Tuesday, 28 August 2018

Shantam

"एक शाम रिश्तों के नाम" बीते शनिवार रविन्द्र नाट्यगृह में समागम हुआ धार्मिक,आध्यात्मिक और पारिवारिक त्रिवेणी का,मौक़ा था पंडित विजयशंकर मेहता जी के आख्यान का। Panditji basically belongs to Ujjain who hs been teaching life management tips by Hanuman chalisa for last 10yrs in various cities,bt i've got d golden opportunity to listen hm ds Saturday only and it was a mesmerizing experience for me. Along with ds, he has also created a new mechanism to do Hanuman chalisa and dt is "Hanuman chalisa with breathing" means inhale/exhale with every line of Hanuman chalisa and luckily dt day morning only i'd experienced ds too in my Yoga class and dt experience ws smthing i can't explain here. Panditji also write a regular article named "Jeene ki raah" in Dainik bhaskar and nw hs new venture called "Shantam" is goint to start next year on 19th April on d spcl occasion of Hanuman jayanti. In Shantam, a proper training session of 20min will b provided by Panditji hmself to d devotees who want to learn hw to do Hanuman chalisa with breath. According to Panditji,v mst do ds jst for 5min in each prahar. Since v all know dt dere r 4Prahars in a day so 5*4=20min only v hv2 spend for this mental relaxation activity in a whole day and trust me,its like a Sanjeevani for ur inner peace.

Thursday, 23 August 2018

Youth icon Atalji

It was the year1996 wn i ws only 5yrs old and everybody ws watching live telecast of no confidence motion against d government wch ws lost by d ruling party BJP and PM Atalji ws giving hs emotional and historic speech. I still remember dt my Mom,Nana-Nani,Mama,both of my mausi..all of my family members were feeling so disappointed. I wasn't dt much disappointed bcz i ws unable to understand that wt ws exactly going on? Bt i ws feeling sad for Vajpayee ji bcz dt time he was the only politician i knew and 1thing I knew abt hm dt he ws a good human being and honest leader. D conclusion is dt,like me dere r so many youth who start favouring BJP Jst bcz of Atal ji and BJP Didn't let us down till the date.

विपक्ष के नेता

इस देश ने कई ऐसे बड़े नेताओं को देखा है जिन्हें राजनीति विरासत में मिली और जो सालों तक सत्ता में रहकर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे जिसकी परिणति आज हमें देश के हर गली-चौराहों पर इनकी बड़ी-बड़ी मूर्तियों या सड़कों के नाम के बोर्ड पर दिखाई देती है। साथ ही देश की लगभग हर बड़ी योजना इन नेताओं ने ख़ुद के नाम से ही शुरू की। ज़ाहिर है कि इन नेताओं ने हर क़दम पर ख़ुद के नाम को प्रधानमंत्री के पद से बड़ा बनाने की कोशिशें कीं। इन सबसे जुदा दो महान राजनेता अस्तित्व में आये,पहले थे लाल बहादुर शास्त्री जी,जिनकी ईमानदारी और सादगी के किस्से पूरी दुनिया में मशहूर हैं और दूसरे थे हम सबके प्यारे अटल जी। हालांकि इन दोनों को राजनेता कहना शायद इनका अपमान होगा क्योंकि इनका व्यक्तित्व राजनीति से कहीं ऊपर था। शास्त्री जी को तो हमारी पीढ़ी ने देखा नहीं लेकिन वाजपेयीजी आज की पीढ़ी के मेरे जैसे कई नौजवानों के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। हालांकि वाजपेयीजी बाकी सभी नामचीन नेताओं की तुलना में सबसे कम यानी सिर्फ़ 6साल के लिए सत्ता में रहे,बाकी के पूरे 41साल वो विपक्ष में रहे यानी अटलजी अपने पूरे राजनीतिक करियर में सत्ता में व्याप्त भ्रष्टाचार और राष्ट्र-विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ एक शक्तिशाली सत्ताधारी परिवार से अकेले लड़ते रहे और आखिरकार किसी खानदानी विरासत के ज़रिए नहीं बल्कि अपनी कड़ी मेहनत के दम पर सत्ता के शिखर तक पहुंचे। अपने राजनीतिक जीवन में पूरे समय विपक्ष में रहने वाले किसी नेता की इतनी अधिक लोकप्रियता हमने पहले कभी नहीं देखी और न ही शायद कभी देख पायें क्योंकि अटलजी जैसे लोग विरले ही पैदा होते हैं।

