अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण के
लिए खुदाई का कार्य प्रारंभ हो
चुका है और जैसा कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के मुख्य पुरातत्वविद श्री के.के.मोहम्मद ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि विवादित ढांचे के नीचे एक भव्य मंदिर होने के प्रमाण
उन्हें मिले हैं,उनके इसी दावे पर अब और पुख़्ता मुहर लगनी शुरू हो गयी है जब आज विवादित ज़मीन की खुदाई में देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां, शिवलिंग,
विशाल स्तंभ और पुष्प-चक्र जैसी अनेकों ग़ैर-इस्लामिक चीज़ें मिल रही
हैं। वैसे तो कहा जाता है कि "सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती" लेकिन ऐसा लग रहा है मानों अदालत के निर्णय पर संदेह करने वालों के लिए शायद इन वस्तुओं के ज़रिये प्रभु
श्रीराम ने ख़ुद अपने अस्तित्व का प्रमाण प्रस्तुत किया है।
भगवान राम को एक
आदर्श राजा भी माना गया है और कहा जाता है कि राम-राज्य में कोई दुखी नहीं था और
चारों ओर सुख-समृद्धि थी। यही कारण है कि कलियुग में राम-राज्य स्थापित करने
की कल्पना की जाती है जिसे कुछ धर्म-निरपेक्ष लोग
हिन्दू राष्ट्र की
अवधारणा से जोड़कर देखने लगते हैं। श्रीराम किसी एक धर्म के नहीं बल्कि
संपूर्ण भारतीय
संस्कृति के शलाका पुरुष हैं, लाखों-करोड़ों
हिंदुओं की आस्था के केंद्र हैं लेकिन स्वयं भगवान को भी इस हिन्दू बहुल राष्ट्र में अपने
हिस्से की ज़मीन वापिस पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा। रामलला को भी अपने
जन्म-स्थान का प्रमाण-पत्र पाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगानी
पड़ी और दशकों तक फ़ैसला आने का इंतज़ार करना पड़ा। त्रेता युग में तो
श्रीराम ने वनवास 14 वर्षों
में पूरा कर
लिया था लेकिन कलियुग के उनके इस टैंट-रुपी वनवास में तो सदियां निकल गयीं। दुनिया के कई
देशों में अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जाता है जिस पर वहां की
सरकार भी कोई ध्यान नहीं देती, लेकिन भारत ऐसा अनोखा और एकमात्र देश है जहाँ
बहुसंख्यक समाज को ही अपने इष्टदेव के जन्म-स्थान पर उनके मंदिर
पुनर्निर्माण के लिए पीढ़ियों तक संघर्ष करना पड़ा! राम-मंदिर मुक़दमे में अल्पसंख्यक समुदाय को
भी अपने तमाम सबूतों और गवाहों को अदालत में पेश करने का समान अवसर दिया गया जिनका
गंभीरता-पूर्वक अध्ययन भी किया गया और भारत की सर्वोच्च अदालत ने इस पूरे
प्रकरण का फ़ैसला धार्मिक आधार पर नहीं बल्कि पुरातात्विक साक्ष्यों के
आधार पर
किया, जो कि अन्य किसी भी कैथोलिक या इस्लामिक
देश में मुमकिन ही नहीं है । मेरे विचार में संपूर्ण विश्व में
धर्म-निरपेक्षता की इससे बड़ी कोई मिसाल नहीं हो सकती।
अयोध्या के राजा राम को भले
ही अपनी ही नगरी में अपना अस्तित्व सिद्ध करने के लिए संघर्ष करना पड़ा हो लेकिन बुंदेलखंड में
बसे ओरछा
में श्रीराम को राजा का दर्जा प्राप्त है ; यहाँ का रामराजा मंदिर देश का इकलौता
मंदिर है जहाँ श्रीराम की एक राजा के रूप में पूजा-उपासना की जाती है। ओरछा
