Saturday, 14 September 2013

HINDI MERI JAAN,HINDI MERI SHAAN

जागो रे ....

अंततः आज मैंने काफ़ी दिनों के बाद कुछ लिखने का समय निकाल ही लिया और देखिये न कितने शुभ दिन पर ये शुभ मुहूर्त आया क्योंकि आज हिंदी दिवस जो है।  शायद इसीलिए आज मुझे प्रेरणा मिली हिंदी के अथाह सागर में गोते लगाने की ..क्योंकि मैं  जानती हूँ कि मैं अपनी मातृभाषा के समंदर में चाहे जितनी भी गहराई तक जाऊं ,कभी डूब नही सकती क्योंकि यहीं तो मेरा जन्म हुआ है।ये किसी विदेशी भाषा का समुद्र नहीं जिसके भीतर जाने के लिए मुझे कुछ विशेष आधुनिक उपकरणों की सहायता लेनी पड़े!पिछले कई दिनों से मैं इसी कश्मकश में थी कि अपने विचारों को आप सबके सामने प्रकट करने हेतु मैं किस भाषा को माध्यम के रूप में चुनूं?मेरा मन -  मस्तिष्क तो बार - बार मुझे अपनी मातृभाषा के आँचल से सारा स्नेह समेट लेने को कहता था लेकिन आसपास का हिंदी विरोधी वातावरण मुझे दिन - ब - दिन अपनी जड़ों से दूर करता जा रहा था।हर किसी ने मुझे आंग्ल भाषा में ही लिखने का परामर्श दिया,उन सभी के इसके पीछे अपने - अपने तर्क थे ..किसी ने कहा कि आज के ज़माने के आधुनिक शिक्षित युवा जो अंग्रेजी माध्यम में स्कूल - कॉलेज पढ़कर आते हैं उन्हें अंग्रेजी साहित्य ही पढना पसंद है क्योंकि उसे ही वह उच्च कोटि का साहित्य समझते हैं।शायद उनकी नज़रों में शेक्सपियर के आगे कालिदास की प्रतिभा बौनी है,भारवि और भास  इत्यादि महाकवियों से वे अनभिज्ञ हैं!आज किसी को भी तुलसी - सूर के नीतिपरक दोहों में कोई दिलचस्पी नहीं है।
किसी ने कहा कि हिंदी में लिखे  आपके मौलिक लेख उतने प्रभावोत्पादक नहीं हैं जितने गूगल या अन्य किसी अंग्रेजी किताब से कॉपी - पेस्ट करके फेसबुक पर अंग्रेजी में लिखी चंद पंक्तियाँ जिन्हें कुछ ही मिनटों में ढेरों लाइक्स मिल जाते हैं,किसी ने कहा अपनी मातृभाषा के इतने परिष्कृत मौलिक स्वरुप को देखने की हमारी आदत नहीं है क्योंकि हम तो अंग्रेज़ी के श्रृंगार रस में डूबे हुए हैं।वैसे रस से मुझे याद आया कि हिंदी में नौ रस होते हैं जिनके बारे में हमने कभी बचपन में पढ़ा था लेकिन शायद अब हमें उनके नाम भी ठीक से याद नहीं!कैसी विडम्बना है कि जो रस हमें सुख- दुःख, मिलन- बिछोह और प्रेम -करुणा आदि का अनुभव देते हैं आज हमारे लिए उनका कोई औचित्य नहीं!
कुछ लोगों का ये भी कहना है कि हिंदी एक व्यावसायिक भाषा नहीं है और शायद आने वाले कुछ वर्षों में ये व्यावहारिक भाषा भी न रहे ..इसलिए आपको हिंदी में लेखन करने से कोई लाभ होने वाला नहीं है।आज अधिकतर  युवा बड़े गर्व से कहते हैं कि उन्हें हिंदी नही आती,अपनी इस कमी को वे अपनी श्रेष्ठता समझकर इसका प्रचार -प्रसार करते फिरते हैं।   आज हिंदी को कमतर आंकने वालों के लिए मेरे भी कुछ सवाल हैं:
 जिस भाषा के वर्ण 'म ' से विश्व का लगभग हर बच्चा बोलना आरम्भ करता है क्या अब हमें  दुनिया के सामने उस भाषा में बात करने में शर्मिंदा होना चाहिए?
जिस भाषा से इस हिंदुस्तान की पूरे विश्व में पहचान है क्या उस भाषा के लिए हमारे देश में कोई जगह नहीं है?
जिस भाषा के लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाओं से भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया,क्या उस भाषा के लिए हमारे दिल में कोई सम्मान नहीं है?
कुछ लोग हिंदी दिवस आने से पहले फेसबुक पर अपना नाम हिंदी में डाल देते हैं ऐसा करके क्या ये लोग हिंदी को श्रद्धांजलि देना चाहते हैं और हिंदी दिवस को हिंदी की पुण्यतिथि में बदलना चाहते हैं जिसमे हम मृत व्यक्ति के लिए कुछ देर का मौन धारण करते हैं?
मैं आज हिंदी दिवस पर संकल्प करती हूँ कि आजीवन अपने समस्त विचारपरक लेखों को हिंदी में ही प्रचारित और प्रसारित करूंगी।

