Monday, 20 April 2020

आज के दौर में रामायण-महाभारत की प्रासंगिकता

इन दिनों दूरदर्शन पर फिर से रामायण और महाभारत का प्रसारण किया जा रहा है और आज भी इन धार्मिक नाटकों के प्रति लोगों का उत्साह वैसा ही देखने को मिल रहा है जैसा कि लगभग 30साल पहले इनके पहले प्रसारण के समय था । ज़ाहिर है कि रामायण-महाभारत की कथाएँ हर दौर में प्रासंगिक हैं । मेरा निजी मत है कि रामायण एक आदर्श कथा है जिसे आज के कलियुग में जीवन में उतार पाना साधारण मनुष्यों के लिए बहुत ही कठिन कार्य है , वहीं दूसरी तरफ़ महाभारत एक व्यावहारिक कथा है जिसके पात्र यदा-कदा हमें अपने सामाजिक और पारिवारिक जीवन में देखने को मिलते रहते हैं; शायद इसीलिए कहा भी जाता  है कि "जो महाभारत में नहीं है वो संसार में कहीं नहीं है।" इसे साधारण भाषा में कहें तो आज हम जो भी घटनाएं अपने आसपास के लोगों के जीवन में घटित होते देखते हैं , उसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसका वर्णन हमें महाभारत में न मिले; फ़िर  चाहे वो भाई-भाई की आपसी पारिवारिक कलह हो, सरेआम नारी की अस्मिता को चोट पहुँचाने वाली घटना हो, घर से भागकर मनपसंद शादी करने की बात हो , जुए में अपना सब कुछ हारकर राजा से रंक  बनने की कहानी हो , लोकलाज के डर से अपने नवजात शिशु को नदी में बहाने की घटना हो , पुत्र-मोह में अंधे किसी पिता की कथा हो , किसी बिगड़ैल रईसज़ादे के अपने समस्त कुल के नाश करने की कहानी हो या समाज के बड़े-बुज़ुर्गों का मौन होकर अत्याचार होते देखने की बात हो ... ये सब घटनाएँ हम रोज़ अपने परिवार या मोहल्ले में होते हुए देखते हैं या अख़बार की सुर्खियों मे पढ़ते हैं । आज हम ऐसी कोई ख़बर देखकर या पढ़कर अचंभित हो जाते हैं जिसमें किसी व्यक्ति ने शल्य क्रिया द्वारा अपना लिंग-परिवर्तन करा लिया और अपने शरीर के अनुसार नहीं बल्कि अपने मन की भावनाओं के आधार पर अपनी एक नयी पहचान बनाने का साहस दिखाया जबकि महाभारत में एक ट्रान्सजेंडर पात्र शिखंडी का भी उल्लेख है जो एक स्त्री से पुरुष बन जाता है। इसीलिए कुछ लोग महाभारत काल को द्वापर युग के अंत और कलियुग के प्रारम्भ के रूप में भी देखते हैं।
जहाँ एक तरफ़ रामायण में विभीषण और त्रिजटा जैसे राक्षस कुल के लोग भी नीति और धर्म की बातें करते हैं, माता सीता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले जटायु जैसे महान पक्षी हैं तो स्वयं भगवान की सहायता करने वाले सुग्रीव और हनुमान जी जैसे पराक्रमी वानर हैं ; वहीं दूसरी तरफ़ महाभारत में भीष्म पितामह जैसे अति पराक्रमी और धैर्यवान महावीर हैं जो इतने वीर होते हुए भी उस सभा में चुपचाप बैठे रहे जहाँ द्रौपदी का चीर-हरण हो रहा था; अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनाने वाले महान गुरु द्रोणाचार्य हैं जो एकलव्य से गुरु-दक्षिणा में उसका दाहिने हाथ का अंगूठा मान लेते हैं ताकि वो अर्जुन को टक्कर न दे सके; सदा धर्म और नीतिगत बातें करने वाले धर्मराज युधिष्ठिर हैं जिन्होंने एक जुए में अपनी पत्नी को ही दांव पर लगा दिया। रामायण में भांति-भांति के भयानक मायावी राक्षसों के होते हुए भी रामायण में एक मधुरता और सरलता है, शायद इसीलिए आज लाखों वर्षों के बाद भी ये घर-घर में आनंद-पूर्वक पढ़ी-सुनी और गायी जाती है; वहीँ  महाभारत में कोई राक्षस नहीं है बल्कि तरह-तरह का छल और प्रपंच करने वाले कपटी मनुष्य ही हैं जो किसी राक्षस से कम  नहीं पड़ते हैं, शायद यही वजह है कि आज भी घर में महाभारत रखना या पढ़ना अशुभ माना  जाता है।
