Tuesday, 26 May 2020

योद्धा श्रीराम और निर्मोही श्रीकृष्ण

हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार क्षीर सागर में विराजने वाले दशावतार भगवान विष्णु धर्म की रक्षार्थ हर युग में पृथ्वी पर जन्म लेते हैं; कभी किसी पशु या जलचर के रूप में, किसी युग में श्री हरि ब्राह्मण ऋषि बनते हैं तो किसी युग में क्षत्रिय राजकुमार या एक साधारण ग्वाला । सदा से जातिगत भेदभाव का आक्षेप झेल रहे हिन्दू धर्म की ये बात उल्लेखनीय है कि स्वयं भगवान ने अवतार लेने के लिए किसी तथाकथित उच्च जाति विशेष को नहीं चुना.. आज की आरक्षण व्यवस्था के अनुसार देखा जाए तो भगवान श्रीकृष्ण अन्य पिछड़ी जाति (OBC) से ताल्लुक रखते हैं । संभव है कि ग़रीब ब्राह्मण सुदामा जिसके पास द्वापर युग में भी खाने को अन्न नहीं था उसकी पीढ़ियाँ आज कलियुग में भी ग़रीब ही हों, वहीं यादव कुल के श्रीकृष्ण के वंशज यूपी-बिहार जैसे प्रदेशों में दबंगई करते फिरते हैं लेकिन फिर भी उन्हे पिछड़ी जाति को मिलने वाला आरक्षण प्राप्त है । मान्यता है कि महात्मा बुद्ध भी भगवान विष्णु का ही अवतार हैं लेकिन बौद्ध इससे इत्तेफाक़ नहीं रखते, ज़ाहिर है कि गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार मानना बौद्ध धर्म के अस्तित्व के लिए आत्मघाती क़दम साबित हो सकता है । ग़ौरतलब है कि कलियुग में जब पाप अपनी चरम सीमा पर होगा तब श्री हरि के दसवें अवतार भगवान कल्कि जन्म लेंगे जिनका चित्रण एक सफ़ेद घोड़े पर तलवार लिए किया जाता है जो कलियुग का अंत करके पुनः सतयुग का प्रारम्भ करेंगे। सुनने में ये किसी पाश्चात्य परी-कथा की कल्पना लगती है जिसमे राजकुमारी अपने सपनों के राजकुमार की राह देखती रहती है जो एक दिन सफ़ेद घोड़े पर आकर उसे ऐसी दुनिया में उड़ा ले जाएगा जहां सिर्फ़ प्यार हो और नफ़रतों के लिए कोई जगह न हो ।
भगवान विष्णु के अब तक हुए सभी अवतारों में श्रीराम और श्रीकृष्ण जन-साधारण में सर्वाधिक लोकप्रिय हुए हैं क्योंकि इन्हे घर-घर में पूजा जाता रहा है । भगवान श्रीराम त्रेता युग में पैदा हुए तो भगवान कृष्ण द्वापर में जिसके बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है । इन दोनों ही ने अपने-अपने युग में धर्म की पुनः स्थापना की जिनकी लीलाओं का वर्णन हम आज कलियुग में करते हैं । इनका जीवन-दर्शन कलियुग में हमें धर्म के मार्ग पर चलते रहने की प्रेरणा देता है । लेकिन इन दोनों के व्यक्तित्व में ज़मीन-आसमान का अंतर है ।
एक तरफ़ जहां भगवान राम अयोध्या के महल में पैदा हुए वहीं भगवान कृष्ण मथुरा के कारागृह में, श्रीराम का बचपन क्षत्रिय कुल के राजकुमार के रूप में बीता तो श्रीकृष्ण का बचपन गाय चराने वाले ग्वाले के रूप में... लेकिन समय के फेर से भगवान भी नहीं बच सके ! महलों में पले-बढ़े राम को अपना राज्याभिषेक छोडकर 14 वर्षों का वनवास भोगना पड़ा और वनवासी कहलाए वहीं गोकुल की गलियों में खेलने वाले कृष्ण को राजपाट का सुख मिला और वे द्वारकाधीश कहलाए । प्रभु श्रीराम बचपन से ही जितने धीर-गंभीर प्रकृति के थे श्रीकृष्ण उतने ही नटखट और चंचल स्वभाव के थे।  रामभक्त गोस्वामी तुलसीदासजी ने श्रीराम की बाल्यावस्था का वर्णन करते हुए लिखा है कि
"ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियाँ ,
तुलसीदास अति आनंद देखके मुखारविंद ,
रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियाँ ,
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियाँ। "
वहीँ वात्सल्य रस के शिरोमणि कवि सूरदास जी के शब्दों में बालगोपाल कृष्ण माता यशोदा के डांटने पर उनसे बड़ी ही मासूमियत से कहते हैं कि
"मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो ,
भोर भये गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो। "
भगवान विष्णु के इन दोनों रूपों के चरित्र में इतना अधिक विरोधाभास है कि जहाँ एक तरफ़ प्रभु श्रीराम शिवजी के धनुष पिनाकी का विग्रह करके माता सीता के स्वयंवर को जीतने के उपरांत सीताजी का वरण करते हैं वहीं रुक्मणी से विवाह के लिए श्रीकृष्ण सारी परंपराओं को तोड़कर उन्हें भगा ले जाते हैं। जहाँ श्रीराम सदैव एक पत्नीधारी रहने का सीता जी को वचन देते हैं वहीं श्रीकृष्ण की अनेक रानियां हैं और राधा उनका सच्चा प्रेम है लेकिन राधा से उन्होंने विवाह नहीं किया । "रघुकुल रीत सदा चली आयी, प्राण जाये पर वचन न जाये ", श्रीराम अपने कुल की इसी विशेषता का अनुसरण करते हुए सदा अपने वचनों पर अडिग रहते हैं परंतु श्रीकृष्ण राधारानी से किये अपने वादे भूल जाते हैं। क्षत्रिय योद्धा श्रीराम ने कभी रण में पीठ नहीं दिखाई लेकिन श्रीकृष्ण को जरासंध से युद्ध में रणभूमि छोड़कर भागना पड़ा, इसीलिए उन्हें रणछोड़ दास भी कहा जाता है। भगवान कृष्ण ने मनुष्य रूप में जन्म लेने के बाद भी अपने जन्म के समय से ही कई अद्भुत चमत्कार दिखाने शुरू कर दिए थे जबकि भगवान राम ने श्री विष्णु का अवतार होते हुए भी रावण वध हेतु वानरों की सहायता ली। गौतम ऋषि के श्राप से देवी अहिल्या को मुक्त करने वाले राम जब अयोध्या लौटते हैं तो अयोध्या के लोग दीपोत्सव मानते हैं लेकिन वहीं दूसरी ओर अपने सौ पुत्रों की मृत्यु से आहत गांधारी के श्राप से कृष्ण अपनी द्वारका नगरी को नहीं बचा पाते, ऐसी मान्यता है कि इसी श्राप के प्रभाव से द्वारका हर युग में समुद्र में समा जाती है और यही डूबी हुई नगरी आज की द्वारका के समीप बेट द्वारका के नाम से प्रसिद्द है जहाँ समुद्र में एक प्राचीन विकसित नगर के अवशेष पाए गए हैं। आपमें से कइयों के मन में शायद ये विचार चल रहा होगा कि श्रीराम को गृहस्थ जीवन का सुख नहीं मिला और श्रीकृष्ण ने अपनी समस्त रानियों के साथ गृहस्थ जीवन का आनंद उठाया , जहाँ प्रभु श्रीराम गृहस्थ होकर भी गृहस्थ जीवन के बंधनों से मुक्त दिखाई पड़ते हैं वहीँ श्रीकृष्ण ने तो मथुरा से लेकर द्वारका तक सबको अपनी माया में बांध रखा है लेकिन फ़िर भी मेरे विचार में श्रीराम सांसारिक माया से विरक्त नहीं हैं जबकि श्रीकृष्ण मुझे संसार के रिश्ते-नातों के प्रति निर्मोही दिखाई पड़ते हैं। ऐसा मुझे इसलिए लगता है क्योंकि रावण द्वारा सीता जी के हरण के पश्चात् श्रीराम किसी भी साधारण मनुष्य की तरह  ही अपनी पत्नी के वियोग में संताप करते हैं जबकि दूसरी ओर श्रीकृष्ण सभी गोकुल वासियों और गोपियों को अपने विरह में छोड़कर मथुरा आ जाते हैं और फ़िर कभी वापिस नहीं जाते बल्कि उद्धव जी से गोपियों के लिए सन्देश भी भिजवाते हैं कि वे उन्हें भूल जाएं। फ़िर आगे चलकर श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध में भी अर्जुन को गीता का यही उपदेश देते हैं कि "मनुष्य शरीर नश्वर है केवल आत्मा अमर है इसलिए हे पार्थ! तू सांसारिक रिश्तों की इस माया से निकलकर अधर्म के विरुद्ध धर्म की इस लड़ाई का प्रतिनिधित्व कर। " श्री सीता-राम के वैवाहिक जीवन का दुखद अंत होने के बावजूद उनकी प्रेम कहानी आदर्श है जबकि श्री राधा-कृष्ण का नाम एक अधूरी प्रेम कहानी का पर्याय है किंतु राधा-कृष्ण का पवित्र प्रेम किसी भी सांसारिक रिश्ते की मर्यादा में बांधा नहीं जा सकता क्योंकि उस प्रेम की कोई थाह नहीं पा सकता।