जय हिन्द,जय राष्ट्रभाषा।                                                                                   

                                                                                                                                             सोनल तिवारी 
                                                                                                                                            

Tuesday, 5 February 2013


जागो रे ....
अब बात निकली है तो दूर तलक़ जाएगी।कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म आई थी "आजा नच ले ".जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि ये एक नृत्य आधारित फिल्म थी लेकिन ये भी विवादों से न बच सकी।क्योंकि इसके एक गीत में एक वर्ग विशेष के लोगों ने नायिका के शानदार नृत्य और गीत के मधुर संगीत को नज़रंदाज़ करते हुए सिर्फ गीत की एक पंक्ति को अपने मान-सम्मान के लिए ख़तरा  समझकर पूरी फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी।ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी  "जोधा -अक़बर "को भी विवादों के चलते काफ़ी  नुकसान उठाना पड़ा और फिल्म राजस्थान में सिर्फ इसलिए रिलीज़ नही हो पाई क्योंकि महारानी जोधा के जन्मस्थान बल्कि उनके स्वयं के अस्तित्व को लेकर भी संशय की स्थिति है।लेकिन इस फिल्म को बनाने के पीछे फ़िल्मकार का मक़सद जोधा के अस्तित्व की खोज करना नही वरन जोधा -अक़बर की अनछुई प्रेम कहानी को लोगों के सामने लाना था।लेकिन हुडदंगियों के लिए ये बात कोई मायने नही रखती।यहाँ बड़ा सवाल ये है कि फिल्मों से सिर्फ हमारी धार्मिक भावनाएं ही क्यू आहत होती हैं?कभी हमारी राष्ट्रीयता या भारतीयता की भावना आहत क्यू नही होती?उदाहरण -स्वरुप,आज ज़्यादातर 'A'ग्रेड वाली फिल्मे बॉक्स- ऑफिस पर सुपर -हिट  साबित होती हैं।'A 'ग्रेड किसी भी फिल्म को मिलना इस बात का सूचक है कि  फिल्म में अश्लील चीज़ें दिखाई गई हैं लेकिन इन फिल्मों पर कोई धार्मिक संगठन आपत्ति क्यू नही लेता ?आज कुछ अभद्र महिलाओं को जिन्हें अंग्रेजी में Porn Star कहा जाता है भारतीय फिल्मों की नायिका बनाया जा रहा है या यूँ कहें कि भारतीय अभिनेत्रियों को Porn Star बनाया जा रहा है और वो अपना ये हुनर भारतीय फिल्मों में दिखा रही हैं।आज हमारी फिल्मों में वास्तविकता के नाम पर अश्लीलता खुलेआम परोसी जा रही है,लेकिन इन फिल्मो से किसी धार्मिक या महिला संगठन को कोई आपत्ति नही?क्या इन फिल्मों से हमारी भारतीयता की भावना आहत नही होती?किसी ज़माने में हमारी फिल्मे इसी सन्दर्भ में विदेशी फिल्मों से अलग मानी जाती थी कि उनमे नारी की गरिमा का ध्यान रखा जाता था।हमारी फिल्मों में नायिका को संस्कारवान और आदर्श भारतीय नारी की तरह प्रस्तुत किया जाता था जिसे अब पाश्चात्य नारी की तरह प्रदर्शित किया जाता है।मीना कुमारी,नरगिस,नूतन और माला सिन्हा इत्यादि अनेकों अभिनेत्रियों ने हमेशा नारी की गरिमा का ध्यान रखते हुए फ़िल्में की और फिल्म इंडस्ट्री में एक सफल पारी खेली। 
क्या ऐसी फिल्मो से हमारी भारतीय संस्कृति को ठेस नही पहुंचती?और अगर पहुँचती है तो इन फिल्मो के प्रदर्शन को रोकने का प्रयास क्यू नही किया जाता?वैलेंटाइन डे का विरोध करने वाले इन फिल्मों का विरोध क्यू नही करते?ऐसी फ़िल्में बनाने वालो के खिलाफ फ़तवे क्यू नही जारी किये जाते ? लेकिन मैं जानती हूँ  कि इन फिल्मों का विरोध करने का साहस आज किसी में नही है क्योंकि हम खुद ऐसी फ़िल्में देखना पसंद करते हैं।शायद यही है हमारे आधुनिक भारतीय समाज का दोहरा रवैया!
जय हिन्द।   