के राजा राम को
मंदिर की सुरक्षा में तैनात पुलिसवालों के द्वारा रोज़ाना "गार्ड ऑफ़ ऑनर
" भी
दिया जाता है और राजा राम को राजसी खाद्य पदार्थों का ही भोग लगाया जाता है। हम जानते
हैं कि लगभग हर भारतीय भाषा के प्रमुख कवियों ने रामायण का अपनी भाषा में अनुवाद किया है लेकिन
भारत के बाहर भी कई देशों में रामायण का अनुवाद किया गया है। भारत,नेपाल और श्रीलंका के अलावा भी कई देशों में श्रीराम की
इस पुण्य कथा
के प्रमाण मिलते हैं, यही
कारण है कि मॉरीशस,
म्यांमार,कंबोडिया,लाओस,थाईलैंड,मलेशिया,इंडोनेशिया और फिज़ी जैसे कई देशों में आज भी
राम-लीला का मंचन किया जाता है। इन सभी देशों में सबसे आश्चर्यजनक नाम है इंडोनेशिया का
क्योंकि इंडोनेशिया पूरी दुनिया में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाला राष्ट्र है
लेकिन इंडोनेशिया के मुसलमान हमेशा से कहते आये हैं कि "इस्लाम हमारा धर्म है लेकिन
रामायण हमारी संस्कृति है।" इंडोनेशियन लोगों के रामायण के प्रति इस
लगाव और सम्मान की झलक हमें इंडोनेशिया की संस्कृति में साफ़ देखने
को भी मिलती है।काश कि भारत के हमारे मुस्लिम भाई-बहन भी विदेशी आक्रमणकारी
बाबर की जगह इसी धरती पर पैदा हुए राम को अपनी संस्कृति का हिस्सा मान
पाते तो मंदिर-मस्जिद का कोई झगड़ा ही न होता।
हम सब जानते हैं कि श्रीराम की सेना ने लंका तक जाने के लिए
समुद्र में
राम-सेतु का निर्माण किया था , अमेरिकी
अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी सेटेलाइट द्वारा ली गयी तस्वीरों के
आधार पर भारत और श्रीलंका के बीच मानव निर्मित पुल के अस्तित्व की पुष्टि की
है और गूगल मैप पर भी बारीकी से देखने पर हमें दोनों देशों को जोड़ती हुई एक रेखा दिखाई पड़ती
है। श्रीलंका में
राम-सेतु शुरू होने के पहले एक साइन-बोर्ड लगाया गया है जिस पर इसे "एडम्स ब्रिज " का नाम दिया गया है,
ज़ाहिर है कि मुग़लों और ईसाई मिशनरियों ने हमेशा से ही सनातन
संस्कृति के प्रतीक-चिन्हों को मिटाने की कोशिश की है और आज के दौर में कुछ तथाकथित बुद्धिस्ट
संस्थाएं भी यही काम कर रही हैं जो बुद्ध के नाम पर आदिवासी और अनुसूचित जाति-जनजाति के
लोगों का धर्म-परिवर्तन
करा रही हैं।
पिछले कुछ दशकों में
भारत में धर्मांतरण तेज़ी से फैल रहा है जिसके मूल में है पुरातन काल में ब्राह्मणों द्वारा किया गया
जातिगत भेदभाव और आधुनिक काल में जिसे पोषित किया है भारत की अशिक्षा,
ग़रीबी और वामपंथी विचारधारा ने । आज केरल, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अनुसूचित जाति-जनजाति
के लोग धर्म-परिवर्तन करके तथाकथित रूप से बौद्ध और ईसाई बन रहे हैं लेकिन आरक्षण का लाभ
लेने के लिए काग़ज़ों पर ये SC/ST हिन्दू
ही रहते हैं । धर्म-परिवर्तन के बदले ये बौद्ध और मिशनरी संस्थाएं इन लोगों को अच्छी
शिक्षा और आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं । दूसरी तरफ़ पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों
में हिंदुओं और सिखों का जबरन धर्म-परिवर्तन कराया जाता रहा है। पिछले दिनों महाराष्ट्र के एक दूरस्थ इलाक़े में हुई दो साधुओं की नृशंस हत्या के मूल में भी कहीं न कहीं उस क्षेत्र में तेज़ी से फ़ैल रहा धर्मांतरण भी एक मुख्य कारण है । वामपंथी शहरी नक्सलवादियों के पाताल लोक में इस तरह की साज़िशें
धरती के नीचे बहने वाले गर्म लावे की तरह सतत सक्रिय रहती हैं।
श्रीराम के साथ ही
हमारे भगवान श्रीकृष्ण भी ग्लोबल हैं जिसमें सबसे बड़ी भूमिका है International
Society of Krishna Consciousness यानि
कि इस्कॉन की जिसके द्वारा पूरे विश्व में "हरे कृष्णा " आंदोलन का व्यापक प्रचार-प्रसार
किया गया। भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई प्रमुख शहरों में इस्कॉन द्वारा भव्य कृष्ण
मंदिरों का निर्माण कराया गया है। इस संस्था की सबसे बड़ी खासियत है लाखो की
संख्या में इससे जुड़े विदेशी अनुयायी जो दूसरे धर्मों के होते हुए भी सदा
कृष्ण-भक्ति में लीन रहते हैं। इसीलिए किसी भी अन्य कृष्ण मंदिर की तुलना में
इस्कॉन मंदिर के अंदर का दृश्य बहुत ही अलग होता है जहाँ सैंकड़ों
विदेशी भारतीय परिधान पहने हारमोनियम,ढोलक,तबले और झांझ बजाते, हरे कृष्णा गाते हुए और श्री कृष्ण की धुन में नाचते दिखाई
देते हैं। मेरा निजी मत है कि श्रीराम के चरित्र को समझना पाश्चात्य संस्कृति में पले-बढे
विदेशियों के लिए आसान नहीं है, शायद इसीलिए हिंदू धर्म से
ख़ुद को जोड़ने के लिए श्रीकृष्ण की भक्ति उन्हें सरलतम मार्ग लगा। बहरहाल, श्रीकृष्ण हों या श्रीराम... अंततः दोनों एक ही हैं
जो अपने जीवन चरित्र से मानव जाति को
सदैव धर्म का अनुसरण करने की प्रेरणा देते हैं।
भारतीय संस्कृति और
हिन्दू धर्म सदा से ही पश्चिमी देशों के लिए आकर्षण और जिज्ञासा का केंद्र रहे हैं।
यही वजह है कि बहुत से विदेशी पर्यटक आध्यात्मिक शांति की खोज में भारत का रुख़ करते हैं,
उनमें से कई मृत्यु का रहस्य समझने के लिए बनारस जाते हैं,
कुछ योग और ध्यान सीखने के लिए
हरिद्वार-ऋषिकेश में ठहरते हैं, कुछ
मोक्ष की परिकल्पना को समझने के लिए विश्व के सबसे बड़े इंसानी जमघट कुम्भ मेले में शिरकत करते
हैं तो कुछ कामशास्त्र की परिभाषा और काम से अध्यात्म की यात्रा को समझने
के लिए खजुराहो के मंदिरों का भ्रमण करते हैं और इन मंदिरों में नौवीं
शताब्दी के भारतीय समाज का इतना आधुनिक रूप देखकर आश्चर्य-चकित रह जाते हैं।
भारतीय संस्कृति इतनी समृद्ध है कि धर्म, अध्यात्म,ज्ञान,
विज्ञान, स्वास्थ्य, चिकित्सा, साहित्य, भाषा, स्थापत्य, चित्रकारी, मूर्तिकला, संगीत, वादन, नृत्य, ज्योतिष, अर्थशास्त्र,राजनीति, पाककला जैसे जीवन के हर क्षेत्र में
हमारे पास विश्व
को देने के लिए बहुत कुछ है जो अभी भी अछूता है या विदेशी संस्कृति से प्रभावित
होकर जिसे हम भुला चुके हैं। शायद यही कारण है कि अन्य धर्मों की तरह हिंदुओं को बलपूर्वक
या पैसे का लालच देकर किसी का धर्म-परिवर्तन नहीं करवाना पड़ता, बल्कि हिंदू धर्म से प्रभावित होकर लोग
ख़ुद देश-विदेश से चलकर हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति को समझने
भारत आते हैं।
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