रामायण मूल रूप से दक्षिण भारत की कथा मानी जाती है और महाभारत उत्तर भारत की, लेकिन जहाँ एक तरफ उत्तर भारत के मंदिरों में विष्णु भगवान के राम और कृष्ण अवतारों की पूजा होती है वहीं दक्षिण भारत के अधिकांश मंदिरों में इन अवतारों की बजाय श्री विष्णु की ही अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है जिन्हें आंध्र प्रदेश में तिरुपति बालाजी तो केरल में पद्मनाभ स्वामी के नाम से जाना जाता है।
संक्षेप में कहें तो श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो श्रीकृष्ण की लीलाएं सारी परंपराओं और मर्यादाओं के दायरे से परे हैं ; श्रीराम सदैव धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं तो श्रीकृष्ण कर्म के मार्ग पर.. और मनुष्य का कर्म ही उसका धर्म है। श्रीमदभागवत गीता विश्व का एकमात्र ऐसा धार्मिक ग्रंथ है जो किसी देवी-देवता की स्तुति या उनके चमत्कारों की कथा से बढ़कर निरपेक्ष रूप से मनुष्य को केवल और केवल अपने कर्म करने की शिक्षा देता है। आज समस्त भौतिक सुख-सुविधाओं के होते हुए भी मनुष्य के जीवन में नैराश्य और नकारात्मकता हावी होती जा रही है, विश्व की एक बड़ी आबादी मानसिक अवसाद से ग्रसित है, ऐसे में विभिन्न धर्म-समुदाय की सीमाओं से परे जाकर कर्म-प्रधान ग्रंथ गीता सम्पूर्ण मानव जाति के लिए भारत की एक अनमोल भेंट है।
"कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन " अर्थात तेरा कर्म करने में ही अधिकार है , उसके फलों में कभी नहीं.. जीवन को चलायमान रखने के लिए ये वाक्य निःसन्देह ही संजीवनी बूटी के समान है।


Monday, 25 May 2020

धर्मांतरण के दौर में हिंदू धर्म का अस्तित्व



अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए खुदाई का कार्य प्रारंभ हो चुका है और जैसा कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के मुख्य पुरातत्वविद श्री के.के.मोहम्मद ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि विवादित ढांचे के नीचे एक भव्य मंदिर होने के प्रमाण उन्हें मिले हैं,उनके इसी दावे पर अब और पुख़्ता मुहर लगनी शुरू हो गयी है जब आज विवादित ज़मीन की खुदाई में देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां, शिवलिंग, विशाल स्तंभ और पुष्प-चक्र जैसी अनेकों ग़ैर-इस्लामिक चीज़ें मिल रही हैं। वैसे तो कहा जाता है कि "सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती" लेकिन ऐसा लग रहा है मानों अदालत के निर्णय पर संदेह करने वालों के लिए शायद इन वस्तुओं के ज़रिये प्रभु श्रीराम ने ख़ुद अपने अस्तित्व का प्रमाण प्रस्तुत किया है। 
भगवान राम को एक आदर्श राजा भी माना गया है और कहा जाता है कि राम-राज्य में कोई दुखी नहीं था और चारों ओर सुख-समृद्धि थी। यही कारण है कि कलियुग में राम-राज्य स्थापित करने की कल्पना की जाती है जिसे कुछ धर्म-निरपेक्ष लोग हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से जोड़कर देखने लगते हैं। श्रीराम किसी एक धर्म के नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति के शलाका पुरुष हैं, लाखों-करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र हैं लेकिन स्वयं भगवान को भी इस हिन्दू बहुल राष्ट्र में अपने हिस्से की ज़मीन वापिस पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। रामलला को भी अपने जन्म-स्थान का प्रमाण-पत्र पाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगानी पड़ी और दशकों तक फ़ैसला आने का इंतज़ार करना पड़ा। त्रेता युग में तो श्रीराम ने वनवास 14 वर्षों में पूरा कर लिया था लेकिन कलियुग के उनके इस टैंट-रुपी वनवास में तो सदियां निकल गयीं। दुनिया के कई देशों में अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जाता है जिस पर वहां की सरकार भी