भीष्म पितामह

अटलजी पिछले 9साल से स्ट्रोक की वजह से मूक हो गए थे और पूरी तरह सार्वजनिक जीवन से भी दूर थे,उसके बावजूद दिल्ली में उनकी अंतिम यात्रा और फ़िर हरिद्वार में उनकी अस्थि-विसर्जन यात्रा में लोगों का सैलाब देखने को मिला और भारत के कोने-कोने से लोग उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे जिसमें बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी थे और बंगाल,हैदराबाद,तेलांगना जैसी जगहों से भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे जिन स्थानों पर अटलजी के समय बीजेपी का नामोनिशान नहीं था। यहां तक कि भारत ही नहीं बल्कि हमारे लगभग सभी पड़ोसी देशों से राजनयिक इतने कम समय में उन्हें श्रद्धांजलि देने दिल्ली पहुंच गए, भूटान और मलेशिया जैसे देशों में तो राष्ट्रीय ध्वज आधे दिन के लिए झुका दिया गया। दिल्ली में स्थित ब्रिटिश दूतावास में भी यूनियन जैक को झुका दिया गया। ये सब इस बात का प्रमाण है कि अटलजी 20वीं सदी के सबसे लोकप्रिय भारतीय नेता थे।

अटलजी नहीं रहे

राजनीति के पितृ पुरुष,प्रखर वक्ता,कवि हृदय और विरोधियों के भी चहेते पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयीजी नहीं रहे। अटल जी भारत छोड़ो आंदोलन और आपातकाल के दौरान जेल में भी रहे, दोनों बार कालखंड भले बदल गया हो लेकिन परिस्थितियां लगभग एक जैसी थीं। चाहे अंग्रेज़ सरकार हो या इंदिरा सरकार,अपने विरोधियों को कुचलने में माहिर थे। लेकिन फ़िर भी अटलजी की महान शख़्सियत ही थी कि इंदिरा गांधी को उन्होंने दुर्गा का रूप कहा। अटलजी पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सांसद रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरूजी के एक आलीशान होटल बनाने के प्रस्ताव का ये कहते हुए संसद में पुरज़ोर विरोध किया था कि नए-नए आज़ाद हुए देश में होटल से ज़्यादा हॉस्पिटल की ज़रूरत है।अटलजी देश के पहले ऐसे ग़ैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी बने जिन्होंने पूरे 5साल तक सरकार चलाई वो भी 1-2नहीं बल्कि पूरे 22दलों के सहयोग के साथ जिनमें धुर वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी थे।अटलजी पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने बरसों से चली आ रही कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए दिल से प्रयास शुरू किए और दुश्मन देश तक शांति-सद्भाव की बस लेकर गए लेकिन फ़िर भी ठीक उसके बाद जब दुश्मन ने पीठ पर छुरा घोंपते हुए कारगिल युद्ध छेड़ा तो कवि हृदय अटलजी ने दुश्मन को धूल चटाने में भी कोई क़सर नहीं छोड़ी।अटलजी पहले ऐसे विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में जाकर हिंदी में भाषण दिया और उसके बाद ही संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने की परंपरा शुरू हुई और उसी का नतीजा है कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी सभी विज्ञप्तियों को हिंदी में भी जारी करने की घोषणा की है। सभी प्रमुख नदियों को जोड़ने की क़वायद हो या चारों दिशाओं में स्थित देश के चार प्रमुख महानगरों को जोड़ने के लिए शुरू की गई स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना या दूर-दराज़ के गांवों को सड़क से जोड़ने के लिए बनाई गई प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना,अटल जी ने हमेशा देश को जोड़ने के काम किये। उन्हें हमेशा राजनीति में एक अपवाद की तरह याद किया जाएगा।