जागो रे ....
आज एक और समुदाय की धार्मिक भावनाओं के आहत होने का समाचार पढ़ा।अब निशाने पर हैं एक और श्रेष्ठ फ़िल्मकार मणिरत्नम।मेरे विचार से अब सभी फिल्मकारों को एक बात गांठ बांध लेना चाहिए कि अगर उन्हें करोड़ों के नुकसान से बचना है तो उन्हें सिर्फ हिन्दू धर्म से जुड़े पात्रों और घटनाओं पर फ़िल्में बनानी चाहिए,क्योंकि अब हमारे देश में यही एक धर्म रह गया है जिसकी धार्मिक भावनाएं कभी आहत नही होती।वैसे कई दिनों से मेरे दिमाग में एक प्रश्न उठ रहा है कि क्या अब फिल्मे ,जो कभी सिर्फ मनोरंजन का माध्यम हुआ करती थी करोड़ों रूपए खर्च करके सिर्फ धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए ही बनाई  जाती हैं ?फिल्मे जो एक काल्पनिक माध्यम हैं मनोरंजन का ,इस काल्पनिक माध्यम में दिखाई गई चीज़ों को क्या हमें इतनी गंभीरता से लेना चाहिए?वो भी तब जब हम सभी जानते हैं कि ज़्यादातर फिल्मकारों का अपनी फिल्म के ज़रिये सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है और वो है अधिक -से -अधिक पैसा कमाना।यहाँ सवाल उठता है कि अगर हम फिल्मों के प्रति इतने गंभीर हैं तो  सामाजिक सोद्देश्यता को लेकर बनी कई फिल्मों को हमने इतनी गंभीरता से क्यू नही लिया ?"सत्यकाम"से हमने ईमानदारी से रहना क्यू नही सीखा ?"आनंद "से सबको हँसना -हँसाना क्यू नही सीखा ?"अनाड़ी  "जैसा भोलापन अब क्यू नही रहा हममे ? "सरफ़रोश "से पुलिस वालो ने अपना फ़र्ज़ निभाना क्यू नही सीखा ?"शिखर "से हमने प्रकृति के प्रति अपने कर्त्तव्य को क्यू नही समझा?"स्वदेश "से हमने खुद किसी पिछड़े गाँव की दशा सुधारने का बीड़ा उठाना क्यू नही सीखा ?"बॉर्डर "से वतन पर मरना क्यू नही सीखा ?"तारे ज़मीं पर "से सीख लेकर हमने मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्चों के लिए क्यू कुछ नही किया ? "सारांश " और "अवतार "जैसी फिल्मों से हमने बुजुर्गों का आदर करना क्यू नही सीखा ?"मदर इंडिया ","सीमा ","बंदिनी", "लीडर ","कर्मा "और भी न जाने कितनी ऐसी फ़िल्में हैं जो बड़े ही मनोरंजक ढंग से हमें सामाजिक सरोकार की सीख देती हैं लेकिन हमने इसकी तरफ़ ध्यान नही दिया क्योंकि हम सिर्फ उन बातों पर ध्यान देते हैं जिनसे हमें धर्म की आड़ लेकर राजनीति और हुडदंग करने का मौक़ा मिले!
जय हिन्द।