कोई ध्यान नहीं देती, लेकिन भारत ऐसा अनोखा और एकमात्र देश है जहाँ बहुसंख्यक समाज को ही अपने इष्टदेव के जन्म-स्थान पर उनके मंदिर पुनर्निर्माण के लिए पीढ़ियों तक संघर्ष करना पड़ा! राम-मंदिर मुक़दमे में अल्पसंख्यक समुदाय को भी अपने तमाम सबूतों और गवाहों को अदालत में पेश करने का समान अवसर दिया गया जिनका गंभीरता-पूर्वक अध्ययन भी किया गया और भारत की सर्वोच्च अदालत ने इस पूरे प्रकरण का फ़ैसला धार्मिक आधार पर नहीं बल्कि पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर किया, जो कि अन्य किसी भी कैथोलिक या इस्लामिक देश में मुमकिन ही नहीं है । मेरे विचार में संपूर्ण विश्व में धर्म-निरपेक्षता की इससे बड़ी कोई मिसाल नहीं हो सकती।
अयोध्या के राजा राम को भले ही अपनी ही नगरी में अपना अस्तित्व सिद्ध करने के लिए संघर्ष करना पड़ा हो लेकिन बुंदेलखंड में बसे ओरछा में श्रीराम को राजा का दर्जा प्राप्त है ; यहाँ का रामराजा मंदिर देश का इकलौता मंदिर है जहाँ श्रीराम की एक राजा के रूप में पूजा-उपासना की जाती है। ओरछा के राजा राम को मंदिर की सुरक्षा में तैनात पुलिसवालों के द्वारा रोज़ाना "गार्ड ऑफ़ ऑनर " भी दिया जाता है और राजा राम को राजसी खाद्य पदार्थों का ही भोग लगाया जाता है। हम जानते हैं कि लगभग हर भारतीय भाषा के प्रमुख कवियों ने रामायण का अपनी भाषा में अनुवाद किया है लेकिन भारत के बाहर भी कई देशों में रामायण का अनुवाद किया गया है। भारत,नेपाल और श्रीलंका के अलावा भी कई देशों में श्रीराम की इस पुण्य कथा के प्रमाण मिलते हैं, यही कारण है कि मॉरीशस, म्यांमार,कंबोडिया,लाओस,थाईलैंड,मलेशिया,इंडोनेशिया और फिज़ी जैसे कई देशों में आज भी राम-लीला का मंचन किया जाता है। इन सभी देशों में सबसे आश्चर्यजनक नाम है इंडोनेशिया का क्योंकि इंडोनेशिया पूरी दुनिया में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला राष्ट्र है लेकिन इंडोनेशिया के मुसलमान हमेशा से कहते आये हैं कि "इस्लाम हमारा धर्म है लेकिन रामायण हमारी संस्कृति है।" इंडोनेशियन लोगों के रामायण के प्रति इस लगाव और सम्मान की झलक हमें इंडोनेशिया की संस्कृति में साफ़ देखने को भी मिलती है।काश कि भारत के हमारे मुस्लिम भाई-बहन भी विदेशी आक्रमणकारी बाबर की जगह इसी धरती पर पैदा हुए राम को अपनी संस्कृति का हिस्सा मान पाते तो मंदिर-मस्जिद का कोई झगड़ा ही न होता। 
हम सब जानते हैं कि श्रीराम की सेना ने लंका तक जाने के लिए समुद्र में राम-सेतु का निर्माण किया था , अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी सेटेलाइट द्वारा ली गयी तस्वीरों के आधार पर भारत और श्रीलंका के बीच मानव निर्मित पुल के अस्तित्व की पुष्टि की है और गूगल मैप पर भी बारीकी से देखने पर हमें दोनों देशों को जोड़ती हुई एक रेखा दिखाई पड़ती है। श्रीलंका में राम-सेतु शुरू होने के पहले एक साइन-बोर्ड लगाया गया है जिस पर इसे "एडम्स ब्रिज " का नाम दिया गया है, ज़ाहिर है कि मुग़लों और ईसाई मिशनरियों ने हमेशा से ही सनातन संस्कृति के प्रतीक-चिन्हों को मिटाने की कोशिश की है और आज के दौर में कुछ तथाकथित बुद्धिस्ट संस्थाएं भी यही काम कर रही हैं जो बुद्ध के नाम पर आदिवासी और अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों का धर्म-परिवर्तन करा रही हैं।