Sanju

"संजू" एक ऐसे इंसान की कहानी बयां करती है जो परदे पर नायक लेकिन असल ज़िंदगी में खलनायक रहा है। इस फ़िल्म में रणबीर कपूर की अदाकारी और राजू हिरानी का निर्देशन लाजवाब है लेकिन इस सबके अलावा इस फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि जिस व्यक्ति को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपराधी क़रार देकर जेल भेजा, उस व्यक्ति को इस फ़िल्म में बड़ी ही सफ़ाई से मासूम बनाकर पेश किया गया है। पिछले दिनों एक राजनीतिक दल ने फ़िल्म इंदु सरकार का प्रदर्शन रोकने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया क्योंकि उस फ़िल्म का बैकड्रॉप आपातकाल पर आधारित था और आपातकाल को हमारे देश के इतिहास में एक काला अध्याय माना जाता है। अभी हाल ही में भी इसी राजनीतिक पार्टी ने वेब सीरीज़ सेक्रेड गेम्स पर भी आपत्ति जतायी है क्योंकि इनका कहना है कि इसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय के तथ्यों को ग़लत तरीके से पेश किया गया है। लेकिन इस पार्टी को संजू फ़िल्म पर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि संजय दत्त के पिता जो इस पार्टी के प्रमुख नेता थे,उन्हें इस फ़िल्म में मसीहा बनाकर पेश किया गया है। इस तरह ये फ़िल्म हर वर्ग के लोगों को पसंद आ रही है। यहां तक कि मुम्बई को अपनी बपौती समझने वाली शिवसेना ने भी मुम्बई हमलों के लिए विस्फ़ोटक सामग्री अपने घर में छुपाने वाले एक अपराधी की इस बायोपिक पर चुप्पी साध रखी है। इस सबके बीच मुम्बई हमलों में मारे गए लोगों के परिवार वाले इस फ़िल्म के बारे में क्या सोचते होंगे,ये जानने की किसी को फ़ुरसत नहीं है।

Friday, 11 May 2018

संस्कृति के रखवाले

पिछले दिनों शहर में हर साल की तरह इस साल भी लालबाग़ परिसर में मालवा उत्सव का आयोजन किया गया जो छोटे शहरों के मेलों की याद दिलाता है जिसमें इतवार का दिन पूरा परिवार मेले की सैर पर जाता था और सबसे ज़्यादा ख़ुश होते थे बच्चे क्योंकि उन्हें मालूम होता था कि आज उन्हें मनपसंद कपड़े और खिलौने दिलाये जाएंगे,रंग-बिरंगी कुल्फ़ी खाने को मिलेगी और इन सबसे बढ़कर झूलों में बैठकर आसमान छूने का रोमांच मिलेगा। लेकिन मालवा उत्सव की ख़ासियत है इसमें होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम,जिसमें भारत के विभिन्न प्रदेशों से आये कलाकार स्थानीय लोक-संगीत,लोक-नृत्य और शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुति देते हैं। कहीं महाराष्ट्र का मनभावन लावणी है जिसे करने के लिए शरीर में बिजली सी स्फ़ूर्ति होनी चाहिए,कहीं राजस्थान का कालबेलिया नृत्य है जो सपेरों के घर की महिलाओं द्वारा किया जाता है, कहीं मालवा का मटकी नृत्य है जो घर की महिलाओं द्वारा मांगलिक उत्सवों पर किया जाता है तो कहीं तेलंगाना का गुस्साड़ी नृत्य है जो वहां के आदिवासी समुदाय के युवकों द्वारा किया जाता है। ये सब देखकर मन गर्व से भर जाता है कि हम कितनी अमूल्य सांस्कृतिक विरासत के धनी हैं लेकिन इन लोक-कलाकारों के बारे में सोचकर अक्सर आंखें भर आती हैं कि मुफ़लिसी में दिन गुज़ारकर भी ये लोग कितनी शिद्दत से अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं, इनके दिल में भले भविष्य की चिंता हो लेकिन चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान होती है। मेरी नज़र में संस्कृति की रक्षा के नाम पर गुंडागर्दी वाले समुदाय नहीं बल्कि दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले ये आदिवासी कलाकार सही मायनों में हमारे देश की संस्कृति के रखवाले हैं और सरकार को इनकी हर संभव मदद करनी चाहिए।