सब यही कहते हैं कि रामायण महाकाव्य के मुख्य नायक-नायिका प्रभु श्रीराम और माता सीता हैं लेकिन मेरे हिसाब से इस कहानी में कोई एक नायक या नायिका नहीं है बल्कि इस कहानी में अनेक नायक-नायिकाएं हैं।
अपने बड़े भाई के प्रति असीम श्रद्धा और समर्पण भाव रखने वाले राजकुमार भरत भी इस कथा के नायक हैं जो भाग्य से मिले सारे राजपाट को अपने बड़े भाई की धरोहर समझकर 14 वर्ष तक सँभालते हैं और अंत में अपने भाई को प्रेमपूर्वक वापिस भी करते हैं; बड़े भाई के प्रति ठीक ऐसा ही सेवाभाव और समर्पण रखने वाले शेषनाग का अवतार लक्ष्मण जी भी इस कथा के नायक हैं जिन्होंने स्वेच्छा से श्रीराम जी के साथ वन में जाकर 14 वर्ष तक बिना विश्राम किये निरंतर उनकी सेवा की ; श्री लक्ष्मण जी की पत्नी उर्मिला भी इस कथा की नायिका हैं जिन्होंने 14 वर्ष तक पति के वियोग में जीवन काटा और उनकी प्रतीक्षा करती रहीं ; वीर हनुमान जी इस कथा के एक और नायक हैं जिनके बिना शायद रामायण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वहीँ दूसरी तरफ़ महाभारत में अनेक महापुरुषों के होते हुए भी किसी को भी एक नायक की संज्ञा नहीं दी जा सकती यहाँ तक कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण को भी नहीं;  ऐसा इसलिए क्योंकि महाभारत की कथा में शायद अर्जुन के अलावा ऐसा कोई पात्र नहीं है जिसने कोई न कोई छल न किया हो या जिसने किसी दूसरे के साथ कुछ ग़लत न किया हो। इस प्रकार महाभारत में कोई भी पात्र पूरी तरह से सकारात्मक नहीं है, आधुनिक भाषा में कहें तो ये सारे पात्र ग्रे शेड के हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस महाकाव्य की रचना के बाद इसके रचियता श्री वेदव्यास घोर अवसाद का शिकार हो गए थे।
आज के आधुनिक समय में शायद मानव समाज को नग्न करने वाली ऐसी साहसिक कथा लिखना किसी भी धर्म के ठेकेदारों को गवारा नहीं होगा, आज अगर ये ग्रंथ लिखा जाता तो शायद इसे प्रतिबंधित कर दिया गया होता! ऐसी संकीर्ण विचारधारा वाले ये लोग शायद भूल जाते हैं कि चाहे वेद व्यास का महाभारत हो या वात्स्यायन का कामसूत्र,  भारत के प्राचीन धर्म-ग्रंथ और साहित्य में मानव जीवन के हर पहलु का बिना किसी लाग-लपेट के बहुत साफ़गोई से वर्णन किया  गया है।
बहरहाल,मेरे विचार में रामायण पूर्ण रूप से सकारात्मक ऊर्जा वाला एक भक्ति-ग्रन्थ है वहीं महाभारत अनेकों नकारात्मकताओं से भरा एक चेतावनी-पत्र , लेकिन आज के दौर में इन दोनों ग्रंथों की अपनी महत्ता है।  जहाँ रामायण हमें सिखाती है कि हमें किस प्रकार का आचरण करना चाहिए वहीं महाभारत हमें सिखाती है कि मनुष्य को किस प्रकार का आचरण नहीं करना चाहिए। लेकिन हिन्दू धर्म की यही विशेषता है कि कोई भी धर्म-ग्रंथ हमें कोई भी चीज़ करने या न करने के लिए बाध्य नहीं करता है , बल्कि ये हमें हमारे विवेक के अनुसार अपना निर्णय स्वयं लेने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। 


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