पिछले कुछ दशकों में भारत में धर्मांतरण तेज़ी से फैल रहा है जिसके मूल में है पुरातन काल में ब्राह्मणों द्वारा किया गया जातिगत भेदभाव और आधुनिक काल में जिसे पोषित किया है भारत की अशिक्षा, ग़रीबी और वामपंथी विचारधारा ने । आज केरल, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अनुसूचित जाति-जनजाति के लोग धर्म-परिवर्तन करके तथाकथित रूप से बौद्ध और ईसाई बन रहे हैं लेकिन आरक्षण का लाभ लेने के लिए काग़ज़ों पर ये SC/ST हिन्दू ही रहते हैं । धर्म-परिवर्तन के बदले ये बौद्ध और मिशनरी संस्थाएं इन लोगों को अच्छी शिक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं । दूसरी तरफ़ पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में हिंदुओं और सिखों का जबरन धर्म-परिवर्तन कराया जाता रहा है। पिछले दिनों महाराष्ट्र के एक दूरस्थ इलाक़े में हुई दो साधुओं की नृशंस हत्या के मूल में भी कहीं न कहीं उस क्षेत्र में तेज़ी से फ़ैल रहा धर्मांतरण भी एक मुख्य  कारण है । वामपंथी शहरी नक्सलवादियों के पाताल लोक में इस तरह की साज़िशें धरती के नीचे बहने वाले गर्म लावे की तरह सतत सक्रिय रहती हैं। 
श्रीराम के साथ ही हमारे भगवान श्रीकृष्ण भी ग्लोबल हैं जिसमें सबसे बड़ी भूमिका है International Society of Krishna Consciousness यानि कि इस्कॉन की जिसके द्वारा पूरे विश्व में "हरे कृष्णा " आंदोलन का व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया। भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई प्रमुख शहरों में इस्कॉन द्वारा भव्य कृष्ण मंदिरों का निर्माण कराया गया है। इस संस्था की सबसे बड़ी खासियत है लाखो की संख्या में इससे जुड़े विदेशी अनुयायी जो दूसरे धर्मों के होते हुए भी सदा कृष्ण-भक्ति में लीन रहते हैं। इसीलिए किसी भी अन्य कृष्ण मंदिर की तुलना में इस्कॉन मंदिर के अंदर का दृश्य बहुत ही अलग होता है जहाँ सैंकड़ों विदेशी भारतीय परिधान पहने हारमोनियम,ढोलक,तबले और झांझ बजाते, हरे कृष्णा गाते हुए और श्री कृष्ण की धुन में नाचते दिखाई देते हैं। मेरा निजी मत है कि श्रीराम के चरित्र को समझना पाश्चात्य संस्कृति में पले-बढे विदेशियों के लिए आसान नहीं है, शायद इसीलिए हिंदू धर्म से ख़ुद को जोड़ने के लिए श्रीकृष्ण की भक्ति उन्हें सरलतम मार्ग लगा। बहरहाल, श्रीकृष्ण हों या श्रीराम... अंततः दोनों एक ही हैं  जो अपने जीवन चरित्र से मानव जाति को सदैव धर्म का अनुसरण करने की प्रेरणा देते हैं। 
भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म सदा से ही पश्चिमी देशों के लिए आकर्षण और जिज्ञासा का केंद्र रहे हैं। यही वजह है कि बहुत से विदेशी पर्यटक आध्यात्मिक शांति की खोज में भारत का रुख़ करते हैं, उनमें से कई मृत्यु का रहस्य समझने के लिए बनारस जाते हैं, कुछ योग और ध्यान सीखने के लिए हरिद्वार-ऋषिकेश में ठहरते हैं, कुछ मोक्ष की परिकल्पना को समझने के लिए विश्व के सबसे बड़े इंसानी जमघट कुम्भ मेले में शिरकत करते हैं तो कुछ कामशास्त्र की परिभाषा और काम से अध्यात्म की यात्रा को समझने के लिए खजुराहो के मंदिरों का भ्रमण करते हैं और इन मंदिरों में नौवीं शताब्दी के भारतीय समाज का इतना आधुनिक रूप देखकर आश्चर्य-चकित रह जाते हैं। भारतीय संस्कृति इतनी समृद्ध है कि धर्म, अध्यात्म,ज्ञान, विज्ञान, स्वास्थ्य, चिकित्सा, साहित्य, भाषा, स्थापत्य, चित्रकारी, मूर्तिकला, संगीत, वादन, नृत्य, ज्योतिष, अर्थशास्त्र,राजनीति, पाककला जैसे जीवन के हर क्षेत्र में हमारे पास विश्व को देने के लिए बहुत कुछ है जो अभी भी अछूता है या विदेशी संस्कृति से प्रभावित होकर जिसे हम भुला चुके हैं। शायद यही कारण है कि अन्य धर्मों की तरह हिंदुओं को बलपूर्वक या पैसे का लालच देकर किसी का धर्म-परिवर्तन नहीं करवाना पड़ता, बल्कि हिंदू धर्म से प्रभावित होकर लोग ख़ुद देश-विदेश से चलकर हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति को समझने भारत आते हैं।