Tuesday, 24 April 2018

महाभियोग

बरसों पहले वर्ष 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को लोकसभा चुनावों में सरकारी संसाधनों जैसे कि पुलिस का इस्तेमाल करके और मतदाताओं को रिश्वत देकर गलत तरीके से जीतने का दोषी पाया और उनके निर्वाचन को निरस्त कर दिया,साथ ही अगले 6सालों के लिए श्रीमती गांधी के चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी। बस फ़िर क्या था,गांधीजी को हमेशा से अपना आदर्श बताने वाले राजनीतिक दल की सत्तारूढ़ नेता के अंदर का तानाशाह जाग गया और सालों से जिस महिला और पार्टी ने शांति और अहिंसा का छद्म आवरण ओढ़ रखा था,अपने अहम पर न्यायपालिका की चोट लगते ही उन्होंने ख़ुद ये आवरण तार-तार कर दिया और एक लोकतांत्रिक देश में एक काला अध्याय लिखा गया जिसमें एक तानाशाह प्रधानमंत्री ने अपने विरोधियों को कुचलने के लिए उन्हें जेलों में डलवा दिया,अखबारों को बंद कर दिया गया और महिला तानाशाह के सनकी बेटे ने हिन्दू युवाओं की जबरन नसबंदी तक करायी। इस दौरान सत्ताधारी दल ने सत्ता के नशे में चूर होकर एक नारा दिया था "इंदिरा इंडिया है और इंडिया इंदिरा है"। ज़ाहिर है इस तरह की सोच रखने वाली छद्म गांधीवादी पार्टी जो आज़ादी के बाद पिछले 28सालों से बेरोकटोक शासन चला रही थी,उसकी एक क़द्दावर महिला प्रधानमंत्री को असली गांधीवादी विचारों वाले जयप्रकाश नारायण जैसे विरोधियों ने जब ये एहसास दिलाना शुरू किया कि एक लोकतांत्रिक देश की सत्ता किसी भी एक पार्टी, परिवार या व्यक्ति की बपौती नहीं है और न्यायपालिका ने भी जब सत्ता के इस बेलगाम घोड़े पर लगाम कसनी शुरू की,तो आनन-फानन में अपना अस्तित्व बचाये रखने और विरोधियों को दबाने के लिए आपातकाल लागू कर दिया गया। कहने का सार ये है कि दशकों पहले भी कांग्रेस ने आपातकाल लगाकर लोकतंत्र और न्यायपालिका का मख़ौल उड़ाया था,तब भी कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट था और आज मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग लगाने का प्रस्ताव लाना भी कांग्रेस की इसी पुरानी परंपरा का हिस्सा है और आज भी कांग्रेस संकट में है।