Monday, 4 February 2013


जागो रे ....
वैसे ये जानकर अजीब लगा कि जिस वर्ग की धार्मिक भावनाएं  इस फिल्म से आहत हुई हैं उसी समुदाय से सम्बन्ध रखने वाले कलाकारों-सलमान खान ,फरहान अख्तर और आमिर खान की भावनाएं इस फिल्म से आहत  नही हुई!ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि ये मामला धार्मिक भावनाओं से नही बल्कि राजनीतिक सौदों से जुड़ा है जिसे हवा दी है धर्म की आड़ लेकर  राजनीतिक रोटियां सेकने वाले कुछ छुटभैये नेताओं ने।फिल्मो को स्वीकार या अस्वीकार करने या उन पर कैंची चलाने के लिए ही एक मानद संगठन का गठन किया गया था जिसे सेंसर बोर्ड कहते हैं लेकिन कट्टर धार्मिकता का काला नक़ाब पहनने वालो के लिए ये संगठन कोई मायने नही रखता।आये दिन फिल्मों पर धार्मिक भावनाओं को आहत  करने का आरोप लगते समय हम ये क्यू भूल जाते हैं कि भारत में अगर सही मायनो में कोई धर्म-निरपेक्ष जगह है तो वो है भारतीय फिल्म इंडस्ट्री (बॉलीवुड ),जहाँ शक़ील बदायुनी "मन तडपत हरि दर्शन को आज "जैसे भजन की रचना करते हैं,नौशाद उसे संगीत में पिरोते हैं और मोहम्मद रफ़ी उसे  अपनी दिलकश आवाज़ से अमर बना देते हैं।जहाँ अमर-अकबर -अन्थोनी जैसी फिल्मे बड़े ही मनोरंजक ढंग से साम्प्रदायिक सौहाद्र का सन्देश दे जाती हैं।जहाँ दिवाली,ईद,होली,रक्षा -बंधन,नया वर्ष,बैसाखी और क्रिसमस जैसे सभी त्यौहार सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर मनाते हैं।प्रसिद्ध गीतकार एवं शायर जावेद अख्तर ने कहा था कि फ़िल्में समाज का आइना होती हैं।लेकिन आज इस आईने में हम अपनी  बदसूरत शक्ल क्यू नही देखना चाहते?अगर कोई इस आईने में समाज की वास्तविकता को दिखाने  का प्रयास करता है तो हम उसे देश का दुश्मन क्यू  समझ लेते हैं?
जय हिन्द।

जागो रे ....
"इस फिल्म  के सभी पात्र एवं घटनाएँ काल्पनिक हैं और इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नही है।अगर किसी व्यक्ति या घटना से कोई समानता पाई जाती है तो इसे एक केवल एक संयोग माना  जाएगा।"हम लगभग हर हिंदी फिल्म के शुरू होने से पहले ये स्पष्टीकरण देखते हैं लेकिन  आज ये महज़ एक औपचारिकता बनकर रह गया है !किसी भी कट्टर धार्मिक संगठन के लिए इसका कोई महत्त्व नही है।आज के कुछ बुद्धिजीवी देश में ऐसी स्थिति को सांस्कृतिक आपातकाल कह रहे हैं जिसकी गाज आये दिन गिर रही है निर्दोष साहित्यकारों  और कलाकारों  पर।लेकिन विडम्बना ये है कि आपातकाल लगाने वालों को तो शुरू से ही हमारे  देश में पूजा जाता रहा है और आज भी वे लोग पूजे जाते हैं।हाल ही में इस आपातकाल का शिकार हुए एक श्रेष्ठ कलाकार ने इसे सांस्कृतिक आतंकवाद कहा है।इस तरह के आतंकवादी कब्ज़ा  करना चाहते हैं इन कलाकारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर।उक्त कलाकार ने कहा कि  अगर उनकी कृति को प्रदर्शित नही होने दिया जाता तो उन्हें ऐसे किसी  देश में जाकर बसना होगा जहाँ  धर्म-निरपेक्षता हो,धर्म-निरपेक्षता का दावा करने वाले हम भारतीयों  के लिए ये निहायती शर्म की बात है।लेकिन हमारे देश के बुद्धिजीवियों का इस देश से पलायन  करना कोई नया नही है,इसीलिए उक्त कलाकार की इस बात को किसी ने कोई तवज्जो  नही दी।हमने सोचा चाहे जहाँ भी चले जाइये लेकिन कहलायेंगे तो भारतीय मूल के और भविष्य में आपको कोई भी सफलता मिलती है तो हम भारतीय मूल के उक्त कलाकार कहकर ही संतोष कर लेंगे।भले ही आप 4बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हों  और पद्मश्री भी ग्रहण कर चुके हों!लेकिन हमारे देश में ऐसी प्रतिभा का सम्मान करने वाला कोई नही।उक्त कलाकार ने अपने आपको राजनीति का भी शिकार बताया।लेकिन कुछ राजनीतिज्ञ निर्माता-निर्देशक पर आरोप लगा रहे हैं कि इस कृति में एक समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाते हुए उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया गया है।वैसे  राजनीति  की कडाही में विवादों की दाल को ऐसे ही आरोपों के तडके लगाकर स्वादिष्ट बनाने का प्रयास किया जाता है अन्यथा ये दाल फीकी रह जाएगी।वैसे कोई व्यक्ति किसी समुदाय विशेष के प्रति अपने व्यक्तिगत वैमनस्य को प्रदर्शित करने के लिए  करोड़ों रूपए आसानी से दांव पर लगा देगा,ये बात गले नही उतरती!
बहरहाल, इस कृति में अब पर्याप्त काट-छांट करने के बाद दक्षिण भारत में रिलीज़ किया जा रहा है या यूँ कहें की postmortum करने के बाद मृत शरीर को जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है।और इस मृतप्राय शरीर की संजीवनी बूटी हमारे पास है इसीलिए मेरा सभी सिनेमा-प्रेमियों से अनुरोध है कि  वे अधिक-से-अधिक संख्या में इस फिल्म को सिनेमा-हॉल में देखने जाएँ और इस फिल्म को सफल बनायें।
जय हिन्द।   

Tuesday, 22 January 2013

Jaago Re....