Friday, 22 May 2020

Shanidev



I consider Shanidev d most relevant gods in modern times bcz he keeps accounts of Karma of all d human beings, dts y people r usually afraid of him bt as per my personal experience I can say dt if ur Karma is good not only for urself bt for others as well dn Shanidev will reward u with d best possible outcome, especially during his specific movements called “Sadhesati/Adhayya” & vice-versa if ur Karma is not good. Orbital Speed of d planet Saturn is d slowest among all d classical planets as per both Astronomy & Astrology. So ds fact proves d significance of Indian Astrology as v had been knowing ds fact since d ancient times, dts y Saturn takes d longest time(7.5yrs) while transiting b/w different houses in one’s birth chart & screws up his/her life during ds time.
Shanidev is considered d god of justice who moves with a slow pace so we can relate ds fact with d slow motion of our judicial system & it is justifiable bcz an appropriate justice takes time as d Indian judicial system believes dt d innocent must not b sentenced at any cost evn though it may tk longer to punish d guilty. So guyz, don’t be scared of Shanidev as he wud definitely gonna help u if ur doings r good. D key factor is only ur KARMA.
श्री नीलांजनम समभासम रविपुत्रम यमाग्रजम,
छाया मार्तंड संभूतम तं नमामि शनैश्चरम।

Saturday, 16 May 2020

CORONA: OBSTACLE OR OPPORTUNITY

There are approx. 45Lakhs people across d globe who have been suffering from Corona pandemic out of which more than 3 Lakhs people have been died till d date & figures are still increasing rapidly. In India, we are living in 3rd phase of d lockdown & next iteration of lockdown will be starting from 18th May. With d 3rd installment of this lockdown in India, some of d industries permitted to work with limited staff & proper sanitization arrangements. Since d giant country can't sit idle for d months without doing anything as we are still a developing nation, although developed superpowers are also not able to do this bcz economy needs motion whether it's slow motion or fast; but it must be moving on with it's pace. Economy couldn't be stopped completely bcz it feeds billions of people & provides their bread & butter.
To get back this derailed economy on d track, d Indian government has decided to move on with some more relaxations in commercial activities in d upcoming edition of lockdown. To fulfill this purpose our PM has announced a Covid-19 economic relief package of 20Lakh Crore which equals to around 10% of our total GDP. This is a good move towards financial reform in such crisis, especially for MSME Sector. D key point of this package is huge increase in credit guarantees given by d government itself helping MSMEs to keep their heads above d water even when d economy goes down. Another impressive announcement done by our FM is d change in definition of an MSME i.e. from now onwards MSME will be judged on turnover rather than d size of their enterprise dt means there will be no difference b/w a manufacturing MSME & services MSME.      
