिया में मशहूर हैं और दूसरे थे हम सबके प्यारे अटल जी। हालांकि इन दोनों को राजनेता कहना शायद इनका अपमान होगा क्योंकि इनका व्यक्तित्व राजनीति से कहीं ऊपर था। शास्त्री जी को तो हमारी पीढ़ी ने देखा नहीं लेकिन वाजपेयीजी आज की पीढ़ी के मेरे जैसे कई नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। हालांकि वाजपेयीजी बाकी सभी नामचीन नेताओं की तुलना में सबसे कम यानी सिर्फ़ 6साल के लिए सत्ता में रहे,बाकी के पूरे 41साल वो विपक्ष में रहे यानी अटलजी अपने पूरे राजनीतिक करियर में सत्ता में व्याप्त भ्रष्टाचार और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ एक शक्तिशाली सत्ताधारी परिवार से अकेले लड़ते रहे और आखिरकार किसी खानदानी विरासत के ज़रिए नहीं बल्कि अपनी कड़ी मेहनत के दम पर सत्ता के शिखर तक पहुंचे। अपने राजनीतिक जीवन में पूरे समय विपक्ष में रहने वाले किसी नेता की इतनी अधिक लोकप्रियता हमने पहले कभी नहीं देखी और न ही शायद कभी देख पायें क्योंकि अटलजी जैसे लोग विरले ही पैदा होते हैं।
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