भारत और संपूर्ण विश्व इस समय कोरोना महामारी के दौर से गुज़र रहा है । इस बीमारी का वाहक वाइरस प्राकृतिक है या जैव आतंकवाद का कोई मानव-निर्मित हथियार, इस पर तो अभी लंबी बहस छिड्ने वाली है । दूसरे विश्व-युद्ध के बाद जिस तरह दुनिया के शक्तिशाली देशों में परमाणु हथियार संपन्न बनने की होड़ मची, संभव है कि अब वैसी ही प्रतिस्पर्धा जैव हथियार संपन्न देश बनने की हो; लेकिन प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए इस प्रकार के जैव हथियार से देश को बचाने की तकनीक विकसित करने की जिससे विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सके। दुर्भाग्यवश चीन भारत का पड़ोसी देश है, फिर भी ये हमारे देश के तत्कालीन नेतृत्व का ही कमाल था कि ये वाइरस जब यूरोप तक पहुँचकर इटली जैसे देशों को लगभग तबाह कर चुका था तब तक भी हमने इसे भारत पहुँचने से रोके रखा। हालांकि आज सस्ती हवाई यात्राओं के इस दौर में जब हम दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक कुछ ही घंटों में पहुँच सकते हैं , ऐसे समय में वाइरस हो या इंसान किसी को भी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं मे बांध पाना लगभग नामुमकिन है । ज़ाहिर है इस जानलेवा वाइरस ने भारत में भी दस्तक दी लेकिन तब तक हम इटली जैसे साधन-संपन्न देशों में हज़ारों मौतों का मंज़र देख चुके थे।
ऐसे संवेदनशील समय में जब अमेरिका जैसे देश के राष्ट्रपति ऐसे किसी वाइरस के होने की संभावना से ही इंकार कर रहे थे या यूं कहें कि अपने निजी राजनीतिक और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए आने वाली तबाही को अनदेखा करना चाह रहे थे, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूरोपियन यूनियन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन भी इस वाइरस की गंभीरता का पूर्वानुमान लगाने में असफल रहे ; ऐसे में परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए भारत सरकार ने 23 मार्च से ही देशव्यापी संपूर्ण लॉकडाउन घोषित किया जबकि उस समय तक भारत में केवल 500 लोग ही संक्रमित पाये गए थे और मौतों का आंकड़ा दहाई के अंक तक भी नहीं पहुंचा था । विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया के कई देशों ने भारत के इस दूरगामी निर्णय की प्रशंसा की । इसमें कोई शक नहीं कि भारत में अगर समय रहते लॉक डाउन का साहसिक निर्णय नहीं लिया गया होता तो आज हमारे देश का हाल इटली और अमेरिका से भी बदतर होता क्योंकि हमारे पास एक बहुत बड़ी आबादी है और मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है ।
इस विकट परिस्थिति में भारत सरकार, तमाम राज्य सरकारें, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों ने ज़बरदस्त इच्छा-शक्ति का परिचय देते हुए इतने बड़े देश में इस वैश्विक महामारी को काफ़ी हद तक कमज़ोर कर दिया है और उनका संघर्ष निरंतर जारी है । भारत ने जिस धैर्य और सूझ-बूझ से इस कोरोना महामारी का सामना किया है , उसके सूत्रधार हैं हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी.... क्योंकि ये तो प्राचीन काल से ही चला आ रहा है कि अगर राजा ही शत्रु से घबराने लगे तो सारी सेना और प्रजा का मनोबल भी टूट जाता है और अगर राजा हिम्मत और सूझ-बूझ से काम ले तो कई बार प्रजा भी युद्ध के मैदान में कूद पड़ती है । इस महामारी के समय भारत का परिदृश्य भी कुछ ऐसा ही है ; दुश्मन की आहट पाते ही सबसे पहले हमारे प्रधानमंत्री ने देश के 135 करोड़ देशवासियों से संवाद किया और देश की जनता को बिना किसी लाग-लपेट के यथास्थिति से अवगत कराया और लॉक डाउन की प्रारंभिक तैयारी के रूप में Janta curfew की अपील की ।