जातिवाद

सदियों पहले पाखंडी और अहंकारी ब्राह्मणों,ठाकुरों और साहूकारों ने ग़रीब दलित वर्ग का ख़ूब शोषण किया और उन बेचारे दलितों की हाय इन सवर्ण जातियों को ऐसी लगी जिसका खामियाज़ा इनकी पीढियां आज 70साल बाद भी भुगत रही हैं और आगे भी भुगतेंगी। फ़िर दलितों के मसीहा बनकर जन्मे डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर, जिन्होंने कई सारी कठिनाइयों का सामना करते हुए अपनी क़ाबिलियत के दम पर उच्च शिक्षा हासिल की और संविधान निर्माता बने। ज़ाहिर तौर पर उन्होंने भी सवर्णों से बदला लेने के लिए आरक्षण का सुझाव नहीं दिया होगा,बल्कि उनका उद्देश्य था अपने लोगों को आगे बढ़ाना और समाज में सम्मानजनक स्थान दिलवाना। लेकिन कुछ चीज़ें इतनी संवेदनशील होती हैं कि ग़लत व्यक्ति के हाथों में पड़ते ही उन्हें वरदान से अभिशाप बनने में देर नहीं लगती। जैसे असुर राहु धोखे से अमृत-पान करके अमर हो गया और आज तक लोगों के जीवन में ग्रहण लगाता आ रहा है। अश्वत्थामा ने पांडवों का वंश मिटाने के लिए उत्तरा के गर्भ पर निशाना साधते हुए ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था,वहीं अमेरिका के सनकी राष्ट्राध्यक्ष ने दुनिया पर अपना दबदबा बनाने के लिए परमाणु बम की शक्ति का पता लगते ही उसे अपने प्रतिद्वंदी देश पर गिराकर लाशों के ढेर पर बैठकर युद्ध में जीत हासिल कर ली। आरक्षण भी एक ऐसा ही ब्रह्मास्त्र है जो जैसे ही राजनीति के असुरों के हाथ लगा, उन्होंने उसे दलित वोट बैंक के लिए सवर्ण समुदाय की तरफ़ छोड़ दिया है जो अब सवर्णों को सामाजिक और आर्थिक रूप से पूरी तरह नष्ट करके ही दम लेगा। SC/ST एक्ट भी ऐसे ही एक परमाणु बम की तरह है जिसका डर दिखाकर दलित समुदाय के लोग सवर्णों को दबाकर रखते हैं और सदियों पहले अपने पूर्वजों के साथ हुए भेदभाव का बदला सवर्णों की वर्तमान पीढ़ी से लेते हैं जो उस समय अस्तित्व में भी नहीं थी। ये वही लोग हैं जो पिछले दिनों भीमा-कोरेगांव में अंग्रेज़ों की एक भारतीय राजा पर हुई जीत का जश्न मना रहे थे,इस तरह इन्होंने अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचारों का बदला ख़ुद अपने ही देश से भी ले लिया, वो भी उस देश से जिसका संविधान इन्हें आरक्षण और SC/ST एक्ट जैसी सुविधाएं देता है। ये वही लोग हैं जिन्हें भीम के नाम में राम लिखना गंवारा नहीं क्योंकि शायद इन्होंने रामायण कभी पढ़ी नहीं, पढ़ते तो इन्हें शबरी के बारे में पता चलता जिसके जूठे बेर भगवान राम ने खाये थे। जिन अम्बेडकर को ये भगवान की तरह पूजते हैं उन्हें अपने जीवन में कभी हिंसा करने की ज़रूरत नहीं पड़ी। शायद यही वजह है कि उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था और आज भी उन्हीं का अनुसरण करते हुए दलित समुदाय के कई लोग धर्मांतरण करके बौद्ध धर्म अपना चुके हैं। लेकिन घोर आश्चर्य की बात है कि आज़ादी के पहले जातिगत भेदभाव वाले कट्टर हिन्दू समाज में डॉ. अंबेडकर ने हिंसा और हथियारों के बल पर नहीं बल्कि अपनी प्रतिभा के बल पर अपनी सम्मानजनक पहचान बनाई और आज उन्हीं के अनुयायी जिन्हें आज़ाद हिंदुस्तान में भारत के संविधान द्वारा हर संभव सुविधाएं दी जा रही हैं,वो अपनी क़ाबिलियत के दम पर नहीं बल्कि लाठियों और डंडों के दम पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।

भारत बंद

कल भारत को बंद कराने के लिए हिन्दू हमेशा की तरह फ़िर से सवर्ण और दलितों में बंटकर आपस में मरने-कटने लगे। जी हाँ, भारत कोई छोटी-मोटी दुकान का नाम नहीं है,पूरे 125करोड की आबादी वाला एक विकासशील देश है जिसे बंद कराना और चालू कराना अब मुट्ठी भर गुंडों के हाथों का खेल बनकर रह गया है। आजकल जिस भी वर्ग या समुदाय को सरकार से या क़ानून से जो भी दिक्कत होती है,बस उस वर्ग के लोग लाखों की तादाद में निकल पड़ते हैं इस भारत को बंद करवाने। बेचारे पुलिस और प्रशासन भी इनके आगे बेबस नज़र आते हैं क्योंकि कहीं उन पर राजनीतिक दबाव रहता है तो कहीं ख़ुद ही इन्हें अपनी जान बचाकर भागना पड़ता है। अब जैसा कि मैंने कहा कि भारत कोई चाय या पान की दुकान तो है नहीं कि आज इतवार है तो भैया,दुकान बंद रहेगी। भारत तो सदियों से अपनी रफ़्तार से चलता आ रहा है,अनेकों विदेशी आक्रमणकारियों से लुटने के बाद भी ये बंद नहीं हुआ। और भारत को सदा गतिमान रखते हैं यहां के लोग जो इस भारत-रूपी गाड़ी के पहिये हैं। अब जो भी लोग भारत को रोकना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले इसके पहियों को रोकना पड़ता है जो क़तई आसान नहीं है। और जब ये पहिये इन मूर्खों के आगे नहीं रुकते तो बस,वहीं से शुरू हो जाता है एक ख़ूनी खेल जिसमें भारत का जो भी पहिया सामने आएगा,उसे अपनी जान गंवानी पड़ेगी। मसलन भारत के बाज़ार, बसें, रेलगाड़ियां वगैरह। यहां तक कि हिंसा पर आमादा ये भीड़ बीमारों को ले जाने वाली एम्बुलेंस तक को रोककर किसी बुज़ुर्ग की सांसें रोक देती है,किसी मासूम की आंख नोंच लेती है,रेलगाड़ी पर पथराव करके हज़ारों यात्रियों को दहशत में डाल देती है और ये सब किसलिए, भारत को बंद कराने के लिए। मनमानी करने वाले ये लोग शायद भूल जाते हैं कि भारत किसी के बाप की जागीर नहीं है और दलित हों या सवर्ण, करणी सेना हो या ऐसे ही लाख़ों बेरोज़गार गुंडों की कोई फ़ौज, भारत को कोई भी बंद नहीं करा सकता। हम आज विश्व के सबसे युवा देश हैं और युवाओं से मेरा अनुरोध है यही
"ख़ून का उबाल मत ज़ाया करो भारत को बंद कराने में
आपस में मत लड़ो राजनीतिक दलों के बहकावे में
लड़ना है तो लड़ो लहू के आख़री क़तरे तक
लेकिन आपस में नहीं,भारत के दुश्मनों से
घरों से निकलो संगठित होकर, फ़िर से लाखों की तादाद में
लेकिन भारत को बंद कराने नहीं,भारत को आगे बढ़ाने।"

