Monday, 10 June 2019

बुझती हुई मशाल

जी हां, ये बुझती हुई मशाल है आम आदमी पार्टी की जो कुछ साल पहले आम आदमी की आशाओं के साथ रोशन हुई थी, करोड़ों आशाएं ईमानदारी की,आशाएं वोट बैंक से परे तटस्थता की राजनीति की,आशाएं कांग्रेस-भाजपा से इतर आम आदमी का संसद में प्रतिनिधत्व करने वाली एक पार्टी की लेकिन सत्ता के लालच ने लोगों की ये सारी आशाएं धूमिल कर दीं। एक तरफ़ कुमार विश्वास और योगेंद्र यादव जैसे प्रतिभाशाली लोग इस पार्टी से दूर हुए और दूसरी तरफ़ जनता का इस पार्टी से मोह भंग होता गया, क्योंकि जब आप एक सिद्धांत को पकड़कर उस पर चलना शुरू करते हैं और लाखों लोगों के प्रेरणा-स्रोत बनते हैं तब आपसे उम्मीद की जाती है कि कैसी भी परिस्थिति में आप अपने सिद्धान्तों से समझौता नहीं करेंगे। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने लोगों का ये भ्रम तभी तोड़ दिया जब पहली बार के दिल्ली के चुनाव में पूर्ण बहुमत न मिलने पर उन्होंने कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बनाने की पेशकश कर दी। इस घटना ने बता दिया कि आप सिद्धांतवादी होने का सिर्फ़ ढोंग कर रहे हैं क्योंकि अगर सचमुच ऐसा होता तो आप जिस भ्रष्टाचारी पार्टी का विरोध करके सत्ता में आये उसी से हाथ मिलाने की पेशकश न करते। इस वाक़ये ने साबित कर दिया कि केजरीवाल कोई सिद्धांतवादी नहीं बल्कि दूसरे नेताओं की तरह वे भी अवसरवादी हैं और रही-सही कसर केजरीवाल की महागठबंधन में शामिल होकर सरकार में शामिल होने की छटपटाहट ने पूरी कर दी,वो भी तब जब महागठबंधन का कोई भी नेता आप से गठबंधन करने को तैयार ही नहीं था।

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