Meanwhile Indian Railway has started some special trains for migrant labors who want to return their homes. Most of d workers belong to d backward states like UP & Bihar who work in commercially prominent states like Maharashtra & Gujarat. Now they are going back to their native villages which are less prone to d infectious virus as compared to d metropolitan cities. Bt as i've said dt now many of d industries have started functioning again so now the issue of Reverse migration might arise. For that too, government is now focusing on "Aatm-nirbhar Bharat" under which a no of encouraging announcements have been made for farmers, dairy owners & animal husbandry. Media reports are saying dt most of d labors don't want to return to d big cities & now they want to start farming again on their ancestral land & our government policies will surely help them.
Along with this, our PM has requested to all d Indians to become "Vocal for Local" as we all have realized d importance of local shopkeepers & suppliers in this period of lockdown when d big retail stores & online suppliers have almost failed to fulfill d sudden increase in demand of Ration/Groceries despite having large n/w & staff while d local shopkeepers were continuously delivering without fail with limited no of staff. For most of d educated Indians, foreign label on any product is a symbol of a good quality product & "Made in India" products don't match their quality standards. Whereas on d other hand many of d Indian companies like Tata, Patanjali & Dabur etc have become tough competitors to d global food & beverages companies in past few years bcz they manufacture quality products. Patanjali has almost captured a big portion of consumer goods market not only in India rather it's a leading brand in Ayurveda in d world. These Indian brands give us quality assurance whose products are made up of Indian natural herbal ingredients. Health benefits of these herbal ingredients have been scientifically proven without any side effects as compared to other international products which use harmful chemicals that can cause long lasting side effects to d human body.
So i think this pandemic season might be a game changer for d Indian economy & Indian brands. As we all know dt lack of laboring manpower is a big issue in western countries dt's why they usually set up their manufacturing plants in heavy populated countries like China & India. Bt due to d suspicious involvement of China in this Corona outbreak, now most of d MNCs walking out of d China & heading towards India. Many of them have contacted Indian government willing to set up their plants in India. Indian IT professionals have already captured a significant position in d tech industry. India is called d "Pharmacy to d world" & Indian pharma companies like Sun pharma & Cipla are d leading supplier of drugs to many countries, though India now has to work on d production of raw material used for making medicines for which we are still dependent on China. I think Auto industry will also revive after lockdown as of now Millennials started thinking to buy own vehicle rather preferring app based taxi services. Indian government is also promoting d "Swadeshi", therefore our FM announced dt global tenders will be disallowed in government procurement tenders up to INR 200crore. So this is a golden chance for Indian companies to become a global market leader.
Besides this, our world is now learning to living in d New normal with Mask,Gloves, Sanitizer, Social distancing & basic hygiene ethics. Mobile manufacturing companies are working on such handset modals that could be run smoothly after wearing d gloves. Automobile companies started working to provide sanitization arrangements in d car. Event companies are planning to host mega events with sitting arrangements to be done as per social distancing formula. Tech companies like TCS has declared to be more emphasized on "Work from home" culture which has become a need in today's infected world & getting popular even in government departments. But i m sure dt at d end of this crisis, India will emerge out as a world leader in terms of both d humanity as well as d sustainable growth of d economy.

Saturday, 9 May 2020

Happy Mother's Day

पिछले वर्ष मातृ दिवस के दिन ही काफ़ी समय के बाद मुझे पंडित विजयशंकर मेहता जी को पुनः सुनने का सौभाग्य मिला था जिसका विषय था "संबंधों में समरसता के सूत्र", आज उसी दिन की घटना का मुझे स्मरण हो आया है जो आप सबको बताना चाहती हूं....