जागो रे ....
मैं यहाँ  यह बात स्पष्ट करना चाहती हूँ कि मैं किसी   भी धर्म विशेष की विरोधी  या हितैषी नही   हूँ लेकिन एक   हिन्दू होने के नाते मैं अपने धर्म का अपमान बर्दाश्त नही कर  सकती क्योंकि  मुझे अपने महान धर्म  पर गर्व  है।बल्कि हर व्यक्ति को अपने धर्म पर गर्व होना चाहिए चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान,सिख हो या ईसाई ,बौद्ध हो या जैन।क्योंकि विश्व का हर धर्म सद -आचरण की ही शिक्षा देता है और हर धर्म की अपनी खासियतें हैं ।अगर हर व्यक्ति अपने -अपने धर्म के अनुसार आचरण करना शुरू कर दे  तो दुनिया से आतंकवाद जैसी सारी  बुराइयाँ ही ख़त्म हो जाएंगी।इसलिए आतंकवाद को किसी भी धर्म से जोड़कर देखना पूर्णतया गलत है।क्योंकि दुनिया का कोई भी धर्म निर्दोष लोगों की बर्बरता -पूर्वक हत्या  करने की शिक्षा नही देता,इसीलिए कोई भी आतंकवादी हिन्दू या मुसलमान नही होता,उसका सिर्फ   एक ही धर्म(अधर्म) होता है और वो है आतंकवाद।कोई भी व्यक्ति एक बार आतंकवाद का धर्म अपनाने के बाद न ही खुद इंसान  रहता है और न ही दूसरों को इंसान समझता है,वो एक जानवर से भी बदतर ज़िन्दगी जीता है।न ही जीते हुए उसे चैन मिलता है और न ही मरने के बाद सुकून नसीब होता है।इसीलिए हमारे देश के कर्णधारों को ये बात समझनी चाहिए कि किसी भी आतंकवादी को किसी धर्म विशेष से जोडकर उस धर्म की पवित्रता और लोगो के अपने धर्म के प्रति विश्वास को नुकसान  न पहुंचाएं।

जय हिन्द।

Jaago Re....


जागो रे ....
हालाँकि मैं जानती हूँ कि मेरे इन विचारों को इस  चेहरे की किताब पर चस्पा करते ही हमारे सभ्य और आधुनिक भारतीय समाज के कई लोग मेरे विरोध में तर्क देना शुरू कर  देंगे,क्योंकि ये तो हमारी पुरानी  आदत है कि  हम परायों के साथ मिलकर अपनों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं।हमें हमेशा अपनी ही चीज़ों में कमियां नज़र आती हैं चाहे वो हमारा धर्म हो,हमारे देश की संस्कृति या हमारे देश का रहन-सहन!हम हमेशा से ही विदेशो और विदेशी शिक्षा-संस्कृति से अनुगृहीत रहे हैं।इसीलिए आज देश की आधी से अधिक जनसँख्या अपने ही देश में अपने धर्म का अपमान होने पर भी मौन है!आज कुछ मुट्ठी भर राजनेताओं ने हमारे धर्म की अस्मिता को कलंकित करने के लिए एक नया शब्द ईजाद किया है "भगवा आतंकवाद "जिसका कोई अस्तित्व ही नही है।भगवा रंग जो विभिन्न परिप्रेक्ष्य में विविध रूपों में हमारे सामने आता है, कभी वो शहीद भगत सिंह के चोले  का बसंती रंग है,कभी वीर हनुमान के ब्रम्हचर्य का रंग है तो कभी हमारे राष्ट्र -ध्वज में केसरिया रंग के रूप में आकर शक्ति का प्रतीक बन जाता है।क्या ऐसा निर्मल भगवा रंग आतंकवाद का प्रतीक हो सकता है?लेकिन आज हम आधुनिक भारतियों के आगे इन बातों की कोई महत्ता नही।क्योंकि आज हमारे लिए राधा देवी नही रही बल्कि देवी राधा अब सेक्सी राधा बन चुकी हैं।ये हमारे लिए निहायती शर्म की बात है कि अब हम अपने पूजनीय देवी-देवताओं के लिए ऐसे अभद्र  शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं,शायद आगे हमे हॉट और आइटम जैसे  शब्दों का प्रयोग भी देखने  को मिल सकता है क्योंकि हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षित  हैं इसीलिए हमे हमारे धर्म के रीति -रिवाज पाखंड और आडम्बर लगते हैं।कुछ दिनों पहले एक फिल्म का पूरी दुनिया में ज़बरदस्त विरोध किया गया क्योंकि उससे एक धर्म विशेष के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी,लेकिन हम हिन्दुओं को न ही इस गीत में कुछ अपमानजनक लगा न ही उस फिल्म में जिसमे हमारे शंकराचार्यों को पाखंडी करार दे दिया गया और हिन्दू धर्म से जुडी समस्त धार्मिक क्रियाओं को आडम्बर नाम दे दिया गया।शायद इसी का प्रतिफल आज हमारे सामने है कि हम जैसे यज्ञ -अभिषेक -अनुष्ठान करने वाले हिन्दुओं को आतंकवादी की संज्ञा दी जा रही है।यहाँ गीता के उक्त श्लोक का उल्लेख करना अनिवार्य हो गया है-
"यदा -यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः ,
अभ्युथानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाभ्यहम।"  