Tuesday, 27 March 2018

Sangeet

पिछले हफ़्ते मुझे अपने शहर में मंत्रमुग्ध कर देने वाली संगीत की महफ़िल में शरीक़ होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ये महफ़िल सजाई गई थी महाराष्ट्र साहित्य सभा के सभागृह में,जैसा कि नाम से ही आप समझ गए होंगे कि ये आयोजन शहर के संभ्रांत मराठी समुदाय द्वारा किया गया था और मेरे वहां जाने का कारण थे हमारी कंपनी के कर्मठ कर्मचारी और अत्यंत ही प्रतिभाशाली कलाकार श्री प्रदीप विन्चुरकर जी। यहां तयशुदा समय पर ही कार्यक्रम शुरू हुआ और सर्वप्रथम कला की देवी माँ सरस्वती के सामने दीप-प्रज्ज्वलन करने के बाद संगीत से सजी सुरीली शाम का आग़ाज़ किया श्री विन्चुरकर जी और उनकी सुपुत्री अक्षता ने जिनकी तबला-सारंगी की बेजोड़ जुगलबंदी ने अपनी हर एक प्रस्तुति के बाद हम सभी श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। अक्षता ने शुरुआत की सारंगी पर शास्त्रीय राग रागेश्री से जो पुराने सदाबहार फ़िल्मी नग़मों पर तबले और सारंगी की जुगलबंदी से होते हुए पुनः शास्त्रीय राग मांड पर समाप्त हुई। इन दोनों कलाकारों की प्रस्तुति में इतनी गहराई थी जो कभी तो पूरे शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी तो कभी आंखों में पानी ला रही थी। कला के क्षेत्र में मराठी समुदाय और साहित्य के क्षेत्र में बंगाली समुदाय का जो योगदान है, वो अतुलनीय है। स्वर कोकिला लता मंगेशकर और नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ टैगोर का उदाहरण हम सबके सामने है। लगभग 45मिनट की इस संगीतमयी यात्रा में आप इस क़दर खो जाते हैं कि अपनी सारी चिंताएं भूलकर बस संगीत के सुरों में डूब जाते हैं। उस समय शायद ऑक्सीजन की जगह संगीत मेरे लिए प्राणवायु का काम कर रहा था। मुझे हमेशा लगता है कि दुनिया के किसी भी धर्म में इतनी ताक़त नहीं जितनी कि संगीत में है। कलाकार के सुर अगर सच्चे हों तो वो आपको उस परम-सत्ता के बहुत नज़दीक ले जा सकते हैं। मेरे विचार में मंदिर में दिन भर पूजा-पाठ करने वाला पंडित भी शायद भगवान के इतने क़रीब नहीं पहुंच सकता, जितना एक संगीत साधक अपनी संगीत साधना के बल पर पहुंच सकता है। शायद अपनी इसी साधना के बल पर तानसेन और बैजू बावरा जैसे महान कलाकार अपने सुरों से दिए जला दिया करते थे और बिन सावन के बादल भी रो पड़ते थे।