उस दिन सभागृह में पंडितजी रिश्तों की महत्ता का बखान कर रहे थे और बता रहे थे कि अमेरिका के लोगों की जीवनशैली को आदर्श मानकर हम किस तरह अपनी जड़ों यानी कि अपने रिश्तों से दूर होते जा रहे हैं और मुझे वहीं बैठे-बैठे इसका उदाहरण भी देखने को मिल गया। हुआ यूं कि मेरी बगल वाली कुर्सी पर ही किसी संभ्रांत मध्यम वर्गीय परिवार की लगभग 70वर्षीय एक शिक्षित बुज़ुर्ग विधवा महिला बैठी हुई थीं जो व्याख्यान सुनने अकेली आयी थीं। व्याख्यान शुरू होने के पहले मेरा उनसे परिचय हुआ और बातों-बातों में उन्होंने व्याख्यान ख़त्म होने के बाद वापिस घर जाने के बारे में अपनी चिंता ज़ाहिर की और मुझसे पूछने लगीं कि यहां से साकेत जाने के लिए रात में साधन कैसे और कहां से मिलेगा क्योंकि पंडितजी का व्याख्यान शाम 6:30बजे से था जो लगभग 1घंटा विलंब से शुरू हुआ। उन्होंने मुझे बताया कि आते समय तो उनके बेटे ने उन्हें ऑटो में बिठा दिया था जिससे वो सकुशल अपने गंतव्य तक पहुंच गईं लेकिन अब कार्यक्रम में देरी की वजह से घर लौटने को लेकर उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती थीं क्योंकि वो व्याख्यान बीच में अधूरा छोड़कर जाना भी नहीं चाहती थीं,तब मैंने उनसे कहा कि आप चिंता न करें, हम लोग आपको साकेत पर छोड़ते हुए निकल जाएंगे। ये सुनते ही उनके चेहरे पर राहत और इतमीनान के भाव आ गए और वो तल्लीनता से पंडितजी को सुनने लगीं लेकिन तभी कार्यक्रम के बीच में 2-3बार बिजली गुल होने पर संचालिका ने मंच से अनाउंस किया कि बाहर तेज़ हवा-आंधी का मौसम होने की वजह से बार-बार लाइट जा रही है। ऐसा सुनते ही वो पुनः चिंतित हो उठीं और बहुत गिड़गिड़ाते स्वर में उन्होंने मुझसे फ़िर पूछा-"बेटा, मुझे अपने साथ ले चलोगे न?" और मैंने भी फ़िर से वही दोहराया - "आंटी,आप टेंशन न लो,हम लोग आपको छोड़ देंगे।" फ़िर लगभग 10बजे कार्यक्रम समाप्त हुआ और हम लोग वहां से घर के लिए निकले लेकिन तब तक मेरे मन में बहुत से सवाल जन्म ले चुके थे क्योंकि मुझे बहुत हैरत हो रही थी कि शाम 6:30से10बजे तक के साढ़े तीन घंटे के समय में उनके घर से उनके पास किसी का कॉल नहीं आया और वो भी तब जब बाहर मौसम भी इतना ख़राब हो चुका था लेकिन उनके परिवार में किसी को नहीं पड़ी थी कि ऐसे मौसम में 70साल की एक बुज़ुर्ग महिला घर कैसे पहुंचेगी,वो इस समय कहाँ है, उसे लौटने का कोई साधन मिला या नहीं,कहीं अचानक उसकी तबीयत तो ख़राब नहीं हो गयी? हालांकि मुझे नहीं पता कि उनके पास फ़ोन था भी या नहीं लेकिन अगर फ़ोन नहीं था तो ये तो और भी चिंताजनक है। इतने में रास्ते में जब हम कंचन बाग़ कॉलोनी की तरफ़ से गुज़रे तब उन्होंने बताया कि मेरे एक बेटा-बहु यहीं रहते हैं और एक बेटा-बहु मेरे साथ रहते हैं, लेकिन तब भी मम्मी या मेरी हम दोनों में से किसी की उनसे पूछने की हिम्मत नहीं हुई कि आपका बेटा आपको लेने क्यों नहीं आया क्योंकि तब तक हम दोनों अपने मन में सारी कहानी समझ चुके थे। पर तब तक उन महिला का दर्द भी ज़ुबान पर आ ही गया जब उन्होंने कहा कि "मेरा बेटा मुझे लेने आता लेकिन शाम को उसकी साली आ गयी तो वो लोग सब बाहर घूमने चले गए हैं।" फ़िर उन्होंने हंसते हुए कहा कि "साली तो घरवाली से भी बड़ी होती है"। इसके बाद वो साकेत चौराहे पर उतर गयीं और अपने बेटे के हिस्से का ढेर सारा आशीर्वाद भी मुझे दे गयीं और मेरे ज़ेहन में बस एक सवाल छोड़ गयीं कि "क्या साली माँ से भी बड़ी होती है"??