जय हिन्द।

Jaago Re....


जागो रे ....
हालाँकि मैं जानती हूँ कि मेरे इन विचारों को इस  चेहरे की किताब पर चस्पा करते ही हमारे सभ्य और आधुनिक भारतीय समाज के कई लोग मेरे विरोध में तर्क देना शुरू कर  देंगे,क्योंकि ये तो हमारी पुरानी  आदत है कि  हम परायों के साथ मिलकर अपनों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं।हमें हमेशा अपनी ही चीज़ों में कमियां नज़र आती हैं चाहे वो हमारा धर्म हो,हमारे देश की संस्कृति या हमारे देश का रहन-सहन!हम हमेशा से ही विदेशो और विदेशी शिक्षा-संस्कृति से अनुगृहीत रहे हैं।इसीलिए आज देश की आधी से अधिक जनसँख्या अपने ही देश में अपने धर्म का अपमान होने पर भी मौन है!आज कुछ मुट्ठी भर राजनेताओं ने हमारे धर्म की अस्मिता को कलंकित करने के लिए एक नया शब्द ईजाद किया है "भगवा आतंकवाद "जिसका कोई अस्तित्व ही नही है।भगवा रंग जो विभिन्न परिप्रेक्ष्य में विविध रूपों में हमारे सामने आता है, कभी वो शहीद भगत सिंह के चोले  का बसंती रंग है,कभी वीर हनुमान के ब्रम्हचर्य का रंग है तो कभी हमारे राष्ट्र -ध्वज में केसरिया रंग के रूप में आकर शक्ति का प्रतीक बन जाता है।क्या ऐसा निर्मल भगवा रंग आतंकवाद का प्रतीक हो सकता है?लेकिन आज हम आधुनिक भारतियों के आगे इन बातों की कोई महत्ता नही।क्योंकि आज हमारे लिए राधा देवी नही रही बल्कि देवी राधा अब सेक्सी राधा बन चुकी हैं।ये हमारे लिए निहायती शर्म की बात है कि अब हम अपने पूजनीय देवी-देवताओं के लिए ऐसे अभद्र  शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं,शायद आगे हमे हॉट और आइटम जैसे  शब्दों का प्रयोग भी देखने  को मिल सकता है क्योंकि हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षित  हैं इसीलिए हमे हमारे धर्म के रीति -रिवाज पाखंड और आडम्बर लगते हैं।कुछ दिनों पहले एक फिल्म का पूरी दुनिया में ज़बरदस्त विरोध किया गया क्योंकि उससे एक धर्म विशेष के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी,लेकिन हम हिन्दुओं को न ही इस गीत में कुछ अपमानजनक लगा न ही उस फिल्म में जिसमे हमारे शंकराचार्यों को पाखंडी करार दे दिया गया और हिन्दू धर्म से जुडी समस्त धार्मिक क्रियाओं को आडम्बर नाम दे दिया गया।शायद इसी का प्रतिफल आज हमारे सामने है कि हम जैसे यज्ञ -अभिषेक -अनुष्ठान करने वाले हिन्दुओं को आतंकवादी की संज्ञा दी जा रही है।यहाँ गीता के उक्त श्लोक का उल्लेख करना अनिवार्य हो गया है-
"यदा -यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः ,
अभ्युथानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाभ्यहम।"  

