Saturday, 25 April 2020

ब्राह्मण समाज

एक सोया हुआ समाज जी हाँ, आज बात एक भीरु,पाखण्ड और आडम्बर युक्त विभाजित और सोये हुए समाज की यानि कि ब्राह्मण समाज की..चूंकि मैं ख़ुद एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार से हूँ और मेरा बचपन एक ही ख़ानदान के लगभग 50ब्राह्मण परिवारों के एक ही मोहल्ले में रहने वाले एक कुनबे में बीता है,इसीलिए इस समाज की अच्छाइयों-बुराइयों को मैंने बहुत क़रीब से देखा है और ये पाया है कि ये समाज 3,13 और सवा लाख में इस क़दर बंटा हुआ है कि पिछले कई दशकों से लगभग सभी सरकारों द्वारा आरक्षण के नाम पर किये गए शोषण के बावजूद भी इस समाज ने कभी एकजुट होकर कोई विरोध नहीं किया। शायद आरक्षण को हम ब्राह्मण अपनी नियति मानकर किसी मसीहा के आने की राह देख रहे हैं जो हमें इससे मुक्ति दिलवाएगा। कुछ लोगों को मोदीजी में ये मसीहा दिख रहा था पर आरक्षण के ख़िलाफ़ जाकर मोदीजी भी अपना वोट बैंक नहीं खोना चाहते। कांग्रेस प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण लाकर ब्राह्मणों के पेट पर लात मारने वाली थी लेकिन आम चुनाव में जीत नहीं पायी और हम ब्राह्मण बच गए लेकिन फ़िर भाजपा की सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण का मसौदा तैयार करके ब्राह्मण समाज को ठेंगा दिखा दिया और आश्चर्यजनक बात ये है कि हम अब भी चुप हैं। शिवराज सरकार की मेहरबानियों से मध्यप्रदेश में ज़िला स्तर की भर्तियों में आरक्षण 50%से ज़्यादा हो चुका है तो तमिलनाडु में ये हाल राज्य शासन की भर्तियों में है। यहाँ तक कि अब सरकार और कुछ स्वयंसेवी संगठनों की कोशिश है कि मंदिरों की दानपेटियों में आने वाले चढ़ावे पर भी उस मंदिर में दिन-रात पूजा करने वाले पंडित का कोई हक़ न रहे और सिर्फ़ पूजा-पाठ करके जैसे तैसे गुज़ारा करने वाला बेचारा ग़रीब पंडित और उसका परिवार भूखों मरे। लेकिन हम ब्राह्मण शायद तब तक चुप रहेंगे जब तक महाराष्ट्र के किसानों की तरह ब्राह्मण नौजवान बेरोज़गारी की वजह से आत्म-हत्या न करने लगें पर मुझे तो पूरा विश्वास है कि तब भी सरकार चाहे किसी भी दल की हो,इस पर कोई ध्यान नहीं देगी ठीक वैसे ही जैसे कश्मीरी पंडितों की आवाज़ पर कभी किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया और उन्हें अपने घर और ज़मीनें छोड़कर भागना पड़ा और आज 2दशक से ज़्यादा बीतने के बाद भी कोई भी सरकार उन्हें इंसाफ़ नहीं दिलवा पायी और ब्राह्मण समाज चुप रहा। हम चुप रहे तब भी जब मंडल कमीशन बनाकर वोट बैंक के लिए ऐसी जातियों को भी आरक्षण दिया जाने लगा जिनके साथ न ही कभी कोई सामाजिक भेदभाव हुआ था और न ही ये आर्थिक आधार पर ही बहुत ज़्यादा पिछड़ी थीं लेकिन सिर्फ़ ब्राह्मण,बनिया या ठाकुर न होने की वजह से इन्हें पिछड़ा मान लिया गया और हिन्दू समाज को हमेशा-हमेशा के लिए टुकडों में बाँट दिया गया और आज ये आरक्षण रूपी राक्षस कितना भयानक रूप ले चुका है इसकी बानगी हम हरियाणा के जाट आंदोलन,राजस्थान के गुर्जर आंदोलन और गुजरात के पाटिदार आंदोलन में देख चुके हैं। हालाँकि जाट हों,गुर्जर हों या पाटीदार, ये तीनों ही समुदाय सामाजिक और आर्थिक रूप से सम्पन्न बल्कि अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में दबंग माने जाते हैं लेकिन भैया, कद्दू जब कट ही रहा है तो