Monday, 19 March 2018

शरणार्थी

"आओ लाल,झूलेलाल" हर साल की तरह इस साल भी हमारी कॉलोनी में चेटीचंड की सुबह का आग़ाज़ भगवान झूलेलाल जी के इन्हीं भजनों से हुआ,क्योंकि हमारी कॉलोनी में सिंधी समुदाय के काफ़ी लोग रहते हैं और ये लोग हर साल चेटीचंड का त्यौहार इसी तरह धूमधाम से मनाते हैं। ये सभी आज हिंदुस्तान में हंसी-ख़ुशी की ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं लेकिन इन परिवारों की पुरानी पीढ़ियों ने बंटवारे का दर्द झेला है। मूल रूप से पाकिस्तान के सूबे सिंध के रहने वाले ये लोग अरसा पहले अपने मादरे-वतन को छोड़ चुके हैं। चाहे सिंध के सिंधी हों,कश्मीर के कश्मीरी पंडित हों,फ़ारस(आज के ईरान) के पारसी हों या तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा और लाखों की तादाद में उनके धर्मावलंबी, इन सबको अचानक से रातों-रात अपना घरबार और क़ारोबार सब कुछ छोड़कर भागना पड़ा है। आप और हम शायद इस तरह की परिस्थितियों का सामना कभी नहीं करना चाहेंगे और शायद हम इस तरह के शरणार्थी जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। सिंधी समुदाय के लोग अपना जमा-जमाया क़ारोबार छोड़कर आ गए, लेकिन अपनी कारोबारी कला को अपने साथ भारत ले आये और यहां मेहनत करके अपने व्यवसाय स्थापित किये और आज एक खुशहाल ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। ईरान से आये पारसी अपनी जान बचाकर सात समंदर पार करके भारत आये और साथ लाये अपनी ज़िंदादिली और खुशमिजाज़ी,आज मुम्बई और गुजरात के कई शहरों में इनकी अच्छी ख़ासी आबादी है और आज ये हमेशा क़ानून का पालन करने वाले,हंसी-ख़ुशी सबसे मिलकर रहने वाले सच्चे भारतीय हैं। दलाई लामा अपने लाखों अनुयायियों के साथ हिमालय को पार करके भारत आये,भारत सरकार ने इन्हें हिमाचल प्रदेश के शहर धर्मशाला में बसने की अनुमति दी और बदले में इन्होंने इस पूरे क्षेत्र को अहिंसा और शांति की अपनी सीखों से लाभान्वित किया और भारत का मान बढ़ाया है। ये सभी समुदाय सम्मान के पात्र हैं क्योंकि इन्होंने विपरीत परिस्थितियों का सामना करके भी अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा की है। आज सीरिया और रोहिंग्यों पर आंसू बहाने वाले लोग शायद ये भूल गए हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है।