जय हिन्द।

जागो रे ....
हालाँकि मैं जानती हूँ कि मेरे इन विचारों को इस  चेहरे की किताब पर चस्पा करते ही हमारे सभ्य और आधुनिक भारतीय समाज के कई लोग मेरे विरोध में तर्क देना शुरू कर  देंगे,क्योंकि ये तो हमारी पुरानी  आदत है कि  हम परायों के साथ मिलकर अपनों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं।हमें हमेशा अपनी ही चीज़ों में कमियां नज़र आती हैं चाहे वो हमारा धर्म हो,हमारे देश की संस्कृति या हमारे देश का रहन-सहन!हम हमेशा से ही विदेशो और विदेशी शिक्षा-संस्कृति से अनुगृहीत रहे हैं।इसीलिए आज देश की आधी से अधिक जनसँख्या अपने ही देश में अपने धर्म का अपमान होने पर भी मौन है!आज कुछ मुट्ठी भर राजनेताओं ने हमारे धर्म की अस्मिता को कलंकित करने के लिए एक नया शब्द ईजाद किया है "भगवा आतंकवाद "जिसका कोई अस्तित्व ही नही है।भगवा रंग जो विभिन्न परिप्रेक्ष्य में विविध रूपों में हमारे सामने आता है, कभी वो शहीद भगत सिंह के चोले  का बसंती रंग है,कभी वीर हनुमान के ब्रम्हचर्य का रंग है तो कभी हमारे राष्ट्र -ध्वज में केसरिया रंग के रूप में आकर शक्ति का प्रतीक बन जाता है।क्या ऐसा निर्मल भगवा रंग आतंकवाद का प्रतीक हो सकता है?लेकिन आज हम आधुनिक भारतियों के आगे इन बातों की कोई महत्ता नही।क्योंकि आज हमारे लिए राधा देवी नही रही बल्कि देवी राधा अब सेक्सी राधा बन चुकी हैं।ये हमारे लिए निहायती शर्म की बात है कि अब हम अपने पूजनीय देवी-देवताओं के लिए ऐसे अभद्र  शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं,शायद आगे हमे हॉट और आइटम जैसे  शब्दों का प्रयोग भी देखने  को मिल सकता है क्योंकि हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षित  हैं इसीलिए हमे हमारे धर्म के रीति -रिवाज पाखंड और आडम्बर लगते हैं।कुछ दिनों पहले एक फिल्म का पूरी दुनिया में ज़बरदस्त विरोध किया गया क्योंकि उससे एक धर्म विशेष के लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी,लेकिन हम हिन्दुओं को न ही इस गीत में कुछ अपमानजनक लगा न ही उस फिल्म में जिसमे हमारे शंकराचार्यों को पाखंडी करार दे दिया गया और हिन्दू धर्म से जुडी समस्त धार्मिक क्रियाओं को आडम्बर नाम दे दिया गया।शायद इसी का प्रतिफल आज हमारे सामने है कि हम जैसे यज्ञ -अभिषेक -अनुष्ठान करने वाले हिन्दुओं को आतंकवादी की संज्ञा दी जा रही है।यहाँ गीता के उक्त श्लोक का उल्लेख करना अनिवार्य हो गया है-
"यदा -यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः ,
अभ्युथानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाभ्यहम।"  

जय हिन्द।

Jaago Re....