सबमें बंटना चाहिए क्योंकि आजीवन व्रत करने और ग़रीबी में जीने का ठेका तो सिर्फ़ तथाकथित सवर्णों ने ले रखा है। इस देश में आज ब्राह्मण के अलावा बाकी हर जाति के पास आगे बढ़ने के अवसर हैं और हम अब भी सिर्फ़ फ़ेसबुक और वॉट्सएप पर ब्राह्मणों के ग्रुप बनाकर ही ख़ुश हैं और इन ग्रुप्स में भगवान परशुराम के चित्र लगाकर ब्राह्मण कुल में पैदा होने पर इतराते फ़िरते हैं। हम तो भगवान परशुराम की जयंती पर सरकार से छुट्टी मनवाकर ही संतुष्ट हैं लेकिन परशुराम की तरह न हम शास्त्र में पारंगत हैं और न ही शस्त्र में। हम कायर बनकर अत्याचार सहते जा रहे हैं क्योंकि हम सिर्फ़ भगवान की कृपा मिलने से जन्म से ब्राह्मण हैं कर्म से नहीं,क्योंकि कर्म से ब्राह्मण वो होता है जो भगवान परशुराम की तरह अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करे। आज लगभग हर शहर में ब्राह्मणों के संगठन हैं जो ब्राह्मणों के उत्थान के लिए सिर्फ़ 2तरह के काम कर रहे हैं, एक तो है ब्राह्मण परिचय सम्मेलन करवाना जो ज़्यादातर वो संगठन करवाता है जिसके सदस्य प्रौढ़ या अधिक आयु के बुज़ुर्ग होते हैं और एक दूसरा संगठन जिसके सदस्य अमूमन18-40वर्ष की उम्र के बेरोज़गार ब्राह्मण युवक होते हैं जो सदैव माथे पर तिलक लगाए दबंगों की तरह अपनी बुलेट से हर गली-मोहल्ले की ख़ाक छानते फ़िरते हैं, जो क्षेत्र के किसी भी स्थानीय नेता की चापलूसी में लगे रहते हैं और प्रतिवर्ष हनुमान जयंती एवं परशुराम जयंती पर मोटर साईकल रैली निकालते हैं और भंडारा भी करवाते हैं। ये ख़ुद तो किसी लायक नहीं होते बस अपने आप को परशुराम का वंशज कहकर दम्भ भरते फ़िरते हैं और इसी तरह के संगठनों के लोग सोशल मीडिया पर सरकार को धमकी देते हैं कि अगर आपने पदोन्नति में आरक्षण लागू किया तो अगली बार आपकी  पार्टी को वोट नहीं देंगे। मतलब ये कि अभी भी ये सिर्फ़ इंतज़ार ही कर रहे हैं पदोन्नति में आरक्षण लागू होने का,उसे रोकने के लिए देश भर के इन संगठनों के पास कोई रणनीति नहीं है। मुझे तो अब पूरा विश्वास हो चला है कि अगर आरक्षण 90%भी हो गया तब भी ये डरपोक समाज अपने अधिकार के लिए कभी आवाज़ नहीं उठाएगा। आवाज़ उठाए भी तो कौन, क्योंकि वे ब्राह्मण जो बेटियों के पिता हैं उनका जीवन तो अपनी बेटी के लिए दहेज की व्यवस्था करने में ही बीत जाता है और जो बेटों के पिता हैं उनका जीवन दहेज़ के बाज़ार में अपने बेटे की ऊंची से ऊंची बोली लगाने वाले को ढूंढ़ने में बीत जाता है क्योंकि ये सवर्ण समाज आज भी दहेज़ प्रथा जैसी सामाजिक बुराई से मुक्त नहीं हो पाया है बल्कि ये कुप्रथा इस समाज में दिन-ब-दिन और फ़ैलती जा रही है। आज आरक्षण के दम पर दूसरे समाजों के परिवारों के हर पीढ़ी के प्रतिभावान युवा अच्छे कॉलेजों में पढ़कर अच्छी सरकारी नौकरी पा रहे हैं और हमारे समाज के परिवारों की पीढियां बेरोज़गार होती जा रही हैं । इतने कम अंक लाने पर भी आरक्षित समाज के लोग 1ही प्रयास में कलेक्टर बन रहे हैं और ब्राह्मण युवा बार-बार इनसे ज़्यादा अंक लाने पर भी कलेक्टर नहीं बन पाते और फ़िर थक-हारकर बेचारे अपने परिवार की पूंजी लगाकर UPSC जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर चला रहे हैं। जागो ब्राह्मण जागो और कर्म से ब्राह्मण बनो।

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