अभी तक ये आम धारणा थी कि मुस्लिम समाज के लोग भाजपा को वोट नहीं देते हैं और मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने से उनमें डर का माहौल है। दरअसल डर मुस्लिमों में नहीं,मोदीजी के विरोधियों में था। सारे मोदी विरोधी महामिलावटी महागठबंधन के नेता मुस्लिमों के वोट बैंक और जातीय समीकरण के आधार पर अपनी जीत लगभग पक्की मानकर बैठे थे शायद इसीलिए वो ज़मीनी स्तर पर जनता की नब्ज़ भांपने में नाकामयाब रहे।वहीं आज का समझदार और शिक्षित मुसलमान ये बहुत अच्छे से समझ चुका है कि धर्म को ख़तरा बताकर इन राजनीतिक दलों द्वारा कितने दशकों से उसे छला जा रहा है। आज़ादी के बाद से ही सत्तासीन पार्टी द्वारा मुस्लिमों के मन में ये भावना भरी जाती रही कि वो भारत में सुरक्षित नहीं हैं और ख़ुद को मुसलमानों के मददगार के रूप में पेश किया जाता रहा। इसका असर ये हुआ कि मुस्लिम समाज की शिक्षा,रोज़गार और अन्य मूलभूत सुविधाओं की कमी की तरफ़ ख़ुद मुसलमानों ने भी कभी ग़ौर नहीं किया औऱ न ही कभी कोई आवाज़ उठाई। मुस्लिम हमेशा इसी डर में जीते रहे कि कहीं उनका धार्मिक अस्तित्व ख़तरे में न पड़ जाए और इस तरह वो धर्म से आगे कभी सोच ही नहीं पाए और सिर्फ़ एक मज़हबी वोट बैंक की तरह इस्तेमाल होते रहे। लेकिन एक तरफ़ जहां भाजपा सरकार ने तीन तलाक़ बिल लाकर मुस्लिम महिलाओं के हक़ की आवाज़ उठाई,मेधावी मुस्लिम विद्यार्थियों के लिए मुफ़्त कोचिंग की योजना और अल्पसंख्यकों के लिए बजट में लगभग 1000करोड़ की बढ़ोत्तरी करके उन्हें देश की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया,वहीं दूसरी तरफ़ पिछले 5सालों में कोई भी बड़ा हिन्दू-मुस्लिम दंगा नहीं होने दिया जिससे मुसलमानों में सुरक्षा की भावना बढ़ी। शायद यही वजह है कि बहुत कम प्रतिशत ही सही लेकिन इस बार यूपी और बंगाल के मुस्लिमों ने भी मोदी के नाम पर वोट दिया है।
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