जागो रे ....
दुनिया  का प्राचीनतम धर्म-हिन्दू धर्म,मूलतः इसी धर्म से भारतवर्ष की सम्पूर्ण विश्व में पहचान रही  है लेकिन आज हमारे अपने देश के ही कुछ आदरणीय लोग महज़ एक - दो घटनाओं के दम  पर  हम हिन्दुओं को आतंकवादी सिद्ध करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं।जिस धर्म में ऋषि वशिष्ठ,वाल्मीकि,विश्वामित्र,अगस्त्य,कपिल मुनि और ऐसे हजारों विद्वान महापुरुष पैदा हुए हैं क्या उस धर्म के लोग आतंकवादी  हो सकते हैं?जिस धर्म में स्त्री को देवी मानकर उसकी पूजा की जाती है,आदर्श पुरुष को राम सा दर्जा  दिया जाता है,बच्चों को बाल  -गोपाल की संज्ञा दी जाती है,इतना ही नही मृत पूर्वजों को  भी पितृ मानकर श्राद्ध पक्ष में उनका तर्पण कर ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है!क्या ऐसे संस्कारवान लोग आतंकवादी हो सकते हैं?जिस धर्म में श्रीमद भगवत गीता और रामायण जैसे  महा -ग्रंथों की रचना हुई है क्या इन ग्रन्थों के दोहे -चौपाइयों को दिन- रात आत्मसात करने वाले लोग आतंकवाद की शिक्षा ले सकते हैं?   लेकिन आज हमारे कुछ राजनेता केवल विपक्षी दल को नीचा दिखाने  के लिए देश की आधी से ज्यादा आबादी की धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहे हैं।लेकिन मैं जानती हूँ कि आज के परिप्रेक्ष्य में  हिन्दू धर्म की आवाज़ उठाने का साहस  कोई नही कर सकता क्योंकि अगर कोई ऐसा करता है तो उसे साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा समझकर जेल में डाल दिया जाएगा।उसे कट्टर हिन्दू समझकर दूसरे  धर्मों के लिए सबसे बड़ा खतरा मान लिया जाएगा और उसे  खुलेआम आलोचना का शिकार होना पड़ेगा।हमारे सेनापतिजी के इस बयान  का ही असर है कि वर्षों से आतंकवाद को संरक्षण  देता आ रहा हमारा दुश्मन मुल्क़ अब हम पर ही आतंकवाद के इलज़ाम लगा रहा है,एक आतंकवादी भारतीय आतंकवाद के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र परिषद्(United Nations Organization ) में ले जाने की हमें खुलेआम चुनौती दे रहा है।यहाँ "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे"वाली कहावत चरितार्थ हो रही है!हमारा नेतृत्व अपने होनहार जवान का सर भले न वापिस ला  पाया हो,लेकिन उन्होंने स्वयं अपने देश के लोगों को आतंकवादी कहकर सौ करोड़ से ज़्यादा भारतीयों को पूरी दुनिया के आगे शर्मिंदा ज़रूर  कर दिया,हमारे सारे  वीर शहीदों की शहादत पर पानी फेर दिया।
जय हिन्द।
                                                                                                                    
                                                                                                                       सोनल तिवारी 
                                                                        23/01/13
                                                                                                       

Friday, 11 January 2013

Jaago Re....

जागो रे ....
आज एक बार फिर दुश्मन ने हमे अपने घर में घुसकर ललकारा है लेकिन इसके बावजूद हमारी सरकार कुछ नही कर पा रही। एक अरब से ज्यादा की आबादी रखने वाला देश अपने दो जवानों की मौत का बदला नही ले सकता !क्योकि आज हमारी सेना मजबूर है हमारी अपनी सरकार के हाथो,एक बार फिर बयानबाजियो का दौर शुरू हो चुका है जैसा कि आजकल हर अहम मसले पर हमारे राजनेता शुरू कर देते हैं।आज वही लोग हमारे वीर जवान का सर काटकर ले गए हैं जिनके मुल्क से हाल ही में मंत्रीजी हमारे देश का दौरा करके हमारे अतिथि -सत्कार से अभिभूत होकर अपने देश वापिस गए,शायद उनके देश में आदरसत्कार के बदले ऐसी हैवानियत दिखाने का रिवाज है।यहाँ तक कि हर प्रेस कांफ्रेंस में हमारे मंत्रीजी उनकी हर बात में सिर हिलाते और बाद में उनकी बातों पर सफाई देते ही नज़र आए।दरअसल आज हम हमारे लचर नेतृत्व की वजह से कमज़ोर पड़ गए हैं।आज हमारे देश में एक ऐसा नेतृत्व है जो भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अनशन कर रहे एक जनसेवक की सुध लेना भी जरूरी नही समझता !जो एक लडकी के साथ हुए अत्याचार के ख़िलाफ़ सडको पर निकले युवाओं के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को दबाने के लिए पुलिस की लाठियों का सहारा लेता है!जो भ्रष्टाचार में फंसे अपने एक मंत्री को और ऊंची कुर्सी देता है!जो अपने भ्रष्टाचार को छुपाने और अपने आप को सही ठहराने के लिए भारत के नियंत्रक -महालेखापरीक्षक The Comptroller and Auditor General (CAG) को गलत साबित करने में भी कोई कसर नही छोड़ता!हालाँकि हमारे राजा जांबाज़ महाराज रणजीत सिंह की कौम से सम्बन्ध रखते हैं लेकिन ये घोर आश्चर्य की बात है कि वे हमेशा मौन  ही रहते   हैं!भले ही वे एक सज्जन,बुद्धिमान और चरित्रवान व्यक्ति हैं लेकिन जब एक विशाल देश की बागडोर आपके काबिल हाथों में सौंपी गई है तो आपका ये उत्तरदायित्व है कि आप अपनी चुप्पी तोड़ें और कुछ कड़े कदम भी उठायें। अगर हमारे पास आज एक मज़बूत नेतृत्व होता  तब शायद इस पाशविक कृत्य के बाद  पडोसी देश के प्रतिनिधि की हमारे ही देश में मीडिया के सामने खुलेआम मुस्कुराने की हिम्मत न होती ....

जय हिन्द।