देश के इतिहास में शायद ये पहली बार था जब कोई प्रधानमंत्री बिलकुल एक पालक की तरह अपने करोड़ों बच्चों को आने वाली परिस्थिति से लड़ने की समझाइश दे रहा था। इसके पहले भी देश ने कई प्रधानमंत्री देखे हैं, उनमें से कई के पास एक समृद्ध पारिवारिक विरासत थी तो कुछ के पास अर्थशास्त्र की बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ थीं। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री ने अपने विरोधियों को कुचलने के लिए देश को आपातकाल में झोंका तो अर्थशास्त्र के ज्ञाता प्रधानमंत्री ने अपने 10 सालों के कार्यकाल में कभी जनता से सीधे कोई संवाद ही नहीं किया। अब तक देश ने ऐसे ही उच्च शिक्षित अंग्रेजीदा लेकिन भावशून्य प्रधानमंत्री देखे थे जो सिर्फ़ स्वतन्त्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस की पूर्व संध्या पर दूरदर्शन पर आकर अपने सचिवों के द्वारा लिखकर दिया भाषण पढ़ा करते थे, जो किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सहमे-सहमे से एक कोने में खड़े दिखाई देते थे और जिन्हे विदेश में जाकर अपनी मातृभाषा बोलने में लज्जा महसूस होती थी । इसके बाद देश को मिला एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसे लोग चायवाला कहते हैं क्योंकि वो बचपन में रेल्वे स्टेशन पर चाय बेचा करते थे, कहते हैं कि उन्होने कुछ वर्षों तक हिमालय में साधना भी की है, विरोधी उन्हे मौत का सौदागर कहते हैं लेकिन देश की जनता ने उन्हे लगातार 2बार पूर्ण बहुमत से जिताया है और इस जनता को विरोधी उनका भक्त कहते हैं ; अब भक्त तो भगवान के ही होते हैं और भगवान वो होते हैं जिसमे लोगों का अटूट विश्वास और श्रद्धा होती है। इस प्रकार विरोधियों ने लोगों को उनका भक्त कहकर जन-साधारण में मोदीजी की लोकप्रियता और विश्वसनीयता को अनजाने मे ही सही पर ख़ुद ही प्रमाणित कर दिया है । वैसे भी मोदी जी की करिश्माई शख्सियत की बानगी इसी से मिलती है कि इतने कठोर फैसले लेने के बाद भी जनता का उनसे एक प्रकार का भावनात्मक लगाव है। शायद यही कारण है कि उनके मुंह से निकला कोई भी वाक्य ब्रह्म-वाक्य हो जाता है और लोग तमाम तकलीफ़ें झेलकर भी अपने नेता के निर्देशों का अक्षरशः पालन करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने मोदीजी को साल 2018 में "चैम्पियन ऑफ द अर्थ " के ख़िताब से नवाजा है, मोदीजी के नेतृत्व में भारत ने कई मौक़ों पर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी प्रामाणिकता सिद्ध की है जिसका नतीजा है कि चाहे अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात जैसे बड़े देश हों या इज़राइल और भूटान जैसे छोटे देश, सभी से भारत के रिश्ते पहले की तुलना में और बेहतर हुए हैं । शायद यही कारण है कि कोरोना के इलाज में तथाकथित रूप से प्रभावी Hydroxy chloroquine दवा के निर्यात के लिए अमेरिका ने भारत पर दबाव नहीं बनाया बल्कि याचना की । आर्थिक और सामाजिक विषमता वाले इतने बड़े देश में समय रहते लॉक डाउन घोषित करना और उसे सफलतापूर्वक लागू भी करवाना मोदीजी की असाधारण नेतृत्व क्षमता और उनके चमत्कारिक व्यक्तित्व के प्रति लोगों के विश्वास का ही परिणाम है।
आज इस महामारी ने पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति, जीवन-शैली और भारतीय मूल्यों की प्रासंगिकता एक बार पुनः सिद्ध कर दी है । Handshake और Hug करने की पाश्चात्य संस्कृति को छोडकर अब देश-दुनिया के सभी लोग चाहे आम हों या ख़ास, भारत की पहचान कहे जाने वाले "नमस्ते" को अपना रहे हैं, मांसाहार को छोडकर भारत के शाकाहारी खानपान की पैरवी कर रहे हैं, शव को दफनाने की बजाय सनातन धर्म के दाह संस्कार को इस वाइरस को फैलने से रोकने की दिशा में कारगर माना जा रहा है, स्वस्थ मन एवं निरोगी काया की गारंटी देने वाला भारत का प्राचीन योग तो कई वर्षों पहले से ही योगा बनकर विश्व-पटल पर छाया हुआ है , साथ ही ये तथ्य भी प्रमाणित हो चुका है कि भारतीय आयुर्वेद की जड़ी-बूटियां और भारत के पारंपरिक खानपान में उपयोग होने वाले मसाले शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं, यही कारण है कि भारत में इस कोरोना महामारी से मरने वालों की मृत्यु-दर बहुत कम और ठीक होने वालों की संख्या अधिक है ।
बहरहाल, इस महामारी से लड़कर निश्चित ही भारत एक विजेता के रूप मे उभरेगा और एक वैश्विक नेता के तौर पर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पहले से कहीं अधिक मजबूत होगी जिसका विकल्प ढूंढ पाना विपक्ष के लिए लगभग असंभव ही प्रतीत होता है ।
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