Friday, 16 March 2018

Women's day

तुम माँ की ममता हो,बेटी की चपलता हो
तुम बहन का स्नेह हो,अर्धांगिनी का समर्पण हो,
हाँ,तुम स्त्री हो।
तुम देवी हो,शक्ति हो
तुम प्रकृति हो,सृष्टि हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम सुंदर हो,सुशील हो
तुम संतोषी हो,बलिदानी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम अलसभोर की पहली किरण हो,रात की चांदनी हो
तुम दीपक की ज्योति हो,जुगनू की रोशनी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम हिमालय की ऊंचाई हो,महासागर की गहराई हो
तुम हिम की शीतलता हो,अग्नि की ज्वाला हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम ग्रीष्म की तपिश हो,वर्षा की ठंडी फ़ुहार हो
तुम बरगद की घनी छांव हो,बसंत बहार हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम प्रेम का सागर राधा हो,ममता का आँचल यशोदा हो
तुम कभी पति के अपमान पर अग्नि में कूदने वाली सती हो, तो कभी ख़ुद अपमान सहकर भी अग्नि-परीक्षा देने वाली सीता हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम कालिदास की कल्पना ,अजंता की आकर्षक मूरत हो
तुम ग़ालिब की ग़ज़ल हो,फ़ैज़ की शायरी हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम यमराज से लड़ने वाली सावित्री हो, स्वाभिमान की मूरत पद्मावती हो
तुम अदम्य साहस की धनी लक्ष्मीबाई हो, त्याग और बलिदान की मिसाल पन्ना धाय हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
तुम कल्पनाओं के परे जाने वाली कल्पना चावला हो, चीते सी रफ़्तार वाली पीटी उषा हो
तुम मानवता की मिसाल मदर टेरेसा हो,शिक्षा की मशाल मलाला हो,
हाँ, तुम स्त्री हो।
फ़िर क्यों हो तुम वहशियों की वासना का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम दहेज की लालसा का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम पुत्र-मोह की अभिलाषा का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम समाज की रूढ़िवादी सोच का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम घर की चार-दीवारी की दासता का शिकार?
फ़िर क्यों हो तुम पुरुषों की मानसिक ग़ुलामी का शिकार?
स्त्री!तुम बनो मत शिकार किसी का,ख़ुद करो शिकार तुम्हें कमतर मानने वाली पुरुषों की इस दकियानूसी सोच का।
अब तक तो सिर्फ़ मकानों को घर बनाती आयी हो, अब निर्माण करो एक उत्कृष्ट सोच वाले समाज का।
अब तक तो आईने में अपना रूप निहारते आयी हो, अब तुम्हें आईना दिखाना होगा सम्पूर्ण समाज को।
क्योंकि तुम स्त्री हो।
तुम्हारा दर्जा पुरुष के बराबर नहीं,उससे कहीं ऊंचा है।

धर्म और कलियुग

पिछले दिनों शहर के मॉल में एक बच्ची के साथ हुई दरिंदगी के बारे में बात करते हुए जब मैंने मम्मी से कहा कि कलियुग बहुत बढ़ रहा है,तब मेरी माँ ने मुझे जवाब दिया कि "धर्म भी बढ़ रहा है और जैसे-जैसे कलियुग बढ़ेगा,हमारा धर्म उतना ही मज़बूत होता जाएगा।" माँ का ये जवाब मुझे चौंका देने वाला था जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वाक़ई ऐसा संभव है? और काफ़ी सोच-विचार करने के बाद मुझे लगता है कि ये बात काफ़ी हद तक सही है,क्योंकि भारत का इतिहास अनेकों क्रूरतम विदेशी आक्रमणकारियों से भरा पड़ा है जिन्होंने मूर्तियां खंडित करने, मंदिरों को गिराने और लूटने से लेकर जबरन धर्मांतरण करने तक सदियों हिन्दू धर्म को ख़त्म करने की कोशिशें कीं, यहां तक कि हमारे देश के वीर राजपूत शासकों ने भी इन आततायियों के आगे घुटने टेकते हुए इनसे विवाह संधियां करके भारतीय संस्कृति को दूषित किया। अफ़ग़ानिस्तान और इंडोनेशिया जैसे कितने ही देश जिनका उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है,वहां से हिंदू धर्म का लगभग सफ़ाया कर दिया गया। हिन्दू धर्म से काफ़ी बाद में आये धर्म तेज़ी से विश्व-पटल पर छा गए क्योंकि शुरुआत से ही इन धर्मों को मानने वालों की रणनीति अपने अनुयायियों को बढ़ाने की रही और इस रणनीति को सफल बनाने के लिए मानवता की सारी हदें उन्होंने पार कीं और ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। लेकिन इतनी सब कठिनाईयों के बावजूद आज हमारी पीढ़ी ज़िंदा है और हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ा रही है। अभी कुछ दिनों पहले ही हमारे प्रधानमंत्री एक कट्टरपंथी देश में एक भव्य मंदिर-निर्माण के लिए शिलान्यास करके आये हैं। पश्चिमी देशों के लोग तो हमेशा से ही हमारे धर्म और संस्कृति को बढ़-चढ़कर अपनाते आए हैं और मुझे लगता है कि ये चलन आगे आने वाले वर्षों में और बढ़ेगा जब ज़्यादा से ज़्यादा लोग हमारे धर्म की महत्ता को समझना शुरू करेंगे। इसलिए चाहे हम किसी भी जाति के हों ये महत्वपूर्ण नहीं है,सबसे पहले हम भारतीय हिन्दू हैं और इस बात का हमें गर्